जीवन में वास्तविकता और आपके चेतना के बीच का संतुलन ‘पशुपति’ बना देता है। मानव पशु से भिन्न है क्योंकि हम सचेत प्राणी हैं और स्वयं को नियंत्रित कर सकते हैं। जानवरों में भी चेतना होती है, लेकिन उनकी चेतना हमारी तरह विकसित नहीं है। हमारा मानस उन सभी आदिम प्रवृत्तियों का भंडार है जो […]
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सचेतन 211: शिवपुराण- वायवीय संहिता – परमात्मा और पशु या यिन और यांग जिसे ब्रह्माण्ड की दो शक्तियों के रूप में माना गया है।
सचेतन 208: शिवपुराण- वायवीय संहिता – हमारे जीवन में उत्तम व्रत का फल क्या है?
जीवन के प्रथम वर्ष से ही देवाधिदेव महेश्वर के दर्शन का इंतज़ार होना प्रारंभ हो जाता है। हमारे जीवन में उत्तम व्रत का फल क्या है? हमारे माता-पिता के महान् यज्ञ के बाद हमारा जन्म होता है और जीवन का क्रम तदन्तर समय के साथ बीतने पर जब हम वाक्य विद्या, चलना फिरना या कुछ […]
सचेतन 207: शिवपुराण- वायवीय संहिता – रुद्रदेव के विचार से विश्व का कल्याण संभव है।
एक कल्प १००० चतुर्युगों यानी चार अरब बत्तीस करोड़ मानव वर्ष का होता है पिछले सचेतन के सत्र में हमारा प्रश्न करना की इस प्राण मय महायज्ञ की समाप्ति हो जाने पर अब आप लोग क्या करना चाहते हैं? और इसका उत्तर रुद्रदेव की प्राप्ति करना। रु’ का अर्थ ही ‘शब्द करना’ होता है – […]
सचेतन 206: शिवपुराण- वायवीय संहिता – मनुष्य योनि में रुद्रदेव की प्राप्ति संभव है।
नैमिषारण्य का अर्थ है स्वाध्याय के लिए अनुष्ठान को शुरू करना। हमारे जीवन में उत्तम व्रत का फल हमारे पालनकर्ता माता पिता से मिला है जो अपने महान् यज्ञ से हमारा जन्म देते हैं और जीवन का क्रम तदन्तर समय के साथ प्रचुर उपलब्धि प्राप्त करता है और यह सब आश्चर्यजनक प्रक्रिया से युक्त हमारे […]
सचेतन 205: शिवपुराण- वायवीय संहिता – हमारे जीवन में वायुदेवता स्वरूप प्राण का महत्व क्या है?
हमारे जीवन में उत्तम व्रत का फल क्या है और जीवन का दीर्घकालिक यज्ञ का अनुष्ठान कौन सा है? सूत जी कहते हैं-मुनीश्वरो! उस समय उत्तम व्रत का पालन करने वाले उन महाभाग महर्षियों ने देश में महादेवजी की आराधना करते हुए एक महान् यज्ञ का आयोजन किया। वह यज्ञ जब आरम्भ हुआ, तब महर्षियों […]
सचेतन 204: शिवपुराण- वायवीय संहिता – कभी हिम्मत नहीं हारें
मुंशी प्रेमचंद की दो बैल की कहानी हीरा और मोती झूरी के घर बहुत सुख से रहा करते थे लेकिन झुरी के ससुराल में उसे मार पड़ी, उस पर ख़ुश्क भूसा खाने को मिलता। एक मर्तबा झूरी का साला गया ने ज़ालिम बनकर हीरा की नाक पर डंडा जमाया, तो मोती ग़ुस्से के मारे आपे […]
सचेतन 202: शिवपुराण- – पशुपति यानी ‘जीवन का मालिक’
दो बैल हीरा और मोती की कहानी वैसे तो हम मनुष्यों की स्थिति पशुता से भी बदतर होती जा रही है। हम सभी सिर्फ़ भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर ध्यान देते हैं और आध्यात्मिकता और मानव चेतना की कल्पना करना भी भूल गये हैं। हम सभी ने अपनी अपनी आध्यात्मिक खजाने को संभाल नहीं पाये और […]
सचेतन 201: शिवपुराण- वायवीय संहिता ॰॰ जब जागो तभी सवेरा
ब्रह्म यानी ब्रह्मांड का परम सत्य या फिर इस जगत का सार योग और ध्यान को जीवन चर्या में लाने से आपके आत्मा ज्ञान का मार्ग प्रस्तत होता है और इसके लिए स्वयं का प्रयास शुरू करना होगा। योग और ध्यान के बल से आपको कोई भेदभाव, जाती-पात, ऊँचनीच, सत्कार-तिरस्कार, हानि-लाभ का असर नहीं होगा। […]