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सचेतन- 12: प्रज्ञा (Prajña) – आत्मबोध या गूढ़ बुद्धि

प्रज्ञा का अर्थ है – वह गहरी बुद्धि जो केवल सोचने या समझने तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मिक अनुभव से उत्पन्न होती है।यह वह स्थिति है जहाँ सत्य का प्रत्यक्ष बोध होता है — न केवल “जानना”, बल्कि “हो जाना”। 🧠 प्रज्ञा की विशेषताएँ: 📜 वेदांत में प्रज्ञा, उपनिषदों में कहा गया है:  “प्राज्ञः […]

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सचेतन- 5: सत्य पर गहन ध्यान

निदिध्यासन (Nididhyasanam) – “ध्यान और आत्मसात” सुने और समझे हुए ज्ञान को ध्यानपूर्वक आत्मसात करना, अर्थात उस ज्ञान को अपने जीवन और चेतना में पूरी तरह उतारना। निदिध्यासन (Nididhyasana) – सत्य पर गहन ध्यान निदिध्यासन का अर्थ है — किसी सत्य, विचार, मंत्र या उपदेश पर बार-बार, एकाग्र होकर ध्यान करना। यह केवल सोचने भर […]

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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-37 : लोहे की तराजू और बनिए की कथा

हमने धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की कथा और बगला, सांप और केकड़े की कहानी सुना और यह जाना कि किस तरह बिना सोचे-समझे कोई उपाय करना विनाश को आमंत्रित कर सकता है।जिस स्थान पर छोटी-छोटी बातें अनदेखी की जाती हैं और मूर्खता या दुष्टता को बढ़ावा दिया जाता है, वहाँ बड़ी-बड़ी समस्याएँ स्वतः ही उत्पन्न हो […]

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सचेतन 3.20 : सिद्धासन के लिए : यम और नियम

योग के नैतिक और अनुशासनिक सिद्धांत नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र  में. सिद्धासन, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, एक ऐसा आसन है जो सभी सिद्धियों को प्रदान करता है। यमों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, नियमों में शौच श्रेष्ठ है, […]