सचेतन 2.25: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अवलोकन से विज्ञान तक 

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सचेतन 2.25: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अवलोकन से विज्ञान तक 

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विश्वकर्मा की बनायी हुई लंका मानो उनके मानसिक संकल्प से रची गयी एक सुन्दरी स्त्री थी।

हनुमान जी ने सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई लंका महापुरी का निरीक्षण स्वयं को जागरूक करने के लिए किया उन्होंने देख की लंका का बाहरी फाटक सोने के बने हुए थे और उनकी दीवारें लता-बेलों के चित्र से सुशोभित थीं। हनुमान जी ने उन फाटकों से सुशोभित लंका को उसी प्रकार देखा, जैसे कोई देवता देवपुरी का निरीक्षण कर रहा हो। तेजस्वी कपि हनुमान् ने सुन्दर शुभ्र सदनों से सुशोभित और पर्वत के शिखर पर स्थित लंका को इस तरह देखा, मानो वह आकाश में विचरने वाली नगरी हो। 

कपिवर हनुमान् ने विश्वकर्मा द्वारा निर्मित तथा राक्षसराज रावण द्वारा सुरक्षित उस पुरी को आकाश में तैरती-सी देखा। विश्वकर्मा की बनायी हुई लंका मानो उनके मानसिक संकल्प से रची गयी एक सुन्दरी स्त्री थी। चहारदीवारी और उसके भीतर की वेदी उसकी जघनस्थली जान पड़ती थीं, समुद्र का विशाल जलराशि और वन उसके वस्त्र थे, शतघ्नी और शूल नामक अस्त्र ही उसके केश थे और बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ उसके लिये कर्णभूषण-सी प्रतीत हो रही थीं। शतघ्नी अस्त्र  यानी इसके प्रहार से सौ आदमी मर सकते थे। 

हनुमान जी ने यह अवलोकन किया की महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई थी तथा पर्वत के समान ऊँचे और शरद् ऋतु के बादलों के समान श्वेत भवनों से भरी हुई थी। 

अवलोकन, अथवा प्रेक्षण का विज्ञानों में महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि हम सभी प्रकार की समस्याओं एवं घटनाओं को आँखों से देखकर पहचान सकते हैं लेकिन विज्ञान शब्द का प्रयोग हम ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों के प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित होती है। 

उस लंका पुरी के उत्तर द्वार पर पहुँचकर वानरवीर हनुमान जी चिन्ता में पड़ गये। वह द्वार कैलास पर्वत पर बसी हुई अलका पुरी के बहिर्द्वार के समान ऊँचा था और आकाश में रेखा-सी खींचता जान पड़ता था। ऐसा जान पड़ता था मानो अपने ऊँचे ऊँचे प्रासादों पर आकाश को उठा रखा है। 

अब हनुमान जी अवलोकन से विज्ञान तक पहुँचते हैं तो उन्होंने देखा की लंकापुरी भयानक राक्षसों से उसी तरह भरी थी, जैसे पाताल की भोगवतीपुरी नागों से भरी रहती है। उसकी निर्माणकला अचिन्त्य थी। उसकी रचना सुन्दर ढंग से की गयी थी। वह हनुमान जी को स्पष्ट दिखायी देती थी। पूर्वकाल में साक्षात् कुबेर वहाँ निवास करते थे। हाथों में शूल और पट्टिश लिये बड़ी-बड़ी दाढोंवाले बहुत-से शूरवीर घोर राक्षस लंकापुरी की उसी प्रकार रक्षा करते थे, जैसे विषधर सर्प अपनी पुरी की करते हैं। 

अवलोकन या निरीक्षण का विज्ञान में महत्त्वपूर्ण स्थान है यहाँ लंका पूरी का अवलोकन करने से जो तथ्य और परिकल्पना हनुमान जी को प्राप्त हो रही थी मानो की वो किसी विषय की जानकारी या ज्ञान की कसौटी पर विश्लेषण कर रहे थे। 

उस नगर की बड़ी भारी चौकसी, उसके चारों ओर समुद्र की खाईं तथा रावण-जैसे भयंकर शत्रु को देखकर हनुमान जी इस प्रकार विचारने लगे—

यदि वानर यहाँ तक आ जायँ तो भी वे व्यर्थ ही सिद्ध होंगे; क्योंकि युद्ध के द्वारा देवता भी लंका पर विजय नहीं पा सकते हैं। जिससे बढ़कर विषम (संकटपूर्ण) स्थान और कोई नहीं है, उस रावणपालित इस दुर्गम लंका में आकर महाबाहु श्रीरघुनाथजी भी क्या करेंगे? 

राक्षसों पर सामनीति के प्रयोग के लिये तो कोई गुंजाइश ही नहीं है। इन पर दान,भेद और युद्ध (दण्ड) नीति का प्रयोग भी सफल होता नहीं दिखायी देता है।  

यहाँ चार ही वेगशाली वानरों की पहुँच हो सकती है—बालिपुत्र अंगद की, नील की, मेरी और बुद्धिमान् राजा सुग्रीव की।

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