हनुमान जी ने सोचा— यदि मैं सीताजी को देखे बिना ही यहाँ से वानरराज की पुरी किष्किन्धा को लौट जाऊँगा तो मेरा पुरुषार्थ ही क्या रह जायगा? फिर तो मेरा यह समुद्रलंघन, लंका में प्रवेश और राक्षसों को देखना सब व्यर्थ हो जायगा। किष्किन्धा में पहुँचने पर मुझसे मिलकर सुग्रीव, दूसरे-दूसरे वानर तथा वे दोनों […]
Month: February 2024
सचेतन 2.44: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – धर्मलोप की आशंका
महाकपि हनुमान् जी को धर्म के भय से शंकित होना हनुमान जी ने अन्तःपुर और रावण की पानभूमि में सीता जी का पता लगाते लगाते वहाँ महाकाय राक्षसराज के भवन में गये जहां सम्पूर्ण मनोवाञ्छित भोगों से सम्पन्न मधुशाला थी और उसमें अलग-अलग मृगों, भैंसों और सूअरों के मांस रखे गये थे, जिन्हें हनुमान जी […]
सचेतन 2.43: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण के पानभूमि (मदिरालय) और भिन्न भिन्न मदिरा का वर्णन
अंतःपुर में सोती हुई स्त्रियों को देखते-देखते महाकपि हनुमान् धर्म के भय से शंकित हो उठे। हमने बात किया था की अनुमान से ज्ञान का होना और हनुमान जी मंदोदरी को सोती देखकर प्रत्यक्ष (इंद्रिय सन्निकर्ष) में सोच रहे थे की यही सीता माता हैं लेकिन जब उनको सीता जी के अस्तित्व का ज्ञान और […]
सचेतन 2.41: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अन्तःपुर में सोये हुए रावण का वर्णन
हनुमान जी अंतःपुर का विचरण करते करते सोचा की, निश्चय ही सीता गुणों की दृष्टि से रावण की सभी भार्याओं की अपेक्षा बहुत ही बढ़-चढ़कर हैं। फिर हनुमान जी और आगे बढ़े अन्तःपुर में सोये हुए रावण को देखा। वहाँ इधर-उधर दृष्टिपात करते हुए हनुमान जी ने एक दिव्य एवं श्रेष्ठ वेदी देखी, जिस पर […]
सचेतन 2.39: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – सर्वार्थसिद्धि की प्राप्ति है रामायण कथा
सुन्दरकाण्ड – सर्वार्थसिद्धि की प्राप्ति के लिए होता है। राम की जीवन-यात्रा के सात काण्ड- बालकाण्ड, अयोध्यकाण्ड, अरण्यकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, लङ्काकाण्ड और उत्तरकाण्ड। लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप में सुन्दरकाण्ड मानवीय जीवन में आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला है।कहते हैं की हे रघुनाथ जी आप सबके अंतरात्मा हैं। हनुमान जी उचित ज्ञान और प्रभु के आशीर्वाद से […]
सचेतन 2.38: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण की हवेली स्त्रियों से प्रकाशित एवं सुशोभित होता था।
स्वर्ग जैसे भोगावशिष्ट पुण्य इन सुन्दरियों के रूपमें एकत्र थी तदनन्तर हनुमान् जी आगे बढ़ने पर एक बहुत बड़ी हवेली देखी, जो बहुत ही सुन्दर और सुखद थी। वह हवेली रावण को बहुत ही प्रिय थी, ठीक वैसे ही जैसे पति को कान्तिमयी सुन्दरी पत्नी अधिक प्रिय होती है। उसमें मणियों की सीढ़ियाँ बनी थीं […]