सचेतन 149 : श्री शिव पुराण- आपकी सर्वोच्च शक्ति हमारी मानसिक स्थिति का परिणाम है।
“यत्न देवो भव” की उपासना करनी चाहिए
अगर आपकी परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं तो भी प्रयास और साधनों का उपयोग करते रहना चाहिये। थोड़ा थोड़ा प्रयास करके उच्च-स्तर तक पहुँचा जा सकता है किन्तु मानसिक शक्ति अपने साथ बनी रहनी चाहिये। कार्य करते समय ऊबो नहीं और उत्तेजित भी न हों। यह समझ लें कि हमें तो लक्ष्य तक पहुँचना है। जितनी बार गिरो उतनी बार उठो। एक बार गिरने से उसका कारण मालूम पड़ जायेगा तो दुबारा उधर से सावधान हो जाओगे। यह स्थिति निरन्तर चलती रहे तो अनेक बाधाओं के रहते हुए भी अपने लिये उन्नति का मार्ग निकाला जा सकता है। हार मन के हारने से होती है। मन यदि बलवान है तो इच्छा-पूर्ति भी अधिक सुनिश्चित समझनी चाहिये।
आज यदि स्थिति ठीक नहीं है तो भविष्य में भी वह ऐसी ही बनी रहेगी, ऐसा कमजोर बनाने वाला विचार अपने मस्तिष्क से निकाल दें। श्रेष्ठता अन्दर सुप्तावस्था में पड़ी हुई है। इसमें संशय नहीं कि हम हर आवश्यकता अपने आप पूरी कर सकते हैं पर इसके लिये सतत् अभ्यास की आवश्यकता है। अपना उद्योग बन्द न करें। अकर्मण्यता और आलस्य का, अधीरता और प्रयत्न हीनता का साथ छोड़कर “यत्न देवो भव” की उपासना आरम्भ कर दोगे तो पुरुषार्थ का देवता ही अपने लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर देगा। काम करने में शिथिलता न व्यक्त करें। ढिलाई न करें। चिन्तित न हों। आत्म विश्वास न खोओ। धैर्य के साथ ‘यत्न’ देव का आश्रय पकड़े रहें तो यह निश्चय है कि आज की यह दीन-हीन अवस्था कल श्री सम्पन्न अवस्था में बदल कर रहेगी।
ऊँचे से ऊँची इमारत की नींव भी नीचे ही रखी होती है। ऊँचे उठने का शुभारम्भ निचली पृष्ठभूमि से किया जाता है। निर्धन धनकुबेर होते हैं। पहलवान कोई माँ के पेट से बनकर नहीं आता। उसके लिये तो विधिवत् उपासना करनी पड़ती है।
दिव्य स्त्री को सर्वोच्च शक्ति माना गया है। स्त्री तत्व या देवी दुर्गा ख़ास कर हिंदु धर्म की मान्यताओं एक अवधारणा और इन्हें ब्रह्मांड का मूल निर्माता माना जाता है। देवी शक्ति नारी शक्ति के प्रतीक के रूप में है जो सभी की उत्पत्तिकर्ता मानी जाती है क्योंकि आरम्भ में, परम शक्ति ‘निर्गुण’ (बिना आकार के) थी, जिसने बाद में स्वयं को तीन शक्तियों (सत्त्विक, राजसी और तामसी) के रूप में प्रकट किया।
आपके अंदर तीन प्रकार की शक्तियाँ मौजूद हैं-
सत्त्विक शक्ति- रचनात्मक क्रिया और सत्य का प्रतीक है।
राजसी शक्ति- लक्ष्यहीन कर्म और जुनून पर केंद्रित है।
तामासी शक्ति- विनाशकारी क्रिया और भ्रम का प्रतिनिधित्व करता है।
अगर आप किसी की रक्षा या या पालन पोषण करते हैं तो तीनों लोकों का पालन करने वाले श्रीहरि आपके भीतर तमोगुण और बाहर सत्वगुण का धारण करते हैं
अगर आप अडिग और अपने सभी अवगुण, द्वेष को ख़त्म करेंगे तो आओके अंदर त्रिलोक का संहार करने वाले रुद्रदेव जैसे भीतर से सत्वगुण और बाहर तमोगुण धारण करते हैं वैसा प्रतीत होगा तथा
अगर आप किसी चीज की रचना या सृजन करते हैं तो त्रिभुवन की सृष्टि करने वाले ब्रह्माजी जैसे बाहर और भीतर से रजोगुणी हैं वैसा महसूस करेंगे। इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्र तीनों देवताओं में गुण हैं तो शिव गुणातीत माने जाते हैं।
सृजन एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें नये विचार, उपाय या कांसेप्ट का जन्म होता है। वैज्ञानिक मान्यता यह है कि सृजन का फल में मौलिकता एवं सम्यकता दोनो विद्यमान होते हैं। निर्माण सृजन का समतुल्य शब्द है, किन्तु इसमें मौलिकता का बोध नहीं है। किसी जानकारी के आधार पर कोई भी निर्माण कर सकता है।
आपकी शक्ति ही आपकी प्रकृति है जिसको स्त्री तत्व के रूप में परम सत्य की तरह वर्णित किया जाता है और वह ‘निर्गुण’ रूप (बिना आकार के) और जो ब्रह्मांड का परम स्रोत है और साथ ही सभी का शाश्वत अंत है।
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