सचेतन 148 : श्री शिव पुराण- आपकी सर्वोच्च शक्ति मानसिक स्थिति का परिणाम है।
संसार की सम्पूर्ण बाह्य रचना की शक्ति और आधार मन है।
स्वयं को सर्वोच्च शक्ति के स्रोत के साथ जोड़ने से एक चमकता हुआ प्रकाश का अनुभव आप अपने अंदर करेंगे जिसको प्रकृति कहते हैं। शक्ति के मुख्य स्रोत (source) प्रायः मनुष्यों एवं जानवरों की पेशीय ऊर्जा (muscular energy), नदी एवं वायु की गतिज ऊर्जा, उच्च सतहों पर स्थित जलाशय की स्थितिज (potential) ऊर्जा, लहरों एवं ज्वारभाटा की ऊर्जा, पृथ्वी एवं सूर्य की ऊष्मा ऊर्जा, ईंधन को जलाने से प्राप्त ऊष्मा ऊर्जा आदि हैं
सर्वोच्च शक्ति हमारी मानसिक स्थिति का परिणाम है। मन कर्त्ता है। संसार की सम्पूर्ण बाह्य रचना की शक्ति और आधार मन है। हमारा आहार, रहन-सहन, चाल-चलन व्यवहार-विचार, शिक्षा-समुन्नति यह सारी बातें हमारी मानसिक दशा के अनुरूप ही होती हैं। जैसा कुछ चिन्तन करते हैं, विचार करते हैं वैसे ही क्रिया-कलाप भी होते हैं, और तद्नुसार वैसे ही अच्छे बुरे कर्म भी बन पड़ते हैं। सुख और दुःख बन्धन और मुक्ति चूँकि इन्हीं कर्मों का परिणाम हैं इसलिये हमारे उद्धार और पतन का कारण भी हमारा मन ही है।
कोई भी बड़ा कार्य, श्रेष्ठ सत्कर्म या उन्नति करनी हो तो उसके अनुरूप मानसिक शक्ति की ही आराधना करनी पड़ेगी। मन की शक्तियों को यत्न पूर्वक उस दिशा में प्रवृत्त करना पड़ेगा। जो लोग यह कहते रहते हैं कि “क्या करें हमारा तो मन ही नहीं मानता” उन्हें यह जानना चाहिये कि मानसिक शक्तियाँ सर्वथा स्वच्छन्द नहीं हैं। मन इच्छा शक्ति के अधीन है। इच्छाओं के आकार-प्रकार पर उनकी क्रिया शक्ति सम्भावित है। एक व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है दूसरा निम्न कक्षाओं से ही अध्ययन छोड़ बैठता है, एक धनी है दूसरा निर्धन, एक डॉक्टर है दूसरा वकील, जिसकी जो स्थिति है वह उसकी इच्छा के फलस्वरूप ही है। यदि किसी को अनिच्छा पूर्वक किसी स्थिति में रहना पड़ रहा है तो इससे एक ही अर्थ निकाला जायेगा कि उस व्यक्ति ने इच्छाओं के अनुरूप कार्य शक्ति में मन को प्रयुक्त नहीं किया। जिसकी मानसिक शक्तियां विश्रृंखलित रहेंगी वह न तो कोई सफलता ही प्राप्त कर सकेगा और न ही उसकी कोई इच्छा पूर्ण होगी। हम सभी की प्रकृति हमारी मानसिक शक्तियों पर निर्भर है।
परिस्थितियाँ यदि प्रतिकूल हैं तो भी साधनों का उपयोग करते रहना चाहिये। थोड़ी-सी पूँजी से बढ़कर उच्च-स्तर के व्यापार तक पहुँचा जा सकता है किन्तु मानसिक शक्ति अपने साथ बनी रहनी चाहिये। कार्य करते समय ऊबो नहीं और उत्तेजित भी न हों। यह समझ लें कि हमें तो लक्ष्य तक पहुँचना है। जितनी बार गिरो उतनी बार उठो। एक बार गिरने से उसका कारण मालूम पड़ जायेगा तो दुबारा उधर से सावधान हो जाओगे। यह स्थिति निरन्तर चलती रहे तो अनेक बाधाओं के रहते हुए भी अपने लिये उन्नति का मार्ग निकाला जा सकता है। हार मन के हारने से होती है। मन यदि बलवान है तो इच्छा-पूर्ति भी अधिक सुनिश्चित समझनी चाहिये।
आपकी प्रकृति ‘उमा’ नाम से विख्यात परमेश्वरी है जो प्रकृति देवी भी है। इन्हीं की शक्तिभूता वाग्देवी सरस्वती ब्रह्माजी की अर्द्धांगिनी हैं और दूसरी देवी, जो प्रकृति देवी से उत्पन्न हुई है वह, लक्ष्मी रूप में विष्णुजी की शोभा बढ़ती हैं तथा काली नाम से जो तीसरी शक्ति उत्पन्न हुई है, वह अंशभूत रुद्रदेव को प्राप्त हुई है।
ये देवी शक्ति के रूप में कार्यसिद्धि के लिए ज्योतिरूप में प्रकट होती हैं। उनका कार्य सृष्टि, पालन और संहार का संपादन है।आपके अंदर स्त्री शक्ति आपकी प्रकृति के रूप में मौजूद है और पुरुष की शक्ति आपके पुरुषार्थ का प्रतीक है।