सचेतन 113 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- तत्पुरुष रूप में स्वतंत्रता का आधार
भगवान शिव का तत्पुरुष स्वरूप हमारे स्वतंत्र होने के स्वरूप का बोध कराता है। जहां से हम बंधन मुक्त हो कर जीना शुरू करते हैं। और यह पूर्णतया मानसिक रूप से स्वतंत्र होने का सूचक है।
हम सभी का व्यक्तित्व भिन्न है। यही हर व्यक्तियों में पाई जाने वाली असमानता भी है। एक व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रत्येक दूसरे से भिन्न होता है यहाँ तक कि एक ही माता–पिता के जुड़वाँ बच्चे, एक दूसरे से भिन्न होते हैं तथा उनका व्यवहार, उसी भिन्नता पर आधारित होता है।
बालकों में शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक कई प्रकार के भेद पाये जाते हैं । शिक्षक जब एक कक्षा में पढ़ाते हैं तो उनके द्वारा पढ़ाये जाने वाले बच्चों को एक जैसा पढ़ाया जाता है इसके अनेक परिणाम होते हैं क्योंकि छात्र अलग–अलग स्थान, वातावरण, विकास के मानसिक स्तर से संबंधित होते हैं अतः उनके द्वारा ग्रहण किया गया ज्ञान एक ही स्तर का नहीं हो पाता एवं उनकी प्रतिक्रियाएं भी अलग–अलग होती हैं।
नये युग में वैयक्तिक दृष्टि का अध्ययन सबसे पहले गाल्टन ने प्रारंभ किया था तब से इस विषय पर अनेक अनुसंधान हो चुके हैं।सदियों से भगवान शिव का तत्पुरुष स्वरूप हमारे व्यक्ति विशेष की स्वतंत्र का परिचायक है।
व्यक्ति विशेष की स्वतंत्र हमारी मानसिक स्वतंत्रता है। हम कहते हैं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) या वाक स्वतंत्रता (freedom of speech) किसी व्यक्ति या समुदाय द्वारा अपने मत और विचार को बिना प्रतिशोध, अभिवेचन से कर सके। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 19 में प्रयुक्त ‘अभिव्यक्ति’ शब्द इसके क्षेत्र को बहुत विस्तृत कर देता है। विचारों के व्यक्त करने के जितने भी माध्यम हैं वे अभिव्यक्ति, पदावली के अन्तर्गत आ जाते हैं।
लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हे संप्रेषित (Communicate) कर सके। भगवान शिव का तत्पुरुष स्वरूप हमारे संप्रेषण की स्वतंत्र का परिचायक है।
इस प्रकार इनमें संकेतों, अंकों, चिह्नों तथा ऐसी ही अन्य क्रियाओं द्वारा किसी व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति सम्मिलित है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्यक्त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वभौमिक नहीं है और इस पर समय-समय पर युक्ति-नियुक्ति निर्बंधन लगाए जा सकते हैं।
भगवान शिव का तत्पुरुष स्वरूप उन सभी युक्ति-नियुक्ति निर्बंधन, पावन्दी, रोक से मुक्त होकर स्वतंत्र स्वरूप का बोध कराता है। जिसके लिए हमें कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, संबंध और अधिकरण का सहारा लेना होता है।
यहाँ अधिकरण तत्पुरुष स्वरूप का आधार, आसरा और सहारा होता है। हम अपने जीवन के हर घटना को याद करें तो पायेंगे की सभी प्रकरण और हर घटना का शीर्षक का आधार हमारे मन और बुद्धि पर आधारित है। अगर हमको उन सभी घटनाओं का कारण और इसकी क्रिया का ज्ञान हो जाये तो हम मुक्ति यानी स्वतंत्रता का दर्शन कर सकेंगे अन्यथा मन उसी घटना में अटका रहेगा। आपके हर विषय, अधिष्ठान में ज्ञान का अधिकरण आत्मा को मानना चाहिए। यह सिद्धात या अर्थ स्वयं सिद्ध होने वाला होता है ना की पोथी पढ़कर आपको पता चलेगा।