सचेतन- 12: अहं ब्रह्मास्मि
“मैं ब्रह्म हूँ” — यानी “मैं खुद उस परम शक्ति का हिस्सा हूँ।”
यह बात बताती है कि:
👉 हमारे अंदर वही चेतना है जो पूरे ब्रह्मांड में है।
👉 हम छोटे नहीं हैं, हम उसी अनंत शक्ति से जुड़े हैं।
👉 जब हम सच्चा ज्ञान, प्रेम और आत्म-चिंतन करते हैं, तब हमें यह समझ आता है कि हमारा असली स्वरूप दिव्य है।
जैसे समुद्र की एक बूँद को देखें — वह दिखने में छोटी होती है, लेकिन उसमें वही पानी होता है जो पूरे समुद्र में है।
वैसे ही हम भी उस ब्रह्म (परमात्मा) की बूँद हैं।
“मैं कोई छोटा या कमजोर नहीं हूँ। मेरे अंदर भी वही शक्ति है जो पूरे संसार में है। जब मैं अच्छा सोचता हूँ, अच्छा करता हूँ और खुद को पहचानता हूँ — तब मैं जानता हूँ कि मैं भी ब्रह्म हूँ।”
🌸 कहानी: चिंगारी और अग्नि
बहुत समय पहले एक गांव में एक छोटा बच्चा था – उसका नाम था आरव।
आरव हर समय सोचता, “मैं क्यों कमजोर हूँ? भगवान तो बहुत शक्तिशाली हैं, मैं तो कुछ भी नहीं हूँ।”
एक दिन वह जंगल में गया और एक साधु बाबा से मिला।
साधु बाबा ने मुस्कराकर पूछा,
“बेटा, अगर आग से एक चिंगारी निकले, तो क्या वह चिंगारी भी अग्नि नहीं है?”
आरव ने कहा, “हां बाबा, उसमें भी जलाने की शक्ति होती है।”
बाबा बोले,
“ठीक वैसे ही, तुम भी उस परम ब्रह्म की चिंगारी हो।
तुम्हारे अंदर भी वही शक्ति है, वही ज्ञान, वही प्रेम।
तुम खुद को छोटा मत समझो — अहं ब्रह्मास्मि — तुम ब्रह्म हो।“
उस दिन से आरव ने खुद पर विश्वास करना शुरू किया।
उसने पढ़ाई की, लोगों की मदद की, और अपने गांव का सबसे बुद्धिमान और दयालु व्यक्ति बन गया।
🪔 शिक्षा:
हम सब में एक दिव्य शक्ति है। जब हम उसे पहचानते हैं, तब हम समझते हैं — “मैं ब्रह्म हूँ।”
🌟 कहानी: राजा और दर्पण
बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से राज्य में एक राजा था जिसे बचपन से ही ज्ञान की बहुत लालसा थी। उसने कई ग्रंथ पढ़े, गुरुओं से शिक्षा ली, लेकिन वह एक बात कभी नहीं समझ पाया —
“अहं ब्रह्मास्मि” — मैं ब्रह्म हूँ।
राजा सोचता,
“मैं कैसे ब्रह्म हो सकता हूँ? मैं तो दुखी होता हूँ, क्रोधित होता हूँ, बूढ़ा होता हूँ। अगर मैं ब्रह्म हूँ, तो मुझे तो हमेशा आनंद में रहना चाहिए!”
उसने इस प्रश्न को हल करने के लिए एक महान योगी को बुलवाया।
योगी मुस्कराए और बोले:
“मैं तुम्हें उत्तर नहीं दूँगा, लेकिन एक अनुभव कराऊँगा।”
🔍 अनुभव की तैयारी
योगी राजा को एक शांत कक्ष में ले गए।
वहाँ एक बड़ा सा दर्पण रखा था।
योगी ने कहा:
“इस दर्पण में देखो। क्या दिखता है?”
राजा बोला:
“मेरा प्रतिबिंब।”
योगी बोले:
**”अगर दर्पण टूटा हुआ हो, या धूल भरा हो, तो क्या होगा?”
राजा ने कहा:
“प्रतिबिंब धुंधला या टूटा-फूटा दिखेगा।”
तब योगी ने धीरे से कहा:
“ठीक वैसे ही, तुम्हारी आत्मा ब्रह्म है — पर जब मन (दर्पण) अशांत, अहंकारी या अज्ञान से भरा होता है, तो तुम्हें अपना सत्य स्वरूप नहीं दिखता।”
“जब मन शांत होता है, शुद्ध होता है — तब अनुभव होता है कि ‘अहं ब्रह्मास्मि’ — मैं वही शुद्ध ब्रह्म हूँ।”
🌈 राजा की आंखें खुल गईं
राजा भाव-विभोर हो गया।
उसने समझ लिया —
“मैं शरीर नहीं, मन नहीं —
मैं वही अनंत चेतना हूँ जो हर जीव में है।”
अब वह न राजा रहा, न शिष्य —
वह बोध से भर गया —
और गहराई से बोला:
“अब मैं जान गया… अहं ब्रह्मास्मि।”
🕉️ कहानी का सार:
जब मन का दर्पण साफ होता है —
तब आत्मा, जो ब्रह्म है, खुद को पहचान लेती है।
यह ज्ञान सुनने से नहीं, अनुभव से आता है।
“अहं ब्रह्मास्मि” (मैं ब्रह्म हूँ)
— यह संस्कृत का एक महावाक्य है, जो बृहदारण्यक उपनिषद से लिया गया है।
यह अद्वैत वेदांत का मूल सिद्धांत है, और इसका अर्थ है:
👉 “मैं वही ब्रह्म हूँ” — यानी मैं सीमित शरीर, मन या नाम नहीं हूँ, बल्कि वही अनंत चेतना हूँ जो सृष्टि का मूल है।
🌼 सरल व्याख्या:
“अहं” = मैं
“ब्रह्म” = ब्रह्म (परम चेतना, परमसत्य)
“अस्मि” = हूँ
➡️ इसका अर्थ हुआ: “मैं ब्रह्म हूँ”,
यानि मैं और ब्रह्म अलग नहीं हैं।
🪷 भावार्थ:
- यह वाक्य हमें यह याद दिलाता है कि हम सिर्फ शरीर, मन या अहंकार नहीं हैं।
- हमारी आत्मा, हमारी चेतना — वही ब्रह्म है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है।
- यह ज्ञान, अनुभव और आत्मबोध से प्राप्त होता है, सिर्फ पढ़ने या सुनने से नहीं।
📖 एक छोटी सी भावना कथा:
एक साधक गुरुकुल में वर्षों तक पढ़ाई करता रहा।
एक दिन गुरु ने पूछा:
“तू अब क्या समझा?”
साधक बोला:
“मैं अब समझ गया हूँ कि मैं शरीर नहीं, नाम नहीं, अहंकार नहीं —
बल्कि ‘अहं ब्रह्मास्मि’ — मैं ब्रह्म हूँ।”
गुरु ने मुस्कराकर कहा:
“अब तू नहीं बोल रहा… अब भीतर का ब्रह्म बोल रहा है।”
🌟 जीवन में इसका क्या अर्थ?
- हम डर, दुख और सीमाओं से ऊपर उठ सकते हैं,
जब हमें यह बोध हो जाए कि हमारी सच्ची पहचान ब्रह्म है — अनंत, असीम, अपराजेय।
यह आत्मविश्वास, करुणा और शांति की ओर ले जाता है।