सचेतन 131 : श्री शिव पुराण- उग्रा रूप ही हवा है।

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सचेतन 131 : श्री शिव पुराण- उग्रा रूप ही हवा है।

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उग्रता में वैकल्पिक रूप को समाहित करना ही रुद्र रूप है

उग्र रूप सर्वतोभद्र है जो सभी तरफ से सुन्दर है। युद्ध के उपरांत अर्जुन अपने सामने शिवजी को पाकर एकदम अवाक् रह गए। वो तुरंत शिवजी को प्रणाम करके स्तुति करने लगे। तब शिवजी बोले- ‘मैं तुम पर प्रसन्न हूं, वर मांगो।’

आप उग्र रूप में युद्ध के चरमोत्कर्ष तक पहुँच जाते हैं। शिव और अर्जुन के युद्ध में यह समझने को मिलता है की वह निश्चित ही मनुष्य नहीं है जो अपने से कमजोर से भी पराजित हो जाय। 

और वह भी मनुष्य नहीं है जो अपने से कमजोर को मारे। 

जिसका नेता पराजित न हुआ हो वह हार जाने के बाद भी अपराजित है। जो पूर्णनतः पराजित को भी मार देता है वह पापरहित नहीं है ।

उग्र का अर्थ है भयंकर, क्रूर, हम बोलचाल में कहते हैं की वो व्यक्ति या पशु या प्रकृति भयंकर या क्रूर या उग्र रूप धारण कर लिया है।क्या हमारा मानसिक और भौतिक शरीर उग्र अवस्था में प्रभावित होते हैं। 

उग्र रूप की जब व्युत्पत्ति होती है तो कई बार यह भ्रमित करने वाला होता है। उग्र की हो जाने पर यहाँ तक की विद्वान लोग भी किसी प्रकार के मूर्ख या फिर जंगली जीव जंतु का पीछा करने के लिए प्रेरित हो जाते हैं।

उग्र रूप में आप ‘ब्रह्मांडीय विघटन करके सभी प्राणियों को रुला सकते हैं। उग्र रूप में रुद्र तो कभी-कभी अग्नि देवता के रूप सामने आ जाते हैं। उग्रा हवा है। यह कुछ भी गतिविधियां कर सकता है, चाहे सृजन की, रखरखाव, विनाश, छिपाव और आशीर्वाद कोई भी गतिविधियां कर सकता है।  

उग्रता में वैकल्पिक रूप को समाहित करना ही रुद्र रूप है, यह रूप आपसे भाषण दिला सकते है यानी आप व्यावहारिक हो कर अपनी बात बता सकते हैं। उग्रता होने पर दुखों को दूर भगाने वाला साधन का आविष्कार कर सकते हैं जिससे सांसारिक संकटों को भी दूर किया जा सकता है। 

उग्र रुद्र आपके लिए बुद्धि का प्रकाश जागृत करता है जिससे आपका भ्रम या कुप्रथा या अज्ञानता दूर हो सकती है।यही सर्वतोभद्र है।

ऋग्वेद में रुद्र तूफान, हवा और शिकार के देवता हैं। उनकी विशिष्ट विशेषताएं उनके भयंकर हथियार और उनकी औषधीय शक्तियां हैं। उग्र रूप ‘धनुर्धर’ जिसका अर्थ है ‘घायल करने वाला या मारने वाला जो धन्विन यानी तेज-तर्रार बाणों से लैस है।

उग्र रूप के धारण होते ही हृदय की धड़कन, तंत्रिका की गति, शरीर का तापमान, हार्मोन आदि का बदलाव आप महसूस करते हैं। उग्र होने पर अपनी विशिष्ट विशेषताओ को माध्यम बनाये और आपके अंदर औषधीय शक्तियां जागरूक होती हैं।

उग्र रूप को नियंत्रित करने का अभ्यास के लिए प्राणायाम सबसे महत्वपूर्ण योग अभ्यासों में से एक है। 

प्राणायाम शब्द दो घटकों से मिलकर बना है: ‘ प्राण ‘ और ‘ आयाम ‘। प्राण का अर्थ है ‘महत्वपूर्ण ऊर्जा’ या ‘जीवन शक्ति’। आयम को ‘विस्तार’ या ‘विस्तार’ के रूप में परिभाषित किया गया है। इस प्रकार, प्राणायाम शब्द का अर्थ है ‘ प्राण के आयाम का विस्तार या विस्तार ‘। प्राणायाम प्रथाओं में , श्वास के चार महत्वपूर्ण पहलू हैं जैसे (1) पूरक (साँस लेना), (2) रेचक (छोड़ना), (3) अंतः कुम्भक (आंतरिक श्वास प्रतिधारण), और (4) बहिः कुम्भक (बाहरी श्वास) अवधारण)। प्राणायाम का एक उन्नत चरण जो ध्यान की उच्च अवस्थाओं के दौरान होता है उसे केवला कुम्भक (सहज श्वास प्रतिधारण) कहा जाता है ।

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