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सचेतन 2.49: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – भयंकर राक्षसियों से घिरी हुई सीता जी का दर्शन

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सचेतन 2.48: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – जीवित पुरुष ही कल्याण का भागी होता है

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सचेतन 2.47: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हनुमान्जी वानप्रस्थी बनाने का विचार किया

हनुमान जी ने सोचा— यदि मैं सीताजी को देखे बिना ही यहाँ से वानरराज की पुरी किष्किन्धा को लौट जाऊँगा तो मेरा पुरुषार्थ ही क्या रह जायगा? फिर तो मेरा यह समुद्रलंघन, लंका में प्रवेश और राक्षसों को देखना सब व्यर्थ हो जायगा।  किष्किन्धा में पहुँचने पर मुझसे मिलकर सुग्रीव, दूसरे-दूसरे वानर तथा वे दोनों […]

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सचेतन 2.46: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – आशंका से हनुमान्जी की चिन्ता

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सचेतन 2.45: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – उत्साह का आश्रय

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सचेतन 2.44: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – धर्मलोप की आशंका

महाकपि हनुमान् जी को धर्म के भय से शंकित होना  हनुमान जी ने अन्तःपुर और रावण की पानभूमि में सीता जी का पता लगाते लगाते वहाँ महाकाय राक्षसराज के भवन में गये जहां सम्पूर्ण मनोवाञ्छित भोगों से सम्पन्न मधुशाला थी और उसमें अलग-अलग मृगों, भैंसों और सूअरों के मांस रखे गये थे, जिन्हें हनुमान जी […]

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सचेतन 2.43: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण के पानभूमि (मदिरालय) और भिन्न भिन्न मदिरा का वर्णन

अंतःपुर में सोती हुई स्त्रियों को देखते-देखते महाकपि हनुमान् धर्म के भय से शंकित हो उठे।   हमने बात किया था की अनुमान से ज्ञान का होना और हनुमान जी मंदोदरी को सोती देखकर प्रत्यक्ष (इंद्रिय सन्निकर्ष) में सोच रहे थे की यही सीता माता हैं लेकिन जब उनको सीता जी के अस्तित्व का ज्ञान और […]

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सचेतन 2.42: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हनुमान जी का स्वार्थ अनुमान और परार्थ अनुमान लगाना

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सचेतन 2.41: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अन्तःपुर में सोये हुए रावण का वर्णन  

हनुमान जी अंतःपुर का विचरण करते करते सोचा की, निश्चय ही सीता गुणों की दृष्टि से रावण की सभी भार्याओं की अपेक्षा बहुत ही बढ़-चढ़कर हैं। फिर हनुमान जी और आगे बढ़े अन्तःपुर में सोये हुए रावण को देखा।  वहाँ इधर-उधर दृष्टिपात करते हुए हनुमान जी ने एक दिव्य एवं श्रेष्ठ वेदी देखी, जिस पर […]

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सचेतन 2.40: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण की सभी भार्या उत्तम कुल से थी