मंत्र योग, स्पर्श योग, भावयोग, अभाव योग और महायोग मुनि उपमन्यु बोले, हे केशव ! अब मैं आपको योग विधि के बारे में बताता हूं। जिसके द्वारा सभी विषयों से निवृत्ति हो और अंतःकरण की सब वृत्तियां शिवजी में स्थित हो जाएं, वह परम योग है। आपका शून्य होना ही आपका प्राकृतिक गुण है क्योंकि […]
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सचेतन 240: शिवपुराण- वायवीय संहिता – सुस्थिर होना उत्तम तप है
भगवान विष्णु क्षीरसागर के अथाह जल में ही क्यूँ गये? आपका शून्य होना ही आपका प्राकृतिक गुण है क्योंकि इस गुण के रूप में शिव आपके साथ विराजमान हैं। कहते हैं की यह शिव प्रलय काल आने पर भी विराजमान रहते हैं। एक बार जब भयानक प्रलय मची थी उस समय श्रीहरि भगवान विष्णु क्षीरसागर […]
सचेतन 239: शिवपुराण- वायवीय संहिता – संसार का मूल प्रकृति शून्यता है
अनुभव करें की सारा विश्वात्मक विस्तार मैं ही हूँ जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो इसका अर्थ है शून्य, यानी ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो नहीं है’। एक बार अपने शून्य होने की सहनशीलता को सक्षम करके देखिए आपको लगेगा की आपका हरेक कर्म इस सृष्टि में शून्यता से ही प्रारंभ होता है। आपका […]
सचेतन 238: शिवपुराण- वायवीय संहिता – शिव आपके प्राकृतिक गुण में हैं
आप शिव तक कैसे पहुँच पाएंगे? यह प्रमाणिकता है की हम सभी जितने भी प्रकार की सिद्धियां जीवन में पाना चाहते हैं, वे शिवलिंग की स्थापना करने से तत्काल पा सकते हैं। जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो इसका अर्थ है शून्य, यानी ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो नहीं है’। लिंग से तात्पर्य है […]
सचेतन 237: शिवपुराण- वायवीय संहिता – ब्रह्मा-विष्णु मोह
उपमन्यु ने लिंग स्थापना से शिव प्राप्ति के बारे में श्रीकृष्ण को बताया मुनि उपमन्यु ने श्रीकृष्ण से कहा ;- हे कृष्ण ! जितने भी प्रकार की सिद्धियां हैं, वे शिवलिंग की स्थापना करने से तत्काल सिद्ध हो जाती हैं। सारा संसार लिंग का ही रूप है इसलिए इसकी प्रतिष्ठा से सबकी प्रतिष्ठा हो जाती […]
सचेतन 236: शिवपुराण- वायवीय संहिता – भगवान शिव ने उपमन्यु को अपनी परम भक्ति प्रदान किया
उपमन्यु शिव और पार्वती के पुत्र के समान हैं भगवान विष्णु के अनुरोध करने पर शिवजी ने बालक उपमन्यु के संकल्प की परीक्षा लेनी चाही और उनके पास देवराज इन्द्र के रूप में गये और कहा की तुम देवराज इन्द्र शरण की में आ जाओ मैं तुम्हें सब कुछ दूँगा और उस निर्गुण रूद्र यानी […]
सचेतन 235: शिवपुराण- वायवीय संहिता – भगवान शिव की परीक्षा
शिव भक्त उपमन्यु अपने तप के दौरान “नमः शिवाय” मंत्र का उच्चारण करते रहे। उपमन्यु अपनी माँ से प्राप्त पंचाक्षर मंत्र का ज्ञान और आज्ञा को ग्रहण करके अपनी आपत्तियों के निवारण हेतु तपस्या के लिए विदा हो गये। जाते समय उस महातेजस्वी उपमन्यु बालक ने कहा – ‘माँ ! चिंता न करो अगर माता […]
सचेतन 234: शिवपुराण- वायवीय संहिता – बालक उपमन्यु को माता का उपदेश
“नमः शिवाय” यह मंत्र साक्षात उन देवाधिदेव शिव का वाचक माना गया है। शिव पुराण में भक्त उपमन्यु की कथा का उल्लेख है। धौम्य ऋषि के बड़े भाई और मुनि व्याघ्रपाद के पुत्र उपमन्यु जब बाल्यावस्था में थे तब उन्होंने दूध पाने के लिए शिव आराधना की थी। जिससे भगवान शिव ने प्रसन्न होकर बालक […]
सचेतन 233: शिवपुराण- वायवीय संहिता – गुरु भक्त उपमन्यु की कथा
उपमन्यु का उपवास उपमन्यु महर्षि आयोद धौम्य के शिष्यों में से एक थे। इनके गुरु धौम्य ने उपमन्यु को अपनी गाएं चराने का काम दे रखा थ। उपमन्यु दिनभर वन में गाएं चराते और सायँकाल आश्रम में लौट आया करते थे। एक दिन गुरुदेव ने पूछा- “बेटा उपमन्यु! तुम आजकल भोजन क्या करते हो?” उपमन्यु […]
सचेतन 232: शिवपुराण- वायवीय संहिता – मनःशक्ति के लिए प्राण को लय-तालयुक्त करें
श्वास-प्रश्वास की गति को लयबद्ध करना प्राणायाम है। मनःशक्ति के अभिवर्धन के लिए प्राण-प्रक्रिया को लय-तालयुक्त रखना आवश्यक है। प्रसन्नता, उत्फुल्लता, सरसता और स्फूर्ति की प्राप्ति का यही उपाय है। इसीलिए अगर आप मनःशक्ति के विकास के आकाँक्षी हैं तो लय-तालयुक्त श्वास-प्रक्रिया का अभ्यास अवश्य प्रारंभ कीजिए। प्राणायाम की विशिष्टता भी उसके लय-तालबद्ध होने में […]