सचेतन 170 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- स्वाध्याय कब कब करें स्वाध्याय व्यक्ति की जीवन दृष्टि को बदल देता है स्वाध्याय का प्रयोजन बहुत से कारणों से करना चाहिए जिसमें प्रमुख है की ज्ञान की प्राप्ति के लिये, सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति के लिये यानी जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसे को वैसा ही […]
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सचेतन 169 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- स्वाध्याय के लाभ
स्वाध्याय से आत्मा मिथ्या ज्ञान का आवरण दूर होता है स्वाध्याय से हम आध्यत्मिक साधना कर सकते हैं जो ज्ञान के प्रकाश से प्राप्त होता है, और इससे समस्त दु:खों का क्षय हो जाता है। वस्तुत: स्वाध्याय ज्ञान प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। स्वाध्याय शब्द का सामान्य अर्थ है-स्व का अध्ययन। स्वाध्याय आत्मानुभूति है, […]
सचेतन 167 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- स्वाध्याय का महत्व
जीवन में समभाव (सामायिक) होना चाहिए और समभाव की उपलब्धि हेतु स्वाध्याय और साहित्य का अध्ययन आवश्यक है। स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ है- ‘स्वयं का अध्ययन करना’। यह एक वृहद संकल्पना है जिसके अनेक अर्थ होते हैं। विभिन्न हिन्दू दर्शनों में स्वाध्याय एक ‘नियम’ है। स्वाध्याय का अर्थ ‘स्वयं अध्ययन करना’ तथा वेद एवं अन्य […]
सचेतन 166 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- तपस्या – एक आध्यात्मिक अनुशासन है
अपने शरीर का तप, वाणी का तप और मन का तप कर लेने से आप तपस्वी बन सकते हैं। तपस्या कोई आत्म-यातना नहीं है और तपस्या का मतलब स्वेच्छा से अलगाव और कठिनाई का जीवन जीना भी नहीं है। तपस्या का अर्थ आत्म-संयम और पवित्रता का जीवन जीना है। जो तपस्या में संलग्न है, उनको […]
सचेतन 164 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- तप सबसे शक्तिशाली है
भगवान प्रजापति ने तप से ही इस समस्त संसार की सृष्टि की है तथा ऋषियों ने तप से ही वेदों का ज्ञान प्राप्त किया है। तपस्या हमारे जीवन के शासन की महिमा, गरिमा एवं प्रभाव को बढ़ाने वाला अदभुत कार्य है। तप वो ही करता है जो अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर सकता है। तप […]
सचेतन 163 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- तप की बड़ी भारी महिमा
दूसरों की भलाई के लिये अपने सूखों की परवाह न करना यही तप है। श्री शिव पुराण के उमा संहिता में तप की बड़ी भारी महिमा बताते हुए सनत्कुमारजीने कहा-मुने! तप की महिमा अपार है। तपस्या या तप का मूल अर्थ था प्रकाश अथवा प्रज्वलन जो सूर्य या अग्नि में स्पष्ट होता है।आजकल धीरे-धीरे उसका […]
सचेतन 162 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- सत्य यानि सभी का कल्याण।
प्रत्येक निर्णय सत्य होने का दावा करता है। सत्य इस संसार में बड़ी शक्ति और दृढ़ता है। सत्य के बारे में व्यवहारिक बात यह है कि सत्य परेशान हो सकता है किन्तु पराजित नहीं।भारत में कई सत्यवादी विभूतियाँ हुईं जिनकी दुहाई आज भी दी जाती हैं जैसे राजा हरिश्चन्द्र, सत्यवीर तेजाजी महाराज आदि। इन्होने अपने […]
सचेतन 160 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- सत्य भाषण की महिमा
कल्याण की भावना को हृदय में बसाकर ही व्यक्ति सत्य बोल सकता है जलदान, जलाशय-निर्माण और वृक्षारोपण की महिमा के बारे में सुना। जलदान आनन्द की प्राप्ति के लिए करना चाहिए और वृक्ष लगाने वाले को संतान प्राप्ति का सुख मिलता है। सत्य ही परब्रह्म है, सत्य ही परम तप है, सत्य ही श्रेष्ठ यज्ञ है […]
सचेतन 159 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- जलदान, जलाशय-निर्माण और वृक्षारोपण की महिमा
जलदान आनन्द की प्राप्ति के लिए करना चाहिए और वृक्ष लगाने वाले को पुत्र प्राप्ति का सुख मिलता है सनत्कुमार जी कहते हैं-व्यास जी! जलदान सबसे श्रेष्ठ है। वह सब दानों में सदा उत्तम है; क्योंकि जल सभी जीव समुदाय को तृप्त करने वाला जीवन कहा गया है।इसलिये बड़े स्नेह के साथ अनिवार्य रूप से […]
सचेतन 156 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- महादेवी पार्वती जी का भगवान शिव के द्वारा वरण करना
अशोक वृक्ष की पत्तियों का उपयोग पूजा के लिए या बंधनहार के रूप में क्यों किया जाता है? कश्यप ऋषि के कहने पर गिरिराज हिमालय ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न हो कर ब्रह्मा जी ने गिरिराज हिमालय को दर्शन दे कर उनसे वर माँगने को कहा। गिरिराज हिमालय ने सब […]