ब्रह्मविद्या कि साधना पढ़ने या सुनने से नहीं, बल्कि तप, साधना और आत्मनिष्ठा से प्रकट होती है। ब्रह्मविद्या का अर्थ – “ब्रह्म” का ज्ञान। ब्रह्म = अनंत, सर्वव्यापक चेतना, जो सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है।ब्रह्मविद्या वह विद्या है जो हमें यह समझाती है कि — हम केवल शरीर या मन नहीं हैं, बल्कि […]
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सचेतन 2.58: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण आभूषणों से विभूषित होकर भी श्मशानचैत्य (मरघट में बने हुए देवालय)- की भाँति सीता जी को भयंकर प्रतीत होता था।
विभिन्न राक्षसियों का अनुकूल-प्रतिकूल उपायों से, साम, दान और भेदनीति से तथा दण्ड का भी भय दिखाकर विदेहकुमारी सीता को वश में लाने की चेष्टा करना। कल मैंने बात किया था की काम (प्रेम) बड़ा टेढ़ा होता है और जिसके प्रति आप जैसे भी बँध जाते हैं वैसे ही उसके प्रति करुणा और स्नेह उत्पन्न […]
