सचेतन 2.29: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – स्त्री पर क्रोध नहीं किया जाता है।

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निशाचरी लंका द्वारा हनुमान जी को लंका पूरी में प्रवेश करने से रोकना।

वानरश्रेष्ठ महाकपि पवनकुमार हनुमान् जी लंका पुरी में प्रवेश करने लगे। इतने में ही उस नगरी की अधिष्ठात्री देवी लंका ने अपने स्वाभाविक रूप में प्रकट होकर उन्हें देखा। वानरश्रेष्ठ हनुमान् को देखते ही रावणपालित लंका स्वयं ही उठ खड़ी हुई। उसका मुँह देखने में बड़ा विकट था। 
वह उन वीर पवनकुमार के सामने खड़ी हो गयी और बड़े जोर से गर्जना करती हुई उनसे इस प्रकार बोली- ‘वनचारी वानर! तू कौन है और किस कार्य से यहाँ आया है? तुम्हारे प्राण जबतक बने हुए हैं, तबतक ही यहाँ आने का जो यथार्थ रहस्य है, उसे ठीक-ठीक बता दो। ‘वानर ! रावण की सेना सब ओर से इस पुरी की रक्षा करती है, अतः निश्चय ही तू इस लंका में प्रवेश नहीं कर सकता। 
तब वीरवर हनुमान् अपने सामने खड़ी हुई लंका से बोले—’क्रूर स्वभाववाली नारी! तू मुझसे जो कुछ पूछ रही है, उसे मैं ठीक-ठीक बता दूंगा; किंतु पहले यह तो बता, तू है कौन? तेरी आँखें बड़ी भयंकर हैं। तू इस नगर के द्वार पर खड़ी है। क्या कारण है कि तू इस प्रकार क्रोध करके मुझे डाँट रही है। 
हनुमान जी की यह बात सुनकर इच्छानुसार रूप धारण करने वाली लंका कुपित हो उन पवनकुमार से कठोर वाणी में बोली- मैं महामना राक्षसराज रावण की आज्ञा की प्रतीक्षा करने वाली उनकी सेविका हूँ। मुझपर आक्रमण करना किसी के लिये भी अत्यन्त कठिन है। मैं इस नगरी की रक्षा करती हूँ। मेरी अवहेलना करके इस पुरी में प्रवेश करना किसी के लिये भी सम्भव नहीं है। आज मेरे हाथ से मारा जाकर तू प्राणहीन हो इस पृथ्वी पर शयन करेगा। वानर! मैं स्वयं ही लंका नगरी हूँ, अतः सब ओर से इसकी रक्षा करती हूँ। यही कारण है कि मैंने तेरे प्रति कठोर वाणी का प्रयोग किया है। 
लंका की यह बात सुनकर पवनकुमार कपिश्रेष्ठ हनुमान् उसे जीतने के लिये यत्नशील हो दूसरे पर्वत के समान वहाँ खड़े हो गये। 
लंका को विकराल राक्षसी के रूप में देखकर बुद्धिमान् वानरशिरोमणि शक्तिशाली कपिश्रेष्ठ हनुमान् ने उससे इस प्रकार कहा— मैं अट्टालिकाओं, परकोटों और नगर द्वारों सहित इस लंका नगरी को देखूगा। इसी प्रयोजन से यहाँ आया हूँ। इसे देखने के लिये मेरे मन में बड़ा कौतूहल है। 
इस लंका के जो वन, उपवन, कानन और मुख्यमुख्य भवन हैं, उन्हें देखने के लिये ही यहाँ मेरा आगमन हुआ है। हनुमान जी का यह कथन सुनकर इच्छानुसार रूप धारण करने वाली लंका पुनः कठोर वाणी में बोली – खोटी बुद्धिवाले नीच वानर ! राक्षसेश्वर रावण के द्वारा मेरी रक्षा हो रही है। तू मुझे परास्त किये बिना आज इस पुरी को नहीं देख सकता। 
तब उन वानरशिरोमणिने उस निशाचरी से कहा —’भद्रे! इस पुरी को देखकर मैं फिर जैसे आया हूँ, उसी तरह लौट जाऊँगा। यह सुनकर लंका ने बड़ी भयंकर गर्जना करके वानरश्रेष्ठ हनुमान् को बड़े जोर से एक थप्पड़ मारा। लंका द्वारा इस प्रकार जोर से पीटे जाने पर उन परम पराक्रमी पवनकुमार कपिश्रेष्ठ हनुमान् ने बड़े जोर से सिंहनाद किया। फिर उन्होंने अपने बायें हाथ की अंगुलियों को मोड़कर मुट्ठी बाँध ली और अत्यन्त कुपित हो उस लंका को एक मुक्का जमा दिया। 
उसे स्त्री समझकर हनुमान् जी ने स्वयं ही अधिक क्रोध नहीं किया। किंतु उस लघु प्रहार से ही उस निशाचरी के सारे अंग व्याकुल हो गये। वह सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ी। उस समय उसका मुख बड़ा विकराल दिखायी देता था। 
अपने ही द्वारा गिरायी गयी उस लंका की ओर देखकर और उसे स्त्री समझकर तेजस्वी वीर हनुमान् को उस पर दया आ गयी। उन्होंने उस पर बड़ी कृपा की। 
उधर अत्यन्त उद्विग्न हुई लंका उन वानरवीर हनुमान् से अभिमानशून्य गद्गदवाणी में इस प्रकार बोली- ‘महाबाहो! प्रसन्न होइये। कपिश्रेष्ठ! मेरी रक्षा कीजिये। सौम्य! महाबली सत्त्वगुणशाली वीर पुरुष शास्त्र की मर्यादा पर स्थिर रहते हैं (शास्त्र में स्त्री को अवध्य बताया है, इसलिये आप मेरे प्राण न लीजिये)। 
निशाचरी लंका को स्त्री समझकर हनुमान् जी ने स्वयं ही अधिक क्रोध नहीं किया। किंतु हनुमान जी के लघु प्रहार से ही उस निशाचरी के सारे अंग व्याकुल हो गये। अत्यन्त उद्विग्न हुई लंका ने हनुमान जी से अभिमानशून्य हो कर बोली- कपिश्रेष्ठ! मेरी रक्षा कीजिये। सौम्य! महाबली सत्त्वगुणशाली वीर पुरुष शास्त्र की मर्यादा पर स्थिर रहते हैं (शास्त्र में स्त्री को अवध्य बताया है, इसलिये आप मेरे प्राण न लीजिये)।
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी।।
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा।।
मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।।
पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका।।
नारियों के प्रति सम्मान को ह्रदय में ईश्वर का वास के समान माना जाता है। कहते हैं की आपने जीवन की सभी अष्ट सिद्धि नव निधि का आशीष माता से प्राप्त हो सकती है इसीलिए नारी का सम्मान और पूजा करनी चाहिए। आप अपने धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा कठिन परिस्थितियों में ले सकते हैं।

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