सचेतन 2.32: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण के गुप्त भवन में भी कपिवर हनुमान्जी जा पहुँचे

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सचेतन 2.32: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण के गुप्त भवन में भी कपिवर हनुमान्जी जा पहुँचे

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नितांत शुद्ध रखने की परंपरा से अंतःपुर की विशिष्टता होती है 

हनुमान जी सबसे शक्तिशाली भगवान हैं उनकी आध्यात्मिक साधना, ज्ञान और अष्ट सिद्धियां उन्हें अपने आप में खास बनाती हैं। वह श्रीराम के परम भक्त हैं और निडरता के प्रतीक भी। यही कारण है कि हनुमान जी के मंत्र हमें निडर, साहसी और सफल बनाते हैं। स्वभाव से, हनुमान जी अत्यधिक दयालु भगवान हैं जो आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं।
अपने इसी गुण से वह सब कुछ प्रदान करते हैं जो भक्त उनसे चाहते हैं।
कार्य सिद्धि हनुमान मंत्र भी कुछ हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए होता है जिसके रिजल्ट बेहद चमत्कारी होते हैं।
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥
जब हनुमान्‌जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण करके और भगवान्‌ का स्मरण करते हुए लंका नगर में प्रवेश किया तो देखा की कोई राक्षस शक्ति और वृक्ष रूप आयुध धारण किये देखे थे तो किन्हीं के पास पट्टिश, वज्र, गुलेल और पाश थे। महाकपि हनुमान्ने उन सबको देखा। किन्हीं के गले में फूलों के हार थे और ललाट आदि अंग चन्दन से चर्चित थे। कोई श्रेष्ठ आभूषणों से सजे हुए थे। कितने ही नाना प्रकार के वेषभूषा से संयुक्त थे और बहुतेरे स्वेच्छानुसार विचरनेवाले जान पड़ते थे। 
कितने ही राक्षस तीखे शूल तथा वज्र  लिये हुए थे। वे सब के महान् बल से सम्पन्न थे। इनके सिवा कपिवर हनुमान्ने एक लाख रक्षक सेना को राक्षसराज रावण की आज्ञा से सावधान होकर नगर के मध्यभाग की रक्षा में  संलग्न देखा। वे सारे सैनिक रावण के अन्तःपुरक अग्रभागमें स्थित थे। रक्षक सेना के लिये जो विशाल भवन बना था, उसका फाटक बहुमूल्य सुवर्णद्वारा निर्मित हुआ था। उस आरक्षा भवन को देखकर महाकपि हनुमान्जी ने राक्षसराज रावण के सुप्रसिद्ध राजमहल पर दृष्टिपात किया जो त्रिकूट पर्वत के एक शिखर पर प्रतिष्ठित था। वह सब ओर से श्वेत कमलों द्वारा अलंकृत खाइयों से घिरा हुआ था। उसके चारों ओर बहुत ऊँचा परकोटा था, जिसने उस राजभवन को घेर रखा था। वह दिव्य भवन स्वर्गलोक के समान मनोहर था और वहाँ संगीत आदि के दिव्य शब्द गूँज रहे थे। 
घोड़ों की हिनहिनाहटकी आवाज भी वहाँ सब ओर फैली रहती हुई थी। आभूषणों की रुनझुन भी कानों में पड़ती थी। नाना प्रकार के रथ, पालकी आदि सवारी, विमान, सुन्दर हाथी, घोड़े, श्वेत बादलों की घटा के समान सजाये दिखायी देनेवाले चार दाँतों से युक्त सजे-मतवाले हाथी तथा मदमत्त पशु-पक्षियों के संचरण से उस राजमहल का द्वार बड़ा सुन्दर दिखायी देता था। सहस्त्रों महापराक्रमी निशाचर राक्षस- राजके उस महल की रक्षा करते थे। 
उस गुप्त भवन में भी कपिवर हनुमान्जी जा पहुँचे। तदनन्तर जिसके चारों ओर सुवर्ण एवं जाम्बूनदका परकोटा था, जिसका ऊपरी भाग बहुमूल्य मोती और मणियों से विभूषित था तथा अत्यन्त उत्तम काले अगुरु एवं चन्दन से जिसकी अर्चना की जाती थी, रावण के उस अन्तःपुरमें हनुमान्जीने प्रवेश किया।अंतःपुर, घर के मध्य या भीतर का भाग को कहते हैं जिसमें रानियाँ या स्त्रियाँ रहती हों । भीतरी महल, रनिवास ।
अंतःपुर के अन्य नाम भी थे जो साधारणतः उसके पर्याय की तरह प्रयुक्त होते थे, यथा- शुद्धांत और अवरोध। शुद्धांत शब्द से प्रकट है कि राजप्रासाद के उस भाग को, जिसमें नारियाँ रहती थीं, बड़ा पवित्र माना जाता था। दांपत्य वातावरण को आचरण की दृष्टि से नितांत शुद्ध रखने की परंपरा ने ही निःसंदेह अंतःपुर को यह विशिष्ट संज्ञा दी थी। उसके शुद्धांत नाम को सार्थक करने के लिए महल के उस भाग को बाहरी लोगों के प्रवेश से मुक्त रखते थे। उस भाग के अवरुद्ध होने के कारण अंतःपुर का यह तीसरा नाम अवरोध पड़ा था। अवरोध के अनेक रक्षक होते थे जिन्हें प्रतीहारी या प्रतीहाररक्षक कहते थे।
मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥
गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥
उन्होंने एक-एक (प्रत्येक) महल की खोज की। जहाँ-तहाँ असंख्य योद्धा देखे। फिर वे रावण के महल में गए। वह अत्यंत विचित्र था, जिसका वर्णन नहीं हो सकता॥
हनुमान्जीका रावणके अन्तःपुरमें घर-घरमें सीताको ढूँढ़ना और उन्हें न देखकर दुःखी होना

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