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सचेतन 252: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आनंदमय कोष तक स्पर्श करने के लिए शरीर के तीनों आयाम का योग आवश्यक है

आप स्वभाव से ही आनंदित हो सकते हैं। आनंदमय कोष या  करण-शरीर हमारे अनुभव को आनंदमय बनाता है लेकिन आपको प्रसन्नता से निर्मित स्व को समझना होगा!  उदाहरण के लिए, यदि आप चीनी के बारे में बात कर रहे हैं, तो आप कहते हैं कि वह मीठी है। मिठास चीनी का स्वभाव नहीं है। मिठास […]

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सचेतन 251: शिवपुराण- वायवीय संहिता -आनंदपूर्ण शरीर- आनंदमय कोष या करण-शरीर है

आपको प्रसन्नता से निर्मित स्व को समझना होगा  हमलोग पंचकोष के बारे में चर्चा कर रहे हैं जिसमें अन्नमय कोश – अन्न तथा भोजन से निर्मित हमारा शरीर और मस्तिष्क है। प्राणमय कोश – प्राणों से बना। यह हमारी  मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और उत्तम अवस्था का परत है। मनोमय कोश – मन […]

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सचेतन 250: शिवपुराण- वायवीय संहिता -विज्ञानमय कोष से रूपांतरण संभव है

यदि आप सूक्ष्म शरीर में जरूरी बदलाव लाते हैं, तो वह हमेशा के लिए होता है। पिछले विचार के सत्र में हमने पंचकोश के बारे में बात किया था जो मानव का अस्तित्व है और यह स्पर्श योग में आपके रूपांतरण का भी एक आयाम है, जिससे परिवर्तन संभव है! ये पाँच आवरण या परत […]

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सचेतन 249: शिवपुराण- वायवीय संहिता – पंचकोश मानव का अस्तित्व है 

स्पर्श योग में आपका रूपांतरण भी एक आयाम है, जो संभव है!  योग की धारणा के अनुसार मानव का अस्तित्व पाँच भागों में बंटा है जिन्हें पंचकोश कहते हैं या यूँ कहें की ये पाँच आवरण या परत है। ये कोश एक साथ विद्यमान अस्तित्व के विभिन्न तल समान होते हैं। विभिन्न कोशों में चेतन, […]

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सचेतन 248: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्रपंच का शमन आवश्यक है

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सचेतन 247: शिवपुराण- वायवीय संहिता – मंत्रयोग से स्पर्शयोग तक पहुँचने के लिए प्राणायाम का अभ्यास करना होगा

प्राणायाम करते समय आप आपने बाहर और भीतर हो रहे शब्दों को ध्यान से सुने तो लगेगा की आपको मन की एकाग्रता चाहिए!  हमने शिवपुराण में मंत्र योग, स्पर्श योग, भावयोग, अभाव योग और महायोग, पांच प्रकार के योग के बारे में ज़िक्र किया था। अगर आप योग का अभ्यास करना चाहते हैं तो ऐसी […]

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सचेतन 246: शिवपुराण- वायवीय संहिता – बालक सुतनु द्वारा मातृका का ज्ञान

तर्कों के अध्ययन से मन में केवल भ्रम हो सकता है।  एक बार की बात है की मन में मातृका शक्ति यानी मंत्र के महत्व और इसके प्रभाव  के प्रश्नों को लेकर ब्राह्मण यानी जानकार व्यक्ति की खोज के लिए नारद जी कलाप ग्राम पहुंचे। कहते हैं की कलाप ग्राम वह स्थान है, जहां सतयुग […]

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सचेतन 245: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आपके विमर्श-शक्ति से उत्पन्न शब्द आपकी ‘पराशक्ति’ है

“सर्वोच्च ऊर्जा” या “श्रेष्ठ शक्ति” का संचार आपकी परिकल्पनाओं से एक निश्चित प्रभाव एवं सामर्थ्य के साथ दूसरों तक पहुँचता है। मंत्र साधना में वर्ण का महत्व सर्वोपरि है और वर्ण साधना हेतु उसमें स्थित शक्ति के स्वरूप, महिमा एवं मण्डल का ध्यान आवश्यक है। वर्ण का ध्वनि या उच्चारण करने से इसका प्रभाव विशेष […]

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सचेतन 243: शिवपुराण- वायवीय संहिता – मंत्रयोग में मातृका शक्ति स्वरूप है

मंत्र साधना में वर्ण का महत्व सर्वोपरि है  मंत्र,वर्ण या अक्षर ‘शब्द-ब्रह्म’ या ‘वाग्-शक्ति’ के स्वरुप हैं और इनका सूक्ष्म रुप ‘विमर्श-शक्ति’ है। आपका विमर्श-शक्ति यानी चिंतन से उत्पन्न शब्द और ज्ञान आपकी ‘परा वाक्’ कही जाती है और जिसमें स्फुरणा यानी अंतःप्रेरणा या आपके भीतर की स्वाभाविक प्रेरणा  होती है। यह स्वाभाविक प्रेरणा ही […]

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सचेतन 243: शिवपुराण- वायवीय संहिता – महर्षि वाल्मीकि का मंत्रयोग

रत्नाकर “मरा मरा” का उच्चारण और तपस्या में लीन हो कर ब्रह्माजी का दर्शन किए और वाल्मीकि बिन गये  पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था। उनके पिता ब्रह्माजी के मानस पुत्र प्रचेता थे। प्रचेता का अर्थ है की जो संवेदनाओं के रूप में सक्रिय इंद्रियों के विकास के माध्यम से […]