सृष्टि में करोड़ों जीव हैं — कीड़े, मछलियाँ, पक्षी, पशु… लेकिन इंसान? संख्या में बहुत कम। क्यों? क्योंकि सिर्फ मनुष्य ही सोच सकता है, श्रद्धा रख सकता है, अपने जीवन के उद्देश्य को पहचान सकता है। यानी सिर्फ इंसान को ही ज्ञान, कर्म और आनंद — इन तीनों का अनुभव करने की पूरी क्षमता है।पेड़–पौधे […]
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सचेतन- 03 महापुरुषों का संग – आत्मज्ञान की सीढ़ी
महापुरुषों का संग।अगर हमें जीवन का सत्य जानना है, तो हमें किसी ज्ञानी गुरु के पास जाना होगा, जिससे हम यह अनुभव कर सकें कि — हम ब्रह्म हैं, हम वही चेतना हैं जो सब में व्याप्त है।गुरु की कृपा से ही अज्ञान मिटता है। महापुरुषों का संग – आत्मज्ञान की सीढ़ी अगर हमें इस […]
सचेतन- 02: मनुष्य जन्म: चेतना की उच्चतम अवस्था
सचेतन का कार्यक्रम धार्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि जीवन का दिशा–सूचक तारा है।यह हमें आलस्य, भ्रम और अज्ञान से मुक्त करके ज्ञान, कर्म और आत्मोन्नति की ओर ले जाता है। मनुष्य जन्म का आध्यात्मिक अर्थ क्या है? मनुष्य जन्म कोई सामान्य बात नहीं है। यह परमात्मा का दिया हुआ एक विशेष अवसर है — स्वयं को […]
सचेतन- 01: मनुष्यत्व – इस जीवन का सच्चा मूल्य
Manushyattva (Human Birth) is Rare and Precious नमस्कार! स्वागत है आपका सचेतन के इस खास एपिसोड में। आज हम बात करेंगे – मनुष्यत्व की, यानी मनुष्य-जन्म की महत्ता और उसका आध्यात्मिक रहस्य। क्या आपने कभी सोचा है कि हम इंसान बने — यह कितनी बड़ी बात है? जी हाँ, वेद और उपनिषद में यह स्पष्ट […]
सचेतन- 19: अनुभूति
🌸 यही अनुभूति वह पुल है… जो सिर्फ पढ़े या सुने गए ज्ञान को नहीं,बल्कि उसे हमारे दिल और आत्मा से गहराई से जोड़ती है। हममें से बहुत से लोग जीवन भर किताबें पढ़ते हैं, भाषण सुनते हैं, बातें समझते हैं —पर जब तक वह ज्ञान केवल दिमाग तक सीमित रहता है,वह बाहरी जानकारी ही […]
सचेतन- 18: ध्यान और मनन (Meditation & Contemplation)
प्रज्ञा केवल ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभव है — प्रज्ञा: ज्ञान से आगे, अनुभव की ओर ले जाता है। प्रज्ञा का अर्थ केवल पढ़ा-पढ़ाया हुआ ज्ञान नहीं है।यह वह गूढ़ बुद्धि है जो तब जागती है जब हम ज्ञान को आत्मा में जीते हैं,जब सत्य केवल समझा नहीं जाता — अनुभव किया जाता है।और यह […]
सचेतन- 17: बालक श्वेतकेतु की विवेक यात्रा
📜 छांदोग्य उपनिषद में बालक श्वेतकेतु की विवेक यात्रा में कहा गया है: “विवेक ही मनुष्य का श्रेष्ठ गुण है, जो उसे पशुता से ईश्वरत्व की ओर ले जाता है।” “पशुता से ईश्वरत्व” का अर्थ है — एक साधारण, इच्छाओं और संवेदनाओं में उलझे हुए मनुष्य का विकास करके एक उच्च, शांत, और दिव्य चेतना […]
सचेतन- 15: साक्षी भाव (Witness Consciousness)
जब हम साक्षी भाव में रहते हैं, तो हम अपने अनुभवों को सिर्फ अपने विचारों, भावनाओं, और घटनाओं को एक दर्शक की तरह देखना, “देखते” हैं — जैसे कोई फिल्म देख रहा हो — जुड़ा भी है, पर उसमें डूबा नहीं है। न जज करना, न रोकना, न पकड़ना — बस देखना, समझना और गुजर […]
सचेतन- 14: आत्मनिरीक्षण (Self-Reflection)
जब हम प्रज्ञा को विकसित करते हैं, तो हमारी चेतना भी गहराई पाती है। यह विकास चार चरणों में समझा जा सकता है: 🌱 1. आत्मनिरीक्षण (Self-reflection): प्रज्ञा हमें सिखाती है कि हम अपने विचारों और भावनाओं को बिना न्याय किए देखें।👉 इससे हम जान पाते हैं कि हम कौन हैं, क्या सोचते हैं, और […]
सचेतन- 13: प्रज्ञा से चेतना का विकास
🧠 प्रज्ञा से चेतना का विकास: चेतना का अर्थ है – जागरूकता।प्रज्ञा का अर्थ है – आत्मिक अनुभव से उत्पन्न गहरी बुद्धि। “आत्मिक अनुभव से उत्पन्न गहरी बुद्धि” का अर्थ है — ऐसा ज्ञान या समझ जो केवल पढ़ाई, तर्क या सोच से नहीं आता, बल्कि स्वयं के भीतर गहराई से अनुभव करके आता है। […]
