सचेतन 2.116 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हनुमान जी के आश्वासन से सीता माता को शांति मिली
हनुमान जी, हमेशा से विचारशील और सूझबूझ रखने वाले थे
नमस्कार श्रोतागण, आज के हमारे सचेतन के इस विचार के सत्र में आपका स्वागत है। आज हम आपको ले चलेंगे एक अनूठी यात्रा पर, जहाँ हम सुनेंगे वीर हनुमान और उनके द्वारा दी गई श्री सीता की रक्षा की गाथा।
वन में, दुर्दशा का सामना करती सीता माता अपने अश्रुओं को रोक नहीं पाईं और अपने मन की व्यथा हनुमान जी से इस प्रकार व्यक्त की।
सीता माता (दुःख भरी आवाज में बोलती है): “हनुमन्! क्या मेरे भाई श्री लक्ष्मण, जिन्होंने अपनी बहादुरी से कई शत्रुओं को परास्त किया है, मेरी रक्षा क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या मैंने ऐसा कोई महान पाप किया है जो श्रीराम और लक्ष्मण मेरी रक्षा नहीं कर पा रहे हैं?”
हनुमान गंभीर आवाज में कहते हैं “ओ देवि! मैं आपको सत्य की शपथ खाकर कहता हूँ, श्रीरामचन्द्रजी और लक्ष्मण आपके शोक से व्याकुल हैं और इसी कारण से सभी कार्यों से विरत हैं।” हनुमान जी के इस आश्वासन से सीता माता को कुछ शांति मिली और उन्होंने हनुमान जी से श्रीराम तक एक संदेश भेजने का आग्रह किया।
राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥
यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥
(हनुमान जी ने कहा-) हे माता जानकी मैं श्री राम जी का दूत हूँ। करुणानिधान की सच्ची शपथ करता हूँ, हे माता! यह अँगूठी मैं ही लाया हूँ। श्री रामजी ने मुझे आपके लिए यह सहिदानी (निशानी या पहिचान) दी है॥
ओ महाबली हनुमान, जब तुम श्रीराम और लक्ष्मण के दर्शन करोगे, तब उन्हें मेरा कुशल समाचार देना और मेरे दुःख की कथा सुनाना।” उस भावुक मुलाकात के बाद, हनुमान जी ने सीता माता को प्रणाम किया और लंका को प्रस्थान करने के लिए तैयार हो गए। जैसे ही वे उड़ने को हुए, सीता माता की आँखों से अश्रुधारा बह निकली।
सीता माता ने तब हनुमान जी से अनुरोध किया कि वे एक दिन के लिए वहीं रुकें और उनके साथ समय बिताएँ, जिससे उन्हें कुछ सांत्वना मिल सके। हनुमान जी ने उनकी बात मानी और वहीं रुकने का निश्चय किया।
लेकिन सीता माता का मन शोक से भरा हुआ था। उन्होंने हनुमान जी से कहा कि उन्हें अब भी संदेह है कि श्रीराम और लक्ष्मण कैसे इस विशाल समुद्र को पार कर पाएंगे।
संवेदनशील होने का भी विचार है हनुमान जी ने तब सीता माता को बताया कि वायुदेव की कृपा से और अपनी भक्ति और पराक्रम से वे इस कार्य को संपन्न करेंगे, और श्रीराम भी अवश्य ही उन्हें इस कठिनाई से बाहर निकालेंगे।
माता सीता का हृदय इन शब्दों से कुछ हद तक शांत हुआ, और उन्होंने हनुमान जी का धन्यवाद किया कि उन्होंने उनके संदेह का निवारण किया।
हनुमान जी और माता सीता के बीच का एक अनोखा संवाद, जो हमें दिखाता है कि विश्वास और समर्पण से हर संकट का समाधान संभव है। जब हनुमान जी ने सीता देवी की विनम्र और युक्तिसंगत बातें सुनीं, तब उन्होंने अपने हृदय से उत्तर दिया।
“देवि! सुग्रीव, जो वानर और भालुओं की सेना के स्वामी हैं, वे आपकी रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। उनके पास अनगिनत शक्तिशाली वानर हैं, जिनकी गति आकाश में वायु के समान तीव्र है।”
“ये महाबली वानर, जो कभी नहीं थकते, नीचे, ऊपर या अगल-बगल, हर दिशा में उनकी गति अविरल है। वे लंका में पहुंचने के लिए केवल एक ही छलांग में समुद्र को हनुमान जी ने आगे कहा कि श्रीराम और लक्ष्मण जल्द ही उनके पास पहुंचेंगे। दोनों भाई, सूर्य और चंद्रमा की भाँति, शत्रुओं का नाश करने आयेंगे और देवी सीता को स्वतंत्र करायेंगे।
“देवि, आपके दुःख के दिन समाप्त होने वाले हैं। वे वीर वानर जो विशाल काया वाले हैं और जिनके नख और दाढ़ ही उनके आयुध हैं, वे भी शीघ्र ही आपको दर्शन देंगे।”
सीता माता अश्रुपूरित स्वर में कहती हैं की “तुम्हारा मार्ग मंगलमय हो, हनुमान। सुंदर कांड की कथा, जिसमें हमने देखा कि किस तरह से हनुमान जी ने सीता माता की आशा को जीवित रखा और उन्हें विश्वास दिलाया कि उनकी वेदना शीघ्र ही समाप्त होगी।
हनुमान जी, जो हमेशा से विचारशील और सूझबूझ रखने वाले थे, उन्होंने बड़े ही संयम से माता सीता को समझाया कि उनका यह संदेश वे अवश्य ही श्रीराम तक पहुंचा देंगे। उन्होंने देवी सीता को आश्वस्त किया कि श्रीराम अवश्य ही उन्हें इस दुःख से मुक्त करेंगे।
हनुमान जी के इन शब्दों ने सीता देवी को एक नई आशा और साहस प्रदान किया। वह समझ गईं कि उनके पतिदेव श्रीराम उन्हें इस दुर्दशा से मुक्त कराने के लिए शीघ्र ही आयेंगे।
दोस्तों, यह थी आज की कथा, जिसमें हमने देखा कि किस प्रकार महावीर हनुमान ने देवी सीता को साहस और आशा का संदेश दिया। आशा है आपको यह कथा पसंद आई होगी। अगली बार फिर मिलेंगे एक नई कथा के साथ। तब तक के लिए, नमस्ते!