वेदांत सूत्र कुल चार अध्यायों में विभाजित है।ये चारों अध्याय केवल दर्शन नहीं बताते, बल्कि जीवन के चार कदम सिखाते हैं —ज्ञान से लेकर मुक्ति (आनंद) तक की यात्रा। क्रम अध्याय का नाम विषय जीवन से सम्बन्ध 1️⃣ समाधि / सम्बन्ध अध्याय ब्रह्म का स्वरूप बताता है कि ब्रह्म ही इस जगत का कारण, आधार […]
Category: Manushyat-मनुष्यत
सचेतन- 36 वेदांत सूत्र: जीवन के सूत्र और वेदांत सूत्र
“जीवन के सूत्र और वेदांत सूत्र” को समझना वास्तव में आत्म-ज्ञान की दिशा में पहला कदम है वेदांत सूत्र क्या है? “वेदांत सूत्र” जिसे “ब्रह्मसूत्र” भी कहा जाता है,भारतीय दर्शन का वह ग्रंथ है जो उपनिषदों की गूढ़ शिक्षाओं कोसंक्षिप्त, तार्किक और व्यवस्थित रूप में समझाता है। इसे महर्षि बादरायण (व्यासजी) ने रचा था।इसमें लगभग […]
सचेतन- 35 तैत्तिरीय उपनिषद् आत्मसंयम और ब्रह्मा
विषय: ब्रह्म ही आनंद है नमस्कार मित्रों,आप सुन रहे हैं “सचेतन यात्रा” —जहाँ हम उपनिषदों की वाणी से जीवन का सार खोजते हैं। आज हम बात करेंगे तैत्तिरीय उपनिषद् की एक अद्भुत वाणी की —“आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात्।” अर्थात् — आनंद ही ब्रह्म है। हम सब जीवन में आनंद चाहते हैं —कभी वस्तुओं में, कभी लोगों […]
सचेतन- 34 तैत्तिरीय उपनिषद् आत्मसंयम और ब्रह्मा
विषय: आत्मसंयम — भीतर की शक्ति नमस्कार दोस्तों!आप सुन रहे हैं “सचेतन यात्रा” — जहाँ हम उपनिषदों की गहराई से जीवन के सरल सत्य खोजते हैं।आज का विषय है — “आत्मसंयम — भीतर की शक्ति।” क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई कहाँ होती है?कहीं बाहर नहीं… बल्कि अपने ही […]
सचेतन- 33 तैत्तिरीय उपनिषद् आत्मसंयम और ब्रह्मा
नमस्कार मित्रों,आज हम बात करेंगे उपनिषदों के तीन अमूल्य रत्नों की —सत्य, आत्मसंयम, और आनंद की।ये तीनों हमारे जीवन को भीतर से उजाला देते हैं।उपनिषद् हमें बताते हैं —सच्चा सुख न बाहर है, न वस्तुओं में,बल्कि हमारे भीतर की शांति और सत्य में है। 1. सत्य — जीवन का दीपक उपनिषद् कहते हैं — “सत्यमेव […]
सचेतन- 32 : तैत्तिरीय उपनिषद् आनंद का क्रम — भीतर के सुख की यात्रा
नमस्कार मित्रों,आज हम बात करेंगे “आनंद के क्रम” की —यानी सुख से लेकर ब्रह्मानंद तक की यात्रा।यह सुंदर विचार हमें तैत्तिरीय उपनिषद् से मिलता है।उपनिषद् हमें सिखाता है —सच्चा आनंद बाहर नहीं, हमारे भीतर है।चलो, इसे बहुत सरल तरीके से समझते हैं। 1. मानव आनंद (मानुष आनंद) सबसे पहले आता है मानव आनंद —यानी हमारे […]
सचेतन- 31 : तैत्तिरीय उपनिषद् तप के रूप और आनंद का क्रम
उपनिषद् कहते हैं — “तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व।”अर्थात्, ब्रह्म को जानने की इच्छा हो तो तप करो — साधना करो। तप (Tapas) का अर्थ केवल कठोर व्रत या शरीर को कष्ट देना नहीं है,बल्कि मन, वाणी और कर्म को एकाग्र कर सत्य की खोज में लगाना है। 🌿 तप के तीन रूप हैं: जब साधक इन […]
सचेतन- 30: तैत्तिरीय उपनिषद् – “तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व — तपो ब्रह्मेति”
अर्थ — “तप के द्वारा ब्रह्म को जानने की इच्छा करो — तप ही ब्रह्म है।” तप का यहाँ अर्थ है — आत्म-संयम (Self-control), सत्यनिष्ठा (Truthfulness), शुद्ध आचरण (Pure conduct), निरंतर साधना (Continuous spiritual discipline) ये आत्म-विकास और आध्यात्मिक प्रगति के चार स्तंभ माने जाते हैं: इन चारों का समन्वय ही “सच्चे जीवन का धर्म” […]
सचेतन- 29: तैत्तिरीय उपनिषद् तपो ब्रह्मेति
हमने बात किया की –अन्नमय कोश – “अन्नं ब्रह्मेति” शरीर अन्न से बना है। भोजन से पोषण होता है, उसी से हड्डी-मांस बनता है। शरीर बिना भोजन टिक नहीं सकता। इसलिए अन्न को ब्रह्म कहा गया।प्राणमय कोश – “प्राणो ब्रह्मेति”, प्राण (श्वास और ऊर्जा) ही जीवन का आधार है। इसमें पाँच प्राण काम करते हैं: […]
सचेतन- 28: तैत्तिरीय उपनिषद् आनन्दमिमांसा का रहस्य-2
उपनिषद् का रहस्य सरल उपमा में कल्पना करो — लेकिन चाहे दीपक कितने भी बढ़ जाएँ, वे सूर्य के प्रकाश के सामने तुच्छ हैं।दीपक = सीमित सुख।सूर्य = ब्रह्मानन्द (अनंत सुख)। भौतिक और दैवी सुख — इंद्रिय और मन पर आधारित, सीमित और नश्वर।ब्रह्मानन्द — आत्मा और ब्रह्म की एकता से उत्पन्न, असीम और शाश्वत। […]
