धन्यवाद केवल औपचारिक “शब्द” नहीं है — यह हमारे रिश्तों की गहराई और मूल्य की पहचान का प्रतीक है। जब हम किसी को धन्यवाद देते हैं, तो हम यह स्वीकार करते हैं कि उस व्यक्ति ने हमारे जीवन में कोई सकारात्मक असर डाला है। एक रिश्ते में: इसलिए — जिस रिश्ते में धन्यवाद है, वो […]
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सचेतन- 12: अहं ब्रह्मास्मि
“मैं ब्रह्म हूँ” — यानी “मैं खुद उस परम शक्ति का हिस्सा हूँ।” यह बात बताती है कि: 👉 हमारे अंदर वही चेतना है जो पूरे ब्रह्मांड में है।👉 हम छोटे नहीं हैं, हम उसी अनंत शक्ति से जुड़े हैं।👉 जब हम सच्चा ज्ञान, प्रेम और आत्म-चिंतन करते हैं, तब हमें यह समझ आता है […]
सचेतन- 01: “परीक्षा: डर नहीं, अवसर है विकास का!”
सचेतन- 01: “परीक्षा: डर नहीं, अवसर है विकास का!” नमस्कार! आप सुन रहे हैं “सचेतन”, एक विचार जहाँ हम बात करते हैं आपके मन, आत्मविश्वास और जीवन के छोटे-छोटे लेकिन ज़रूरी पहलुओं की। आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे विषय की जो हम सबके जीवन में कभी ना कभी आता है — […]
सचेतन 3.30 : शिक्षक दिवस: सम्मान और संस्कार का महत्व
सचेतन 3.30 : शिक्षक दिवस: सम्मान और संस्कार का महत्व नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपके पसंदीदा “सचेतन” कार्यक्रम में, और आज हम बात करेंगे एक ऐसे खास दिन के बारे में, जो न केवल शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि हमारे शिक्षकों के प्रति सम्मान और संस्कार की भावना को भी उजागर करता […]
सचेतन 3.19 : आध्यात्मिक स्वतंत्रता: आत्मा की मुक्ति की यात्रा
नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष सचेतन के इस विचार के सत्र में. आज हम एक गहरे और सार्थक विषय पर चर्चा करेंगे, जिसे हम “आध्यात्मिक स्वतंत्रता” कहते हैं। आध्यात्मिक स्वतंत्रता का अर्थ क्या है? यह कैसे प्राप्त होती है, और हमारे जीवन में इसका क्या महत्व है? आइए, इस विषय पर गहराई […]
सचेतन 165 : शंकराचार्य सनातन धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है
जगद्गुरु के तौर पर सत्ययुग में वामन, त्रेतायुग में सर्व गुरू ब्रम्हर्षि वशिष्ठ थे, द्वापर के सर्वगुरू वेदव्यास थे। आदिशङ्कराचार्य ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और […]
सत्य की महिमा
कल्याण की भावना को हृदय में बसाकर ही व्यक्ति सत्य बोल सकता है सत्य ही परब्रह्म है, सत्य ही परम तप है, सत्य ही श्रेष्ठ यज्ञ है और सत्य ही उत्कृष्ट शास्त्रज्ञान है। सोये हुए पुरुषों में सत्य ही जागता है, सत्य ही परमपद है, सत्य से ही पृथ्वी टिकी हुई है और सत्य में […]
सचेतन :68 ॐ तत्वमसि’ महावाक्य का दृष्टिगोचर शब्द ज्ञान से संभव है
सचेतन :68 श्री शिव पुराण- ॐ तत्वमसि’ महावाक्य का दृष्टिगोचर शब्द ज्ञान से संभव है #RudraSamhita जब आपके आंतरिक शरीर में ऋषि जैसे विशिष्ट व्यक्ति के समान अपकी विलक्षण एकाग्रता हो जाएगा तो उसके बल पर गहन ध्यान में आप विलक्षण शब्दों के दर्शन करके उनके गूढ़ अर्थों को जान सकेंगे। शब्द की सिद्धि के […]