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सचेतन 198: सत्य के लिए प्यासे हो सकें

आत्म ज्ञान के प्रश्न के साथ ही उत्तर है और वह उत्तर आपके भीतर से उपलब्ध होता है। अंतिम रूप से आज तो सिर्फ प्रश्न उठाता हूं, वह आपके भीतर गूंजे, मैं कौन हूं?  आज तो प्रश्न खड़ा करता हूँ उस प्रश्न को साथ लिए जाएं। रात उसे साथ लिए सो जाएं और थोड़ा प्रयोग […]

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सचेतन 197: परमात्मा की खोज के मार्ग

ज्ञान का अवतरण तब होगा जब आप अपने अज्ञान को पूरी तरह स्वीकार कर लेंगे जब कभी भी आपसे पूछा जाता है की आपके भीतर कौन है? तो आप कह देते हैं  -आत्मा। यह उत्तर आपकी स्मृति ने सीख रखा है हम सचेतन स्वयं की खोज पर चर्चा कर रहे हैं तो उत्तर जो स्मृति […]

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सचेतन 196: अस्मिता (ईगो) आपके जीवन का क्लेश स्वरूप है

अस्मिता, अहंकार आपका निर्माण है, जिसको आप क्रिएशन कहते हैं  जब जब हमारा अहंकार जितना-जितना पुष्ट हो जाता है स्वयं को जानना उतना ही असंभव हो जाता है। जितनी अस्मिता गहरी हो जाती है। यह जो ईगो है, यह जो मैं हूँ, यह जितना सख्त और ठोस हो जाता है उतना ही उसे जानना मुश्किल […]

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सचेतन 195: अहंकार मांगता है न्यूनता

अहंकार जितना-जितना पुष्ट हो जाता है स्वयं को जानना उतना ही असंभव हो जाता है। किसी भी चीज को इकट्ठा करने से अहंकार पैदा होता है त्याग करने से प्रशंसा और आदर मिलता हो तो तब भी आपके अहंकार को तृप्ति मिलती है जो चीज हमें अच्छा लगने लगता है फिर हम उसको और इकट्ठा […]

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सचेतन 194: किसी भी चीज को इकट्ठा करने से अहंकार पैदा होता है

त्याग करने से प्रशंसा और आदर मिलता हो तो तब भी आपके अहंकार को तृप्ति मिलती है   पिछले विचार के सत्र में मैंने कहा था की अज्ञानता भय पैदा करती है क्योंकि जब आप स्वयं को ढूँढते हो तो आप कोई ना कोई परिचय का सहारा लेना शुरू करते हो और आप उसे पकड़ लेते […]

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सचेतन 193: अज्ञानता भय पैदा करती है 

जो खाली जगह में खड़े होने को राजी हो जाता है वही स्वयं को जान पाता है। ‘मैं’ का तो हमें कोई भी पता नही है। यहाँ तक की मेरा नाम, मेरा घर, मेरा वंश, मेरा राष्ट्र, मेरी जाति, मेरा धर्म यह मेरा होना नहीं है।हमने तो यह सब तोते कि भांति दोहराते हुए अब […]

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सचेतन 192: सांसारिक या फिर आध्यात्मिक परिचय भी आपका आत्म-परिचय नहीं है।

जब तक हम बाहर से आए हुए शब्दों को पकड़ते हैं तब तक हम स्वयं से परिचित नहीं हो सकेंगे कहानी में जब संन्यासी ने राजा के प्रश्न ‘क्या मुझे परमात्मा से मिला सकेंगे?’ के जबाब में कहा की आप ईश्वर से मिलना चाहते हैं तो क्या आप थोड़ी देर रुक सकते हैं या बिलकुल […]

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सचेतन 191: जिस दिन स्वयं को पा लोगे उस दिन परमात्मा को भी पा लोगे 

जो मेरे भीतर है और जो किसी और के भीतर है और जो सबके भीतर है, वह बहुत गहरे में संयुक्त है, और एक है और समग्र है।  कहानी में एक संन्यासी एक राजा के घर मेहमान था। उस राजा ने सुबह ही आकर उस संन्यासी को पूछा, मैं सुनता हूं कि आप परमात्मा की […]

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सचेतन 190: कोई विश्वास कभी ज्ञान नहीं होता

स्वयं की स्मृति में, स्वयं के संबंध में प्रचलित सिद्धांत सबसे बड़ी बाधाएं हैं। हमने कहा था की समय रहते ही हम आज के लिए सचेत हो जायें। जीवन का संबंध उस तथ्य से है की जिस भांति हम जीवन को जी रहे हैं इसीलिए कल की आशा पर की कल सब ठीक हो जाएगा […]

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सचेतन 189: आत्म स्मृति से क्रांति उत्पन्न हो सकती है

क्या आपका मन आपके जीवन में प्रेम के संगीत का अनुभव करता है?  अज्ञानता का अंधकार बहुत घना है। हम मनुष्य-जाति के पिछले तीन-चार हजार वर्षों से इसी अंधकार का इतिहास बनते जा रहे हैं जो सिर्फ़ संघर्ष, युद्ध, हिंसा, ईर्ष्या, घृणा, क्रोध और विध्वंस करती है।अज्ञानता ही हमारे सारे दुख और असफलता का कारण […]