0 Comments

सचेतन 200: शिवपुराण- वायवीय संहिता ॰॰ योग और ध्यान जीवन को  आंतरिक मुक्ति दिलाता है

आप अपने जीवन में बदलाव चाहते हैं तो प्राचीन उपनिषद ग्रंथों से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। पाशुपत विज्ञान /पाशुपत ब्रह्म उपनिषद जिसको भगवान राम ने हनुमान को सुनाया था, और यह वर्तमान युग का उपनिषद कहा गया है जिसको बड़े बड़े दार्शनिक भी अपने दर्शन में उल्लेख करते हैं। यहाँ तक की सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा […]

0 Comments

सचेतन 199: शिवपुराण- वायवीय संहिता ॰॰ पशुपति आपके भीतर का परमात्मा है।

आत्मज्ञान स्वयं के प्रयासों से मिलता है। वायु संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए भगवान शिव के ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है। भगवान शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं। पाशुपत विज्ञान जो पाशुपत ब्रह्म उपनिषद है, जिसे पाशुपताब्रह्मोपनिषद भी कहा […]

0 Comments

सचेतन 198: सत्य के लिए प्यासे हो सकें

आत्म ज्ञान के प्रश्न के साथ ही उत्तर है और वह उत्तर आपके भीतर से उपलब्ध होता है। अंतिम रूप से आज तो सिर्फ प्रश्न उठाता हूं, वह आपके भीतर गूंजे, मैं कौन हूं?  आज तो प्रश्न खड़ा करता हूँ उस प्रश्न को साथ लिए जाएं। रात उसे साथ लिए सो जाएं और थोड़ा प्रयोग […]

0 Comments

सचेतन 197: परमात्मा की खोज के मार्ग

ज्ञान का अवतरण तब होगा जब आप अपने अज्ञान को पूरी तरह स्वीकार कर लेंगे जब कभी भी आपसे पूछा जाता है की आपके भीतर कौन है? तो आप कह देते हैं  -आत्मा। यह उत्तर आपकी स्मृति ने सीख रखा है हम सचेतन स्वयं की खोज पर चर्चा कर रहे हैं तो उत्तर जो स्मृति […]

0 Comments

सचेतन 196: अस्मिता (ईगो) आपके जीवन का क्लेश स्वरूप है

अस्मिता, अहंकार आपका निर्माण है, जिसको आप क्रिएशन कहते हैं  जब जब हमारा अहंकार जितना-जितना पुष्ट हो जाता है स्वयं को जानना उतना ही असंभव हो जाता है। जितनी अस्मिता गहरी हो जाती है। यह जो ईगो है, यह जो मैं हूँ, यह जितना सख्त और ठोस हो जाता है उतना ही उसे जानना मुश्किल […]

0 Comments

सचेतन 195: अहंकार मांगता है न्यूनता

अहंकार जितना-जितना पुष्ट हो जाता है स्वयं को जानना उतना ही असंभव हो जाता है। किसी भी चीज को इकट्ठा करने से अहंकार पैदा होता है त्याग करने से प्रशंसा और आदर मिलता हो तो तब भी आपके अहंकार को तृप्ति मिलती है जो चीज हमें अच्छा लगने लगता है फिर हम उसको और इकट्ठा […]

0 Comments

सचेतन 194: किसी भी चीज को इकट्ठा करने से अहंकार पैदा होता है

त्याग करने से प्रशंसा और आदर मिलता हो तो तब भी आपके अहंकार को तृप्ति मिलती है   पिछले विचार के सत्र में मैंने कहा था की अज्ञानता भय पैदा करती है क्योंकि जब आप स्वयं को ढूँढते हो तो आप कोई ना कोई परिचय का सहारा लेना शुरू करते हो और आप उसे पकड़ लेते […]

0 Comments

सचेतन 193: अज्ञानता भय पैदा करती है 

जो खाली जगह में खड़े होने को राजी हो जाता है वही स्वयं को जान पाता है। ‘मैं’ का तो हमें कोई भी पता नही है। यहाँ तक की मेरा नाम, मेरा घर, मेरा वंश, मेरा राष्ट्र, मेरी जाति, मेरा धर्म यह मेरा होना नहीं है।हमने तो यह सब तोते कि भांति दोहराते हुए अब […]

0 Comments

सचेतन 192: सांसारिक या फिर आध्यात्मिक परिचय भी आपका आत्म-परिचय नहीं है।

जब तक हम बाहर से आए हुए शब्दों को पकड़ते हैं तब तक हम स्वयं से परिचित नहीं हो सकेंगे कहानी में जब संन्यासी ने राजा के प्रश्न ‘क्या मुझे परमात्मा से मिला सकेंगे?’ के जबाब में कहा की आप ईश्वर से मिलना चाहते हैं तो क्या आप थोड़ी देर रुक सकते हैं या बिलकुल […]

0 Comments

सचेतन 191: जिस दिन स्वयं को पा लोगे उस दिन परमात्मा को भी पा लोगे 

जो मेरे भीतर है और जो किसी और के भीतर है और जो सबके भीतर है, वह बहुत गहरे में संयुक्त है, और एक है और समग्र है।  कहानी में एक संन्यासी एक राजा के घर मेहमान था। उस राजा ने सुबह ही आकर उस संन्यासी को पूछा, मैं सुनता हूं कि आप परमात्मा की […]