“ऋत” (ऋतम्) — यह वेदों का एक अत्यंत गूढ़ और केंद्रीय सिद्धांत है, जो सत्य, नियम, नैतिकता और ब्रह्मांडीय व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। यह केवल एक नैतिक संहिता नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का नैतिक और प्राकृतिक नियम है। “ऋत” (ऋतम्) का मतलब है — वह सच्चा और अटल नियम, जिस पर पूरी सृष्टि चलती […]
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सचेतन- 09: “ऋत” (ऋतम्) — सत्य, नियम, नैतिकता और ब्रह्मांडीय व्यवस्था
“ऋत” (ऋतम्) — यह वेदों का एक अत्यंत गूढ़ और केंद्रीय सिद्धांत है, जो सत्य, नियम, नैतिकता और ब्रह्मांडीय व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। यह केवल एक नैतिक संहिता नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का नैतिक और प्राकृतिक नियम है। “ऋत” (ऋतम्) का मतलब है — वह सच्चा और अटल नियम, जिस पर पूरी सृष्टि चलती […]
सचेतन- 08: सच्चे साधक का मार्ग
“तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व” — यजुर्वेद “तप द्वारा ब्रह्म को जानने का प्रयास करो।” यानी तप आत्मा और परमात्मा को जोड़ने वाला साधन है। तप का व्यावहारिक रूप (आज के जीवन में) तप आज के अर्थ में सुबह जल्दी उठना शरीर और मन पर अनुशासन क्रोध को रोकना मन का तप अहिंसा और करुणा से व्यवहार […]
