0 Comments

सचेतन- बुद्धचरितम् 29 छब्बीसवाँ सर्ग : दुख से मुक्ति

बुद्ध के निर्वाण के अंतिम समय की बात है। एक त्रिदण्डी मुनि जिसका नाम सुभद्र था, वह बुद्ध को देखने और उनसे मिलने आया। वह बुद्ध से धर्म के बारे में जानना चाहता था, लेकिन उनके प्रमुख शिष्य आनन्द को यह चिंता थी कि शायद सुभद्र धर्म के बहाने वाद-विवाद करेगा, इसलिए उन्होंने उसे मिलने […]

0 Comments

सचेतन- बुद्धचरितम् 28 पच्चीसवाँ सर्ग प्रेम और शांति से विदाई

जब महात्मा बुद्ध ने निर्वाण (मोक्ष) की इच्छा से वैशाली नगर को छोड़ने का निश्चय किया, तब वहां के लोगों का दिल भर आया। लिच्छवि राजा सिंह और नगर के अनेक लोग गहरे दुःख में डूब गए। राजा सिंह ने बहुत विलाप किया, आँखों में आँसू भर आए। यह क्षण बुद्ध के जीवन का अत्यंत […]

0 Comments

सचेतन- बुद्धचरितम् 26 बुद्ध का तत्वज्ञान

दुखों से छुटकारा पाने के लिए अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path): यह आठ साधन हैं, जिनसे जीवन में शुद्धि और मुक्ति प्राप्त होती है: सरल शब्दों में निष्कर्ष: जन्म, बुढ़ापा और मृत्यु जैसे दुःख जीवन का स्वाभाविक हिस्सा हैं,परंतु बुद्ध ने सिखाया कि इच्छाओं को त्यागकर, सदाचारी जीवन अपनाकर और गहरे ध्यान द्वारा आत्मा को शुद्ध […]

0 Comments

सचेतन- बुद्धचरितम् 25- तेइसवाँ सर्ग बुद्ध और आम्रपाली

जब भगवान बुद्ध आम्रपाली के घर पधार गए, तो यह समाचार पूरे वैशाली नगर में फैल गया। लिच्छवि वंश के राजा और उनके साथी यह सुनकर बहुत उत्साहित हुए कि बुद्ध उनके नगर में हैं। वे सभी तुरंत बुद्ध के दर्शन करने आम्रपाली के निवास पर पहुँच गए। आम्रपाली का जन्म और प्रारंभिक जीवन: कहा […]

0 Comments

सचेतन- बुद्धचरितम् 24- 21 सर्ग बुद्ध और उनका धर्म-प्रसार

सचेतन- बुद्धचरितम् 24- 21 सर्ग बुद्ध और उनका धर्म-प्रसार  भगवान बुद्ध, जिन्हें हम तथागत भी कहते हैं, जब स्वर्ग में अपनी माता और वहाँ के देवताओं को धर्म की दीक्षा दे चुके, तो उन्होंने सोचा कि अब धरती पर चलकर अन्य लोगों को भी सत्य धर्म की शिक्षा दी जाए। “तथागत” शब्द पाली भाषा से […]

0 Comments

सचेतन- बुद्धचरितम् 23- 19-20 सर्ग – बुद्ध का चातुर्मास तक स्वर्ग में रुकना

जब महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान और उपदेशों से कई शास्त्रज्ञों को जीत लिया, तब वे राजगृह से अपने जन्म स्थान—अपने पिता राजा शुद्धोदन के नगर कपिलवस्तु की ओर लौटे। पुत्र के आने का समाचार सुनकर राजा शुद्धोदन बहुत प्रसन्न हुए। वे नगरवासियों के साथ बुद्ध से मिलने के लिए निकल पड़े। लेकिन जब उन्होंने […]

0 Comments

सचेतन- बुद्धचरितम् 22- अष्टादश सर्ग- बुद्ध विहार का निर्माण

एक दिन कोशल देश के प्रसिद्ध और धर्मप्रिय राजा सुदत्त को पता चला कि भगवान बुद्ध (सुगत) अपने अनुयायियों के साथ किसी स्थान पर निवास कर रहे हैं। यह जानकर वे अत्यंत श्रद्धा और विनम्रता के साथ बुद्ध के दर्शन करने पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने भूमि पर दण्ड की तरह गिरकर बुद्ध को प्रणाम किया। […]

0 Comments

सचेतन- बुद्धचरितम् 21 सत्रहवाँ सर्ग : बुद्ध के धर्म का सार

राजा विम्बसार ने महात्मा बुद्ध से निवेदन किया कि वे वेणुवन में निवास करें। बुद्ध ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और वेणुवन में शांतचित्त होकर रहने लगे। इसी समय एक दिन एक भिक्षु जिसका नाम अश्वजित था, जो इंद्रियों को जीतने वाला और संयमी था, भिक्षा के लिए नगर गया। जब वह रास्ते […]

0 Comments

सचेतन- बुद्धचरितम् 20, सर्ग १६: बुद्ध की दीक्षा 

महात्मा बुद्ध ने जब अपने पहले पाँच शिष्यों को दीक्षित कर धर्म में स्थापित कर दिया, तब इसके बाद एक और महत्वपूर्ण घटना घटी। एक दिन एक यश नाम का कुलीन युवक, जो अपनी स्त्रियों को गहरी नींद में सोता देख मन में गहरी वैराग्यता अनुभव कर रहा था, वह बुद्ध के पास पहुँचा। महात्मा […]

0 Comments

सचेतन:बुद्धचरितम्-19 सर्ग 14-15: आत्मज्ञान की ओर

चतुर्दश सर्ग की यह कहानी उस समय की है जब सिद्धार्थ (अब महामुनि) ने गहन ध्यान में बैठकर मार (माया और विकारों के देवता) की विशाल सेना को धैर्य और शांति के साथ पराजित किया था। अब उनके मन में संसार की अंतिम सच्चाई को जानने की गहरी इच्छा जाग उठी। वे ध्यान की गहराइयों […]