सचेतन 2.24: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड -हनुमान जी वीर्यवान थे
हनुमान जी ने सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई लंका महापुरी का निरीक्षण स्वयं को जागरूक करने के लिए किया
हम सुंदरकांड के द्वितीयः सर्ग के प्रारंभ में चर्चा किया था की पराक्रमी श्रीमान् वानरवीर हनुमान् जब सौ योजन समुद्र लाँघकर भी वहाँ लम्बी साँस नहीं खींच रहे थे और न ग्लानि का या आलस्य का ही अनुभव करते थे। उलटे वे यह सोचते थे, मैं सौ-सौ योजनों के बहुत से समुद्र लाँघ सकता हूँ; फिर इस गिने-गिनाये सौ योजन समुद्र को पार करना कौन बड़ी बात है?
तो जब हम बिना थके लगातार अथक परिश्रम करते हैं पराक्रमी और वीरता की संज्ञा का आभास होता है। वीर व्यक्ति का अर्थ है की किसी भी काम से कभी पीछे नहीं हटना। हनुमान् जी वीर और पराक्रमी होने के के साथ साथ वे अत्यन्त वीर्यवान थे। शरीर की भौतिक शक्तियों का अन्तिम सार वीर्य है। जब आप भोजन करते हैं तो पहले रस बनता है, रस से रक्त, रक्त से माँस, माँस से मेढ़, मेढ़ से हड्डी, हड्डी से मज्जा, मज्जा से वीर्य ; वीर्य शरीर का अन्तिम धातु है। इस के बनाने में, शरीर को, जीवन के लिये आवश्यक अन्य पदार्थों की अपेक्षा अधिक मेहनत करनी पड़ती है। थोड़े – से वीर्य को बनाने के लिये रक्त की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता पड़ती है।
ईश्वर की परिभाषा में भी है की वे वीर्यवान हैं, जैसे रामचंद्रजी बड़े यशस्वी वीर्यवान राजा थे, भीष्म ने आयु भर वीर्य का निग्रह अखण्ड ब्रह्मचर्य धारण किया, वीर्यवान पुरुष क्या नहीं कर सकता, वीर्यवती लोग ही संसार में अपना साम्राज्य स्थापित कर सकती है।
आप यह समझो की संसार में जो कुछ निरोग, सुन्दर, स्वरूपवान, कान्तिमय, मनोहर है, जो कुछ वीर, ओज, पराक्रम, पौरुष, तेज विशेषणों से प्रकट होता है तथा धैर्य, निर्भीकता, बुद्धिमत्ता, सौम्य, मनुष्यत्वादि गुणों से जो विचार उत्पन्न होते हैं, वे सब ‘वीर्य’ इस शब्द के अंतर्गत हैं।
तेजस्वी वानरशिरोमणि हनुमान् वृक्षों से आच्छादित पर्वतों और फूलों से भरी हुई वन-श्रेणियों में विचरने लगे। उस पर्वत पर स्थित हो पवनपुत्र हनुमान् ने बहुत-से वन और उपवन देखे तथा उस पर्वत के अग्रभाग में बसी हुई लंका का भी अवलोकन किया।
अवलोकन’ का शाब्दिक अर्थ देखना है। इसे ‘निरीक्षण’ भी कहते हैं। अवलोकन, निरीक्षण अथवा प्रेक्षण का सभी प्रकार के विज्ञानों में महत्त्वपूर्ण स्थान है; क्योंकि हम सभी प्रकार की समस्याओं एवं घटनाओं को आँखों से देखकर पहचान सकते हैं।
हनुमान जी ने यह अवलोकन किया की महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई थी तथा पर्वत के समान ऊँचे और शरद् ऋतु के बादलों के समान श्वेत भवनों से भरी हुई थी॥
श्वेत रंग की ऊँची-ऊँची सड़कें उस पुरी को सब ओर से घेरे हुए थीं। सैकड़ों अट्टालिकाएँ वहाँ शोभा पा रही थीं तथा फहराती हुई ध्वजा-पताकाएँ उस नगरी की शोभा बढ़ा रही थीं॥
निरीक्षण वह प्रक्रिया है, जो एक आधार प्रस्तुत करती है, जिस पर किसी कार्य की उन्नति हेतु सभी कार्यक्रम आधारित किए जाते हैं। राम दूत बन कर हनुमान जी किसी बड़े कार्य के लिए मूल्यांकन करना शुरू कर दिये हैं। अवलोकन की रुचि आपके जीवन में कोई ना कोई सम्बन्ध स्थापित करता है जिससे आप समस्याओं के प्रति स्वयं को जागरूक कर सकते हैं।