“हम जीवन भर बहुत कुछ करते रहते हैं…पूजा, जाप, यात्रा, योग, ध्यान… लेकिन एक सवाल चुपचाप खड़ा रहता है—क्या इससे सचमुच मुक्ति मिलती है? शंकराचार्य इस श्लोक मेंबहुत स्पष्ट उत्तर देते हैं।” बोधोऽन्यसाधनेभ्यो हि साक्षान्मोक्षैकसाधनम्। पाकस्य वह्निवज्ज्ञानं विना मोक्षो न सिध्यति॥ “जैसे भोजन पकाने के लिएसीधे तौर पर आग ही चाहिए—वैसे ही मोक्ष के लिए […]
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सचेतन- 52 वेदांत सूत्र: समाधान — मन की स्थिरता
“क्या आपका मन एक जगह नहीं टिकता?और क्या इसी वजह से शांति बार-बार टूट जाती है?Vedanta कहता है — मन को स्थिर करना ही समाधान है।” “आपने गौर किया है?मन कहीं और होता है…और हम किसी और काम में।यही अस्थिरता हमारा सबसे बड़ा दर्द है।” “षट्सम्पत्ति का आख़िरी गुण ‘समाधान’ —मन को एक जगह स्थिर […]
सचेतन- 51 वेदांत सूत्र: श्रद्धा — विश्वास जो रास्ता दिखाता है
“ज़िंदगी में रास्ता नहीं दिखता, डर लगता है, मन उलझा रहता है…क्यों?क्योंकि जहाँ श्रद्धा कम होती है, वहाँ अंधकार ज़्यादा होता है।” “हम हर चीज़ का प्रूफ चाहते हैं—लेकिन क्या आपने ध्यान दिया?सबसे बड़े फैसले हम प्रूफ से नहीं, विश्वास से करते हैं।” “Vedanta कहता है—‘श्रद्धा के बिना ज्ञान भी फल नहीं देता।’आज हम समझेंगे […]
सचेतन- 50 वेदांत सूत्र: तितिक्षा — सुख–दुःख को शांति से सहने की सरल कला
“जीवन में सब कुछ मिलता है—कभी सुख, कभी दुख।कभी सम्मान, कभी अपमान।कभी गर्मी, कभी ठंड। ये सब बदलते रहते हैं…लेकिन एक चीज़ हमेशा आपके हाथ में है—आपका मन कितना शांत रहता है। Vedanta इस शांति को तितिक्षा कहता है—यानि सहनशीलता, परिस्थितियों को शांत मन से संभालने की कला।” छोटी-सी कहानी एक व्यक्ति रोज़ ऑफिस जाते […]
सचेतन- 49 वेदांत सूत्र: “उपरति: अनावश्यक चीज़ों से दूर होकर, अपना काम शांति से करना”
षट्संपत्ति को छः खजाने भी कहा जाता है—ये साधना को स्थिर करने की ताकत देते हैं: ये छह गुण साधक को भीतर से मजबूत बनाते हैं। (और यह गुण बचपन से बड़े होने तक कैसे बदलता है) नमस्कार साथियो, आज हम षट्संपत्ति के तीसरे गुण—उपरति (Uparati) की बात करेंगे।उपरति का अर्थ है—अनावश्यक चीज़ों से स्वाभाविक […]
सचेतन- 48 वेदांत सूत्र: “दम: इंद्रियों का स्वामी बनने की कला”
नमस्कार साथियो, आज हम बात करेंगे षट्सम्पत्ति के दूसरे सुंदर गुण—दम (Dama) के बारे में।दम का साधारण अर्थ है—इंद्रियों पर नियंत्रण,पर वेदांत में इसका मतलब इससे कहीं गहरा है। इंद्रियाँ हमें कहाँ खींचकर ले जाती हैं? हमारी पाँच ज्ञानेंद्रियाँ—आँखें, कान, नाक, जीभ और त्वचा—हर पल हमें दुनिया की ओर खींचती रहती हैं। ● कोई स्वादिष्ट […]
सचेतन- 47 वेदांत सूत्र: शम: मन को शांत करने की कला
वेदांत कहता है—“मन तैयार हो जाए, तो सत्य का अनुभव सहज हो जाता है।” सत्य कोई दूर की चीज़ नहीं है,और न ही यह किसी विशेष स्थान में छुपा हुआ है।सत्य तो हमारे भीतर ही है—बस मन की चंचलता, अशांति और इच्छाओं की धूल उसे ढँक देती है। इसीलिए आत्मज्ञान की यात्रा में कहा गया […]
सचेतन- 45 वेदांत सूत्र: विरह → विरक्ति → वैराग्य → संन्यास
वेदान्त की चार सीढ़ियाँनमस्कार दोस्तों,आप सुन रहे हैं सचेतन —जहाँ हम जीवन, मन और आत्मा के अनुभवों कोसरल भाषा में समझते हैं। आज का विषय है—विरह, विरक्ति, वैराग्य और संन्यास वेदान्त में ये चारों एक गहरी, आंतरिक यात्रा के चरण हैं।बाहरी दुनिया से भीतर की ओर लौटने की यात्रा। विरह — दूरी का दर्द विरह […]
सचेतन- 43 वेदांत सूत्र: विवेक : क्या सच में हमारा है, और क्या सिर्फ़ कुछ समय का अतिथि
नमस्कार,मैं आपका स्वागत करता हूँ सचेतन की इस कड़ी में। आज हम बात करेंगे—विवेक, यानी वह आंतरिक प्रकाश जो हमें दिखाता है किजीवन में क्या वास्तव में हमारा हैऔर क्या केवल कुछ समय के लिए आया हुआ अतिथि। 1. विवेक क्या है? विवेक का अर्थ है—जीवन में होने वाली हर घटना, हर संबंध, हर वस्तु […]
सचेतन- 41 वेदांत सूत्र: “मोक्ष: जीते-जी मुक्त होने का आनंद”
सचेतन- 41 वेदांत सूत्र: “मोक्ष: जीते-जी मुक्त होने का आनंद”(The Joy of Realizing Oneness) नमस्कार दोस्तों 🌸स्वागत है “जीवन के सूत्र” में।आज हम बात करेंगे वेदांत के चौथे अध्याय — फल अध्याय — की,जहाँ एक साधक की साधना का अंतिम फल बताया गया है। वह फल है — जीव और ब्रह्म की एकता का अनुभव,और […]
