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सचेतन 116 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  किसी भी कार्य का निरंतर अभ्यास ही रूद्र है

रूद्र, ब्रह्मांड की रचनात्मक ऊर्जा प्राप्त करने में हम सब की मदद करता है। भगवान शिव का ‘तत्पुरुष’ नामक तीसरा अवतार पीतवासा नाम के इक्कीसवें कल्प में हुआ । ब्रह्मा जी जब सृष्टि रचना के लिए व्यग्र होने लगे तब भगवान शंकर ने उन्हें ‘तत्पुरुष रूप’ में दर्शन देकर रुद्र गायत्री-मन्त्र का उपदेश किया- ‘तत्पुरुषाय […]

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सचेतन 115 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तन्नो रुद्र: प्रयोदयात्

आत्मा, परमात्मा या फिर स्वयं की खोज का अभ्यास ही रूद्र है  भगवान शिव के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष है। तत्पुरुष का अर्थ है अपने आत्मा में स्थित रहना। पूर्वमुख का नाम ‘तत्पुरुष’ है। तत्पुरुष वायुतत्व के अधिपति है। तत्पुरुष तपोमूर्ति हैं। भगवान शिव का ‘तत्पुरुष’ नामक तीसरा अवतार पीतवासा नाम के इक्कीसवें कल्प […]

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सचेतन 114 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष रूप में स्वतंत्रता का आधार 

हम चाहे किसी भी धर्म, वंश, जाति, लिंग, संप्रदाय के हों और यहाँ तक की जन्‍म का स्‍थान भी भिन्न भिन्न हो अगर हमारे साथ भेदभाव का निषेध होता है तो यही समान अवसर कहलता है। अगर हम अपनी भाषा और विचार को स्‍वतंत्रता रूप से प्रकट कर सकते हैं कहीं  आने-जाने, निवास करने और […]

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सचेतन 113 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष रूप में स्वतंत्रता का आधार 

भगवान शिव का तत्पुरुष स्वरूप हमारे स्वतंत्र होने के स्वरूप का बोध कराता है। जहां से हम बंधन मुक्त हो कर जीना शुरू करते हैं। और यह पूर्णतया मानसिक रूप से स्वतंत्र होने का सूचक है। हम सभी का व्यक्तित्व भिन्न है। यही हर व्यक्तियों में पाई जाने वाली असमानता भी है। एक व्यक्ति का […]

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सचेतन 112 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष रूप में कर्म और करण एक स्वतंत्र और आध्यात्मिक जीवन का बोध दिलाता है।

भगवान शिव का तत्पुरुष स्वरूप हमारे स्वतंत्र स्वरूप का बोध है। जहां हम बंधन मुक्त हो कर जीते हैं। बंधन मुक्ति का रास्ता हमारे कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, संबंध और अधिकरण से हो कर जाता है। हम सभी को स्वतंत्रता चाहिए लेकिन कैसी? एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक गांव से दूसरे […]

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सचेतन 111 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष रूप से हमारे सुख और दुख के कारण का बोध होता है।

मनुष्य जो कुछ भी करता है उससे कोई फल उत्पन्न होता है। यह फल शुभ, अशुभ अथवा दोनों से भिन्न होता है। फल का यह रूप क्रिया के द्वारा स्थिर होता है। दान शुभ कर्म है पर हिंसा अशुभ कर्म है। कभी कभी यह बात इस भावना पर आधारित होता है कि क्रिया सर्वदा फल […]