उपमन्यु का उपवास उपमन्यु महर्षि आयोद धौम्य के शिष्यों में से एक थे। इनके गुरु धौम्य ने उपमन्यु को अपनी गाएं चराने का काम दे रखा थ। उपमन्यु दिनभर वन में गाएं चराते और सायँकाल आश्रम में लौट आया करते थे। एक दिन गुरुदेव ने पूछा- “बेटा उपमन्यु! तुम आजकल भोजन क्या करते हो?” उपमन्यु […]
Month: October 2023
सचेतन 232: शिवपुराण- वायवीय संहिता – मनःशक्ति के लिए प्राण को लय-तालयुक्त करें
श्वास-प्रश्वास की गति को लयबद्ध करना प्राणायाम है। मनःशक्ति के अभिवर्धन के लिए प्राण-प्रक्रिया को लय-तालयुक्त रखना आवश्यक है। प्रसन्नता, उत्फुल्लता, सरसता और स्फूर्ति की प्राप्ति का यही उपाय है। इसीलिए अगर आप मनःशक्ति के विकास के आकाँक्षी हैं तो लय-तालयुक्त श्वास-प्रक्रिया का अभ्यास अवश्य प्रारंभ कीजिए। प्राणायाम की विशिष्टता भी उसके लय-तालबद्ध होने में […]
सचेतन 231: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्राण विद्या
प्राण को प्रखर, पुष्ट, और संकल्प मय बनायें हम सभी सचेतन के दौरान ध्यान और प्राणायाम करते समय प्राण की जागरूकता रखें जिससे सारे हमचल, ताल, लय और प्राकृतिक सौंदर्य को हम देख पायेंगे और इसके आनन्द को महसूस भी कर पायेंगे। हमारी प्राण-शक्ति सक्रिय है और यह प्राणतत्व सर्वत्र नटराज की तरह हरेक वस्तु […]
सचेतन 230: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्राण-शक्ति सक्रिय है और इसके कुछ नियम हैं
सचेतन में जब हम सभी ध्यान और प्राणायाम करते वक़्त प्राण की जागरूकता बना कर रखें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हर एक वस्तु सृष्टि के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए निरन्तर गति एवं क्रिया के साथ स्फुरण रहती है यानी हरेक चीज में हलचल होता है। छोटे से छोटे परमाणु से लेकर ग्रह, नक्षत्र, सूर्य […]
सचेतन 229: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्राण से ही मानव शरीर में लय और ताल का संचारण हो रहा है।
प्राण से सम्वेदनाओं को समझने का अवसर मिलता है। अगर आप सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को महसूस करके देखिए तो पायेंगे की हर वस्तु में पूरी तरह से सृष्टि का अस्तित्व उसकी गति एवं क्रिया निरन्तर स्फुरण रहती है यानी हलचल का अनुभाव प्रत्येक वस्तु में है। छोटे से छोटे परमाणु से लेकर ग्रह, नक्षत्र, सूर्य सभी […]
सचेतन 228: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्राण वायु से रोगों का विनाश होता है
हमारे पांच प्राण और पांच उप-प्राण हैं अध्यात्म का ज्ञान शरीर को जानने से आरंभ होता है आत्मतत्त्व का साक्षात्कार करना है तो शरीर की शुद्धि आवश्यक है जो योग, ध्यान, आराधना और प्रार्थना से संभव है यानी आत्म ज्ञान का मार्ग सिद्धि कर्मों से खुलता है। उपमन्यु महर्षि आयोद धौम्य के शिष्यों में से […]
सचेतन 227: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आत्म ज्ञान का मार्ग सिद्धि कर्मों से खुलता है
प्राणियों का यह समागम भी संयोग-वियोग से युक्त हैं आपने आपको और स्वयं के गुण और शरीर को भी समझने के लिए विवेक चाहिए जिसको पार्थक्य ज्ञान कहते हैं। और मुनियों द्वारा वायु देवता से पूछे गये प्रश्न -बुद्धि, इन्द्रिय और शरीर से व्यतिरिक्त किसी आत्मा नामक वस्तु की वास्तविक स्थिति कहाँ है? और आत्मा […]
सचेतन 226: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आत्म विषय आपकी चेतना, बुद्धि, इन्द्रिय और शरीर से पृथक है।
अध्यात्म का ज्ञान शरीर को जानने से आरंभ होता है| आपको स्वयं के गुण को भी समझने के लिए विवेक चाहिए जिसको पार्थक्य ज्ञान कहते हैं। यानी पृथक या अलग होने वाली अवस्था का पता चलना या अलग अलग परिस्थितियों में उस घटना का भाव का पता चलना और यहाँ तक की एक वस्तु को […]
सचेतन 225: शिवपुराण- वायवीय संहिता – अभीष्ट इच्छा की वासना ही तमोगुण है
जब आप मन में बहुत सारी कामनाएँ और ख़ूब सारा ख़याली प्लाव पकाने लगते हैं तो तमोगुण का आगमन आपके अंदर होने लगता है। आपका गुण आपसे और आपके शरीर से बंधा रहता है यह आपसे बाहर नहीं है। हमारे अपने गुण के कारण ही जीवन में माया और भ्रम पैदा होता है। यह त्रिगुनात्मक […]
सचेतन 224: शिवपुराण- वायवीय संहिता – रजोगुण के कारण सुख की कल्पना प्रारंभ होती है
मैं सुखी हूँ! यह धर्म समझ कर आसक्त होने से आपके ज्ञान की वृत्ति धीरे धीरे अभिमान की तरफ़ बढ़ने लगती है आप अपने ज्ञानशक्ति और अपने कला के द्वारा क्रिया करते हैं तो आपका गुण विकसित होकर बाहर निकलता है। यह गुण तीन रूप में प्रकट होता है जो सत्त्व, रज और तम के […]