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सचेतन 2.61: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – भयानक रूप से सामने आने वाली ही राक्षिसी होती है

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सचेतन 2.60: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – स्वामी ही गुरु हैं, और उनमें ही अनुरक्तता होना चाहिए

सीता जी को क्रमशः त्रिजटा तत्पश्चात् एकजटा आदि राक्षसीयों ने क्रोध से लाल आँखें डराया और रावण के प्रति झुकाने की कोशिश भी किया और कहा की ‘देवि! मैंने तुमसे उत्तम, यथार्थ और हित की बात कही है। सुन्दर मुसकानवाली सीते! तुम मेरी बात मान लो, नहीं तो तुम्हें प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा। सीताजी […]

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सचेतन 2.59: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – राक्षसियों का सीताजी को समझाना

जो स्त्री अपने से प्रेम नहीं करती, उसकी कामना करने वाले पुरुष के शरीर में केवल ताप ही होता है और अपने प्रति अनुराग रखने वाली स्त्री की कामना करने वाले को उत्तम प्रसन्नता प्राप्त होती है। रावण ने विभिन्न राक्षसियों को अनुकूल-प्रतिकूल उपायों से, साम, दान और भेदनीति से तथा दण्ड का भी भय […]

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सचेतन 2.58: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण आभूषणों से विभूषित होकर भी श्मशानचैत्य (मरघट में बने हुए देवालय)- की भाँति सीता जी को भयंकर प्रतीत होता था।

विभिन्न राक्षसियों का अनुकूल-प्रतिकूल उपायों से, साम, दान और भेदनीति से तथा दण्ड का भी भय दिखाकर विदेहकुमारी सीता को वश में लाने की चेष्टा करना।  कल मैंने बात किया था की काम (प्रेम) बड़ा टेढ़ा होता है और जिसके प्रति आप जैसे भी बँध जाते हैं वैसे ही उसके प्रति करुणा और स्नेह उत्पन्न […]

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सचेतन 2.57: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – काम (प्रेम) बड़ा टेढ़ा होता है

जिसके प्रति आप जैसे भी बँध जाते हैं वैसे ही उसके प्रति करुणा और स्नेह उत्पन्न हो जाता है।  मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना। रावण ने सीता जी से कहा की यदि महीने भर में यह कहा न माने तो मैं इसे तलवार निकालकर मार डालूँगा। और  भवन गयउ […]