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सचेतन 110 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष असाधारण कार्य के माध्यम होते हैं। 

कर्म के परिणाम या उसके अभाव को नियंत्रित करने में दैवीय शक्ति की भूमिका के बारे में हिंदू धर्म में कई भिन्न प्रकार के दर्शन हैं, कुछ का स्वरूप आज भी वर्तमान है और कुछ ऐतिहासिक हैं। इस पृथ्वी पर बहुत से ऐसे प्रमुख मत हैं, जिनका मानना है कि ईश्वर, परमात्मा, अपनी भूमिका निभा […]

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सचेतन 109 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  ईश्वर बहुत ही न्यायपूर्ण है-2

कर्म का विभाजन हमारे आध्यात्मिक जीवन से होता है। हम क्या संचय करना चाहते हैं और उस कर्म के फल का ‘प्रारब्ध’ कैसा होगा जिससे हमारे वर्तमान कर्म ‘क्रियमाण’ का निर्धारण हो सकेगा।  पशु और छोटे बच्चे नए कर्म की रचना नहीं करते हैं (इसलिए अपने भावी नियति को प्रभावित नहीं कर सकते हैं) क्योंकि […]

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सचेतन 108 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  ईश्वर बहुत ही न्यायपूर्ण है 

कर्म का विभाजन हमारे आध्यात्मिक जीवन से होता है। हम क्या संचय करना चाहते हैं और उस कर्म के फल का ‘प्रारब्ध’ कैसा होगा जिससे हमारे वर्तमान कर्म ‘क्रियमाण’ का निर्धारण हो सकेगा।  पशु और छोटे बच्चे नए कर्म की रचना नहीं करते हैं (इसलिए अपने भावी नियति को प्रभावित नहीं कर सकते हैं) क्योंकि […]

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सचेतन 107 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- कर्म का विभाजन हमारे आध्यात्मिक जीवन से होता है

पृथ्वी पर जन्म और मृत्यु का चक्र 84 लाख योनियों में चलता है और उनमें से सिर्फ एक मनुष्य योनि है। केवल मनुष्य के रूप में, सही समय पर सही कर्म कर हम अपनी नियति के बारे में कुछ करने की स्थिति में होते हैं। सकारात्मक कर्मों, शुद्ध विचारों, प्रार्थना, मंत्र और ध्यान के माध्यम […]

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सचेतन 106   : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  कर्म-संग्रह

हम चार तरीके से कर्म करते हैं:- “शरीर, वाणी और मन से की गयी क्रिया कर्म है।” मनस, वाचा, कार्मण तीन संस्कृत शब्द हैं। जिसका अर्थ आमतौर पर यह लगाया जाता है कि व्यक्ति को उस स्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए जहां उसके विचार, वाणी और कार्यों का आपसी संयोग हो। ‘करणं […]

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सचेतन 105   : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  शरीर, वाणी और मन से की गयी क्रिया कर्म है

“कर्म” का शाब्दिक अर्थ है “काम” या “क्रिया” और मोटे तौर पर यह निमित्त और परिणाम तथा क्रिया और प्रतिक्रिया कर्म कहलाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार कर्म हमारी चेतना को नियंत्रित करता है।कर्म भाग्य नहीं है। आदमी मुक्त होकर कर्म करता जाए, इससे उसके भाग्य की रचना होती रहेगी। वेदों के अनुसार, यदि हम […]

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सचेतन 104   : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष रूप कर्म, करण , सम्प्रदान, अपादान और सम्बन्ध को दर्शाता है -2

भगवद गीता के अध्याय २ का ४७ वा श्लोक है, जब अर्जुन रणभूमि पर अपने सगे सम्बन्धी को देखकर, युद्ध छोड़ देना चाहते है, तब भगवान उसे गीता का उपदेश देते हैं जिसको सम्पूर्ण गीता का सार माना जाता है। कहते हैं की अगर आप इस तत्व को जान लोगे तो आपको दूसरा कुछ समझने […]

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सचेतन 103   : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष रूप कर्म, करण , सम्प्रदान, अपादान और सम्बन्ध को दर्शाता है 

भगवद गीता के अध्याय २ का ४७ वा श्लोक है, जब अर्जुन रणभूमि पर अपने सगे सम्बन्धी को देखकर, युद्ध छोड़ देना चाहते है, तब भगवान उसे गीता का उपदेश देते हैं जिसको सम्पूर्ण गीता का सार माना जाता है। कहते हैं की अगर आप इस तत्व को जान लोगे तो आपको दूसरा कुछ समझने […]

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सचेतन 102: श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष  अवतार 

हम जीवन को सार्थकता बना कर क्या पाना चाहते हैं? श्वेतलोहित नामक उन्नीसवें कल्प में शिवजी का सद्योजात नामक अवतार हुआ है। यही शिवजी का प्रथम अवतार कहा जाता है। सद्योजात का अर्थ है की जिसने अभी या कुछ ही समय पहले जन्म लिया हो। यह ऐसे भाव को दर्शाता है की मानो एक माँ […]

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सचेतन 101: श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  आत्मज्ञान और ब्रह्मविद्या 

वामदेव नामक योगी शिव जी के भक्त थे। उन्होंने अपने समस्त शरीर पर भस्म धारण कर रखी थी। एक बार एक व्यभिचारी पापी ब्रह्मराक्षस उन्हें खाने के लिए उनके पास पहुँचा। उसने ज्यों ही वामदेव को पकड़ा, उसके शरीर पर वामदेव के शरीर की भस्म लग गयी, अत: भस्म लग जाने से उसके पापों का […]