हनुमान जी ने सोचा— यदि मैं सीताजी को देखे बिना ही यहाँ से वानरराज की पुरी किष्किन्धा को लौट जाऊँगा तो मेरा पुरुषार्थ ही क्या रह जायगा? फिर तो मेरा यह समुद्रलंघन, लंका में प्रवेश और राक्षसों को देखना सब व्यर्थ हो जायगा। किष्किन्धा में पहुँचने पर मुझसे मिलकर सुग्रीव, दूसरे-दूसरे वानर तथा वे दोनों […]