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सचेतन 100: श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  आत्मज्ञान और ब्रह्मविद्या का साक्षात्कार कब से हो सकता है 

पिछले अंक में चर्चा किया था की, एक बार दरिद्रता देवी की कृपा के कारण वामदेव ऋषि को आपद धर्म का पालन करना पड़ा और श्येन पक्षी से कहा था की है चाहो तो तुम भी यज्ञ-कुंड की अग्नि में कुत्ते की पके आंते से संतुष्ट हो सकते हो। वामदेव ने कहा मैंने अपने समस्त […]

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सचेतन 99: श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  आपद धर्म या आपद्धर्म

रक्त नामक बीसवें कल्प में रक्तवर्ण वामदेव का अवतार हुआ। शिव के इस स्वरूप वामदेव, का संबंध संरक्षण से है। अपने इस स्वरूप में शिव, कवि भी हैं, पालनकर्ता भी हैं और दयालु भी हैं। शिवलिंग के दाहिनी ओर पर मौजूद शिव का यह स्वरूप उत्तरी दिशा की ओर देखता है। वामदेव पर एक बार […]

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सचेतन 98:– श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  दरिद्रता देवी की वामदेव पर कृपा 

सचेतन 98:– श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  दरिद्रता देवी की वामदेव पर कृपा  शिव का वामदेव अवतार वर्तमान में जीने पर जोर देता है। और वर्तमान आपके लिए रुकता नहीं एक क्षण। वैसे महावीर समय का मतलब ही यह कहते हैंः समय का वह हिस्सा जो हमारे हाथ में होता है। वह आखिरी टुकड़ा काल […]

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सचेतन :97 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  वामदेव, समय और कर्म का अवतार है 

रक्त नामक बीसवें कल्प में रक्तवर्ण वामदेव का अवतार हुआ। शिव के इस स्वरूप वामदेव, का संबंध संरक्षण से है। संरक्षण कर्म का और सही समय का होना चाहिए। अपने इस स्वरूप में शिव, कवि भी हैं, पालनकर्ता भी हैं और दयालु भी हैं। शिवलिंग के दाहिनी ओर पर मौजूद शिव का यह स्वरूप उत्तरी […]

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सचेतन :95 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- सद्योजात, पृथ्वी तत्व के अवतार

श्वेतलोहित नामक उन्नीसवें कल्प में शिवजी का सद्योजात नामक अवतार हुआ है। यही शिवजी का प्रथम अवतार कहा जाता है।१०००चतुरयुगी का एक कल्प होता है। सद्योजात का अर्थ है की जिसने अभी या कुछ ही समय पहले जन्म लिया हो। यह ऐसे भाव को दर्शाता है की मानो एक माँ नवजात शिशु को बार-बार दुलार […]

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सचेतन :94 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- सद्योजात, पृथ्वी तत्व के अवतार 

समय की एक गति के रूप में परिकल्पना की गई है, जिसके अनुसार सृष्टि की एक निश्चित शुरुआत तथा अंत है। यह एक सर्वव्यापी सर्वज्ञ ईश्वर की रचना है।सृष्टि अनादि काल से आरंभ विलय का विषय रहा है। यह अनंतकाल तक ऐसा ही रहेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार सृष्टि की रचना एक सर्वव्यापी विस्फोट के साथ […]

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सचेतन :93 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- अर्द्धनारीश्वर प्रसंग- मैथुनी (प्रजनन) सृष्टि का निर्माण 

ब्रह्माजी की प्रार्थना को मानते हुए देवी जगदंबा ने दक्ष की पुत्री होना स्वीकार कर लिया। यह कहकर देवी शिवा ने भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर लिया। तत्पश्चात शिव-शिवा वहां से अंतर्धान हो गए। तभी से शिव-शिवा का अर्द्धनारीश्वर रूप विख्यात हुआ और इस संसार में स्त्री जाति की रचना संभव हुई।  ब्रह्माजी […]

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सचेतन :92 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- मानसी और मैथुनी सृष्टि और मनु तथा शतरूपा की उत्पत्ति 

#ShatRudraSamhita   https://sachetan.org/ शिवजी ने जब अपने शरीर से देवी शिवा को अलग कर दिया और ब्रह्माजी देवी शिवा की स्तुति करने लगे और कहने लगे, देवी! भगवान शिव की ही कृपा से इस सृष्टि का सृजन हुआ है और इस सृष्टि का विस्तार तभी संभव है, जब मैथुनी सृष्टि की रचना हो।  सृष्टि दो […]

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सचेतन :91 श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- अर्द्धनारीश्वर का दर्शन 

#RudraSamhita   https://sachetan.org/ श्री शिव पुराण का शतरुद्र संहिता भगवान शिव के सर्वव्यापक होने का और उनके असंख्य अवतार लेने का व्याख्यान है। शतरुद्र संहिता का वर्णन नंदीश्वर ने किया है।  सूत जी बोले – हे शौनक जी ! भगवान शिव के सर्वव्यापक होने का और उनके असंख्य अवतार लेने का यह बात पूर्व में […]

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सचेतन :90 श्री शिव पुराण- अर्धनारीश्वर का अर्थ 

#RudraSamhita   https://sachetan.org/ अर्धनारीश्वर का अर्थ – सृष्टि के निर्माण के लिए, शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से अलग किया। शिव स्वयं पुरूष लिंग के द्योतक हैं तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक हैं | पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एक होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः […]