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सचेतन- बुद्धचरितम् 28 पच्चीसवाँ सर्ग प्रेम और शांति से विदाई

जब महात्मा बुद्ध ने निर्वाण (मोक्ष) की इच्छा से वैशाली नगर को छोड़ने का निश्चय किया, तब वहां के लोगों का दिल भर आया। लिच्छवि राजा सिंह और नगर के अनेक लोग गहरे दुःख में डूब गए। राजा सिंह ने बहुत विलाप किया, आँखों में आँसू भर आए। यह क्षण बुद्ध के जीवन का अत्यंत […]

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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-54 : प्रेम, पहचान, और नियति

“प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यः।” नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे ‘सचेतन सत्र’ में।जो भी  विचार साझा किए हैं, वे गहन और प्रेरणादायक हैं। इस कथा के माध्यम से आपने भाग्य और परिश्रम के महत्व को बहुत सुंदरता से व्यक्त किया है। यह कहानी हमें दिखाती है कि कैसे मेहनत और धैर्य के बिना सफलता प्राप्त करना […]

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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-15 : “दोस्त की चाल और प्रेम की जीत”

बुनकर की मुश्किल और रथकार का समाधान: हमारी पिछली कहानी में आपने सुना कि कैसे बुनकर ने राजकुमारी को देखकर उसके प्रेम में अपना दिल खो दिया था और अब उसके बिना जीना मुश्किल हो गया था। उसकी हालत इतनी बिगड़ गई कि उसने अपने दोस्त रथकार से मरने की बात तक कह दी। लेकिन […]

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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-14 : “चालाकी की ताकत और प्रेम की तृष्णा”

धोखे का नाटक और न्याय जब बुनकर ने कुछ देर बाद उठकर अपनी पत्नी से सवाल पूछे और उसने कोई जवाब नहीं दिया, तो बुनकर को और गुस्सा आ गया। उसने तेज हथियार उठाया और नाइन की नाक काट दी, यह सोचकर कि वह उसकी पत्नी है। नाइन ने रोते-चिल्लाते घर से बाहर निकल कर […]