सचेतन 3.14 : नाद योग: आंतरिक ध्वनि यात्रा

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सिद्धासन और वैष्णवी-मुद्रा में योगी की ध्वनि यात्रा

नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र  में.

पिछले सत्र में हमने बात किया था नाद योग में चार प्रकार की ध्वनियाँ हमारे ध्यान और साधना की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह ध्वनियाँ हमें बाहरी और आंतरिक जगत से जोड़ती हैं और हमारे आत्मिक विकास में सहायक होती हैं।

नाद योग में चार प्रकार की ध्वनियाँ

1. आहट (Aahat): जिन्हें हम बाहर से सुनते हैं।, इसमें संगीत, मंत्र, या किसी वाद्य यंत्र की ध्वनि शामिल होती है।

2. परमाहट (Paramaahat): जिन्हें हम बाहर से सुनते हैं। यह ध्वनियाँ अधिक गहरी और सूक्ष्म होती हैं।

3. अणाहट (Anahata): जो भीतर से उत्पन्न होती हैं। इन्हें केवल ध्यान और साधना के माध्यम से सुना जा सकता है।

4. अनाहत (Anahata): जो भीतर से उत्पन्न होती हैं। यह ध्वनियाँ अत्यंत सूक्ष्म और गहन होती हैं।

नाद योग का अभ्यास हमें मानसिक शांति, आत्मिक संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में ले जाता है। यह योग हमें हमारी आत्मा की गहराइयों तक ले जाता है और हमें अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित कराता है। तो दोस्तों, इस अद्भुत योग के मार्ग पर चलें और ध्वनि की शक्ति से अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाएं।

आज हम एक अत्यंत गहन और अद्वितीय योगिक प्रक्रिया के बारे में जानेंगे – सिद्धासन और वैष्णवी-मुद्रा में योगी की आंतरिक ध्वनि यात्रा।

इस योगिक प्रक्रिया में योगी सिद्धासन में बैठकर वैष्णवी-मुद्रा का अभ्यास करता है। इस मुद्रा में ध्यान के समय योगी को हमेशा अपने दाहिने कान से आंतरिक ध्वनि सुननी चाहिए। यह ध्वनि उसके ध्यान की प्रक्रिया का मूल तत्व होती है। जब योगी इस ध्वनि का अभ्यास करता है, तो वह धीरे-धीरे बाहरी ध्वनियों के प्रति बहरा हो जाता है और सभी बाधाओं को पार करते हुए पंद्रह दिनों के भीतर तुर्य अवस्था में प्रवेश करता है।

शुरुआत में, योगी को कई तेज आवाजें सुनाई देती हैं। ये आवाजें धीरे-धीरे पिच में बढ़ती हैं और अधिक सूक्ष्मता से सुनी जाती हैं। सबसे पहले, उसे समुद्र की लहरों, बादलों की गड़गड़ाहट, भेड़ के रंभाने, झरने की कल-कल, और नगाड़ों की ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। यह ध्वनियाँ योगी को एक गहन ध्यान की ओर ले जाती हैं।

जैसे-जैसे योगी का ध्यान और गहरा होता जाता है, वह घंटियों की टंकार, बांसुरी की मधुर धुन, वीणा के मधुर सुर, और मधुमक्खियों की गूंज जैसी सूक्ष्म ध्वनियाँ सुनता है। ये ध्वनियाँ उसकी आत्मा को एक नई ऊँचाई पर ले जाती हैं और उसे एकाग्रता की गहराईयों में डुबो देती हैं।

योगी अपनी एकाग्रता को स्थूल ध्वनि से सूक्ष्म ध्वनि में बदल सकता है, या सूक्ष्म से स्थूल में। लेकिन उसे अपने मन को अन्य ध्वनियों से अलग नहीं होने देना चाहिए। मन पहले किसी एक ध्वनि पर एकाग्र हो जाता है और उसी में लीन हो जाता है।

जब तक ध्वनि है, तब तक मन का अस्तित्व है। लेकिन ध्वनि के समाप्त होने के साथ ही योगी उन्मनी अवस्था में पहुँचता है। यह वह स्थिति है जब मन और प्राण (वायु) के साथ उसके कर्म संबंध नष्ट हो जाते हैं और वह आत्मा में लीन हो जाता है। इसमें कोई शक नहीं है कि यह अवस्था ब्रह्म-प्रणव ध्वनि में लीन होने की है।

जब योगी की दृष्टि बिना किसी वस्तु के स्थिर हो जाती है, वायु (प्राण) बिना किसी प्रयास के शांत हो जाती है, और चित्त बिना किसी सहारे के दृढ़ हो जाता है, तो वह ब्रह्म की आंतरिक ध्वनि के रूप में प्रणव या ओंकार में लीन हो जाता है।

हमें आशा है कि आपको योग की इस गहन प्रक्रिया के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। आइए, जानते हैं कि इस मुद्रा का अभ्यास कैसे किया जाता है और यह कैसे हमारे जीवन को प्रभावित करती है।

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