🕉️ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म को जानना: 🌟 ब्रह्म को जानने का परिणाम: 📖 एक सरल उदाहरण: जैसे समुद्र की लहरें समुद्र से अलग नहीं होतीं, वैसे ही आत्मा ब्रह्म से अलग नहीं है।ब्रह्म को जानना = यह जानना कि मैं लहर नहीं, मैं स्वयं समुद्र हूँ। 1. अहं ब्रह्मास्मि (Aham Brahmasmi) – मैं ब्रह्म […]
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सचेतन- 6: निदिध्यासन – आत्मा का साक्षात्कार
स्वामी विवेकानंद कहते थे — “जब विचारों का शुद्धिकरण हो जाता है, तब मन सत्य में स्थित होता है। तब ज्ञाता और ज्ञेय के बीच भेद मिट जाता है। यही है निदिध्यासन — आत्मा के स्वरूप में स्थित हो जाना।” निष्कर्ष निदिध्यासन आत्म-चिंतन की वह पराकाष्ठा है, जहाँ ‘जानना’ और ‘हो जाना’ एक हो जाता […]
सचेतन- 5: सत्य पर गहन ध्यान
निदिध्यासन (Nididhyasanam) – “ध्यान और आत्मसात” सुने और समझे हुए ज्ञान को ध्यानपूर्वक आत्मसात करना, अर्थात उस ज्ञान को अपने जीवन और चेतना में पूरी तरह उतारना। निदिध्यासन (Nididhyasana) – सत्य पर गहन ध्यान निदिध्यासन का अर्थ है — किसी सत्य, विचार, मंत्र या उपदेश पर बार-बार, एकाग्र होकर ध्यान करना। यह केवल सोचने भर […]
सचेतन- 4: चिंतन और संशय निवारण: चेतना का मार्ग
संशय का अर्थ होता है — संदेह या शंका। लेकिन यह केवल नकारात्मक भावना नहीं है। भारतीय दर्शन में संशय को चिंतन का पहला चरण माना गया है। 🌿 संशय – आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी संशय वही अवस्था है जब मन प्रश्न करता है: इन्हीं प्रश्नों से मनन की शुरुआत होती है। संशय हमारी चेतना […]
सचेतन- 3: चिंतन और संशय निवारण चेतना का मार्ग खोलती है
चेतना को जानने के तीन मार्ग मनन (Mananam) – “चिंतन और संशय निवारण” परिभाषा: श्रवण से प्राप्त ज्ञान पर गहराई से विचार करना और उसमें उत्पन्न संदेहों को दूर करना – यही मनन है। महत्व: कैसे करें: यथा याज्ञवल्क्य और गार्गी के बीच संवाद में, गार्गी ने बार-बार प्रश्न पूछे। यह मनन का उदाहरण है […]
सचेतन- 2: सुनने मात्र से चेतना की जागृति का मार्ग
चेतना को जानने के तीन मार्ग 1. श्रवण (Shravanam) – “सुनना और ग्रहण करना” परिभाषा: श्रवण का अर्थ है – गुरु या आचार्य से वेद, उपनिषद, भगवद्गीता जैसे शास्त्रों का ज्ञान श्रद्धा और ध्यानपूर्वक सुनना। महत्व: कैसे करें: कहानी: अर्जुन का श्रवण – समर्पण से ज्ञान की ओर कुरुक्षेत्र का मैदान युद्ध के लिए तैयार […]
सचेतन- 1: चेतना क्या है? Consciousness
चेतना का अर्थ है — जागरूकता, यानी अपने विचारों, भावनाओं, शरीर और आसपास की दुनिया के प्रति सचेत होना। 🌼 सरल शब्दों में: जब आप जानते हैं कि आप कौन हैं, कहाँ हैं, क्या सोच रहे हैं, और क्या महसूस कर रहे हैं — तो आप चेतन हैं। 🌟 उदाहरण: 🧠 वैज्ञानिक दृष्टिकोण: चेतना मस्तिष्क […]
सचेतन- 15: धन्यवाद और रिश्तों में सिद्धता
धन्यवाद केवल औपचारिक “शब्द” नहीं है — यह हमारे रिश्तों की गहराई और मूल्य की पहचान का प्रतीक है। जब हम किसी को धन्यवाद देते हैं, तो हम यह स्वीकार करते हैं कि उस व्यक्ति ने हमारे जीवन में कोई सकारात्मक असर डाला है। एक रिश्ते में: इसलिए — जिस रिश्ते में धन्यवाद है, वो […]
सचेतन- 14: धन्यवाद देना और उसे आत्म साथ करना
“धन्यवाद देना और उसे आत्म साथ करना” — इस वाक्य का अर्थ गहराई से जुड़ा हुआ है विनम्रता, कृतज्ञता और आत्मविकास से। इसे दो भागों में समझा जा सकता है: 1. धन्यवाद देना (Gratitude) धन्यवाद देना केवल औपचारिक “शब्द” नहीं है, बल्कि यह मन का भाव है, जो यह दर्शाता है कि हम किसी व्यक्ति […]
सचेतन- 13: ध्यान-सूत्र: “दशाङ्गुलम् – उस पार भी कुछ है
“आप एक साथ बहुत कुछ सोचते हो, एक साथ अपनी सोच के माध्यम से कई जगह पहुँच जाते हो, फिर भी कुछ शेष रह जाता है” —अद्भुत है। यह ठीक उसी तरह है जैसे हमारा मन, चिंतन और कल्पना बहुत विशाल है — वह कई संभावनाओं तक एक साथ पहुंच सकता है, लेकिन पूर्णता फिर […]