प्राण को प्रखर, पुष्ट, और संकल्प मय बनायें हम सभी सचेतन के दौरान ध्यान और प्राणायाम करते समय प्राण की जागरूकता रखें जिससे सारे हमचल, ताल, लय और प्राकृतिक सौंदर्य को हम देख पायेंगे और इसके आनन्द को महसूस भी कर पायेंगे। हमारी प्राण-शक्ति सक्रिय है और यह प्राणतत्व सर्वत्र नटराज की तरह हरेक वस्तु […]
Posts
सचेतन 230: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्राण-शक्ति सक्रिय है और इसके कुछ नियम हैं
सचेतन में जब हम सभी ध्यान और प्राणायाम करते वक़्त प्राण की जागरूकता बना कर रखें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हर एक वस्तु सृष्टि के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए निरन्तर गति एवं क्रिया के साथ स्फुरण रहती है यानी हरेक चीज में हलचल होता है। छोटे से छोटे परमाणु से लेकर ग्रह, नक्षत्र, सूर्य […]
सचेतन 229: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्राण से ही मानव शरीर में लय और ताल का संचारण हो रहा है।
प्राण से सम्वेदनाओं को समझने का अवसर मिलता है। अगर आप सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को महसूस करके देखिए तो पायेंगे की हर वस्तु में पूरी तरह से सृष्टि का अस्तित्व उसकी गति एवं क्रिया निरन्तर स्फुरण रहती है यानी हलचल का अनुभाव प्रत्येक वस्तु में है। छोटे से छोटे परमाणु से लेकर ग्रह, नक्षत्र, सूर्य सभी […]
सचेतन 228: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्राण वायु से रोगों का विनाश होता है
हमारे पांच प्राण और पांच उप-प्राण हैं अध्यात्म का ज्ञान शरीर को जानने से आरंभ होता है आत्मतत्त्व का साक्षात्कार करना है तो शरीर की शुद्धि आवश्यक है जो योग, ध्यान, आराधना और प्रार्थना से संभव है यानी आत्म ज्ञान का मार्ग सिद्धि कर्मों से खुलता है। उपमन्यु महर्षि आयोद धौम्य के शिष्यों में से […]
सचेतन 227: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आत्म ज्ञान का मार्ग सिद्धि कर्मों से खुलता है
प्राणियों का यह समागम भी संयोग-वियोग से युक्त हैं आपने आपको और स्वयं के गुण और शरीर को भी समझने के लिए विवेक चाहिए जिसको पार्थक्य ज्ञान कहते हैं। और मुनियों द्वारा वायु देवता से पूछे गये प्रश्न -बुद्धि, इन्द्रिय और शरीर से व्यतिरिक्त किसी आत्मा नामक वस्तु की वास्तविक स्थिति कहाँ है? और आत्मा […]
सचेतन 226: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आत्म विषय आपकी चेतना, बुद्धि, इन्द्रिय और शरीर से पृथक है।
अध्यात्म का ज्ञान शरीर को जानने से आरंभ होता है| आपको स्वयं के गुण को भी समझने के लिए विवेक चाहिए जिसको पार्थक्य ज्ञान कहते हैं। यानी पृथक या अलग होने वाली अवस्था का पता चलना या अलग अलग परिस्थितियों में उस घटना का भाव का पता चलना और यहाँ तक की एक वस्तु को […]
सचेतन 225: शिवपुराण- वायवीय संहिता – अभीष्ट इच्छा की वासना ही तमोगुण है
जब आप मन में बहुत सारी कामनाएँ और ख़ूब सारा ख़याली प्लाव पकाने लगते हैं तो तमोगुण का आगमन आपके अंदर होने लगता है। आपका गुण आपसे और आपके शरीर से बंधा रहता है यह आपसे बाहर नहीं है। हमारे अपने गुण के कारण ही जीवन में माया और भ्रम पैदा होता है। यह त्रिगुनात्मक […]
सचेतन 224: शिवपुराण- वायवीय संहिता – रजोगुण के कारण सुख की कल्पना प्रारंभ होती है
मैं सुखी हूँ! यह धर्म समझ कर आसक्त होने से आपके ज्ञान की वृत्ति धीरे धीरे अभिमान की तरफ़ बढ़ने लगती है आप अपने ज्ञानशक्ति और अपने कला के द्वारा क्रिया करते हैं तो आपका गुण विकसित होकर बाहर निकलता है। यह गुण तीन रूप में प्रकट होता है जो सत्त्व, रज और तम के […]
सचेतन 223: शिवपुराण- वायवीय संहिता – सत्त्वगुण के कारण आप प्रभावशाली और उद्यमशील हो जाते हैं।
तप यानी ज्ञानशक्ति और कला से क्रिया करना जिससे शारीरिक शुद्धि और बुद्ध का गुण विकसित हो सके हमारे जीवन में पुण्यकर्म और पापकर्म दोनों ही कर्म की प्रधानता होते हैं और यह प्रधानता को समझने के लिए महेश्वर की कृपाप्रसाद चाहिए जिसकी कृपा से आपका मल नाश हो सके और आप निर्मल-शिव के समान […]
सचेतन 222: शिवपुराण- वायवीय संहिता – बाह्य इन्द्रियां और अन्त:करण आपके कर्म के द्वार हैं
सचेतन 222: शिवपुराण- वायवीय संहिता – बाह्य इन्द्रियां और अन्त:करण आपके कर्म के द्वार हैं जीवन की शुद्धिकरण के लिए तप का प्रयोग करना होता है। हम चर्चा कर रहे थे की आप जब आध्यात्मिक मार्ग पर होते हैं तो आप अपने परम लक्ष्य तक पहुंचने की जल्दी में होते हैं, आप स्वयं के साक्षात्कार […]