सचेतन 204: शिवपुराण- वायवीय संहिता – कभी हिम्मत नहीं हारें

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मुंशी प्रेमचंद की दो बैल की कहानी 

हीरा और मोती झूरी के घर बहुत सुख से रहा करते थे लेकिन झुरी के ससुराल में उसे मार पड़ी, उस पर ख़ुश्क भूसा खाने को मिलता। एक मर्तबा झूरी का साला गया ने ज़ालिम बनकर हीरा की नाक पर डंडा जमाया, तो मोती ग़ुस्से के मारे आपे से बाहर हो गया, हल ले के भागा। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं तो वो दोनों निकल गए होते। मोती तो बस ऐंठ कर रह गया। 

गया की छोटी सी लड़की रोटियाँ लाकर दोनों के मुँह में खिलाती थी इन बैलों से उसे हमदर्दी हो गई। दोनों दिन भर जोते जाते। उल्टे डंडे खाते, शाम को थान पर बाँध दिए जाते और रात को वही लड़की उन्हें एक एक रोटी दे जाती। 

एक-बार रात को जब लड़की रोटी देकर चली गई तो दोनों रस्सियाँ चबाने लगे, लेकिन मोटी रस्सी मुँह में न आती थी। बेचारे ज़ोर लगा कर रह जाते। इतने में घर का दरवाज़ा खुला और वही लड़की निकली। दोनों सर झुका कर उसका हाथ चाटने लगे। उसने उनकी पेशानी सहलाई और बोली, “खोल देती हूँ, भाग जाओ, नहीं तो ये लोग तुम्हें मार डालेंगे। आज घर में मश्वरा हो रहा है कि तुम्हारी नाक में नथ डाल दी जाये। उसने रस्से खोल दिए और फिर ख़ुद ही चिल्लाई, “ओ दादा! ओ दादा! दोनों फूफा वाले बैल भागे जा रहे हैं। दौड़ो… दौड़ो!” 

गया घबरा कर बाहर निकला, उसने बैलों का पीछा किया वो और तेज़ हो गए। गया ने जब उनको हाथ से निकलते देखा तो गाँव के कुछ और आदमियों को साथ लेने के लिए लौटा। फिर क्या था दोनों बैलों को भागने का मौक़ा मिल गया। सीधे दौड़े चले गए। रास्ते का ख़याल भी न रहा, बहुत दूर निकल गए, तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े हो कर सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए? दोनों भूख से बेहाल हो रहे थे। खेत में मटर खड़ी थी, चरने लगे। जब पेट भर गया तो दोनों उछलने कूदने लगे। 

देखते क्या हैं कि एक मोटा ताज़ा साँड झूमता चला आ रहा है। दोनों दोस्त जान हथेलियों पर लेकर आगे बढ़े। जूँ ही हीरा झपटा, मोती ने पीछे से हल्ला बोल दिया। साँड उसकी तरफ़ मुड़ा तो हीरा ने ढकेलना शुरू कर दिया। साँड ग़ुस्से से पीछे मुड़ा तो हीरा ने दूसरे पहलू में सींग रख दिए। बेचारा ज़ख़्मी हो कर भागा दोनों ने दूर तक तआक़ुब किया। जब सांड बे-दम हो कर गिर पड़ा, तब जाकर दोनों ने उसका पीछा छोड़ा। 

दोनों फ़तह के नशे में झूमते चले जा रहे थे। फिर मटर के खेत में घुस गए। अभी दो-चार ही मुँह मारे थे कि दो आदमी लाठी लेकर आ गए और दोनों बैलों को घेर लिया। दूसरे दिन दोनों दोस्त काँजी हाऊस /जमगाड़ा में बंद थे। 

उनकी ज़िंदगी में पहला मौक़ा था कि खाने को तिनका भी न मिला। वहाँ कई भैंसें थीं, कई बकरियां, कई घोड़े, कई गधे, मगर चारा किसी के सामने न था। सब ज़मीन पर मुर्दे की तरह पड़े थे। रात को जब खाना न मिला तो हीरा बोला, “मुझे तो मालूम होता है कि जान निकल रही है। मोती ने कहा, “इतनी जल्दी हिम्मत न हारो भाई, यहाँ से भागने का कोई तरीक़ा सोचो।” बाड़े की दीवार कच्ची थी। हीरा ने अपने नुकीले सींग दीवार में गाड़ कर सुराख़ किया और फिर दौड़-दौड़ कर दीवार से टक्करें मारीं। 

टक्करों की आवाज़ सुन कर काँजी हाऊस का चौकीदार लालटेन लेकर निकला। उसने जो ये रंग देखा तो दोनों को कई डंडे रसीद किए और मोटी रस्सी से बाँध दिया हीरा और मोती ने फिर भी हिम्मत न हारी। फिर उसी तरह दीवार में सींग लगा कर ज़ोर करने लगे। आख़िर दीवार का कुछ हिस्सा गिर गया। दीवार का गिरना था कि जानवर उठ खड़े हुए, घोड़े, भेड़, बकरियां, भैंसें सब भाग निकले। हीरा, मोती रह गए सुबह होते होते मुंशियों, चौकीदारों और दूसरे मुलाज़मीन में खलबली मच गई। उसके बाद उन की ख़ूब मरम्मत हुई। अब और मोटी रस्सी से बाँध दिया गया। 

एक हफ़्ते तक दोनों बैल वहाँ बंधे पड़े रहे। ख़ुदा जाने काँजी हाऊस के आदमी कितने बे-दर्द थे, किसी ने बेचारों को एक तिनका भी न दिया। एक मर्तबा पानी दिखा देते थे। ये उनकी ख़ुराक थी। दोनों कमज़ोर हो गए। हड्डियाँ निकल आईं। 

एक दिन बाड़े के सामने डुगडुगी बजने लगी और दोपहर होते होते चालीस पच्चास आदमी जमा हो गए। तब दोनों बैल निकाले गए। लोग आकर उनकी सूरत देखते और चले जाते, उन कमज़ोर बैलों को कौन ख़रीदता! इतने में एक आदमी आया, जिसकी आँखें सुर्ख़ थीं, वो मुंशी जी से बातें करने लगा। उसकी शक्ल देखकर दोनों बैल काँप उठे। नीलाम हो जाने के बाद दोनों बैल उस आदमी के साथ चले। 

अचानक उन्हें ऐसा मालूम हुआ कि ये रस्ता देखा हुआ है। हाँ! इधर ही से तो गया उनको अपने गाँव ले गया था, वही खेत, वही बाग़, वही गाँव, अब उनकी रफ़्तार तेज़ होने लगी। सारी तकान, सारी कमज़ोरी, सारी मायूसी रफ़ा हो गई। अरे! ये तो अपना खेत आ गया। ये अपना कुंआँ है, जहाँ हर-रोज़ पानी पिया करते थे। 

दोनों मस्त हो कर कुलेंलें करते हुए घर की तरफ़ दौड़े और अपने थान पर जाकर खड़े हो गए। वो आदमी भी पीछे-पीछे दौड़ा आया। झूरी दरवाज़े पर बैठा खाना खा रहा था, बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें प्यार करने लगा। बैलों की आँखों से आँसू बहने लगे। 

उस आदमी ने आकर बैलों की रस्सियाँ पकड़ लीं। झूरी ने कहा, “ये बैल मेरे हैं। तुम्हारे कैसे हैं। मैंने नीलाम में लिये हैं।” वो आदमी ज़बरदस्ती बैलों को ले जाने के लिए आगे बढ़ा। उसी वक़्त मोती ने सींग चलाया, वो आदमी पीछे हटा। मोती ने तआक़ुब किया और उसे खदेड़ता हुआ गाँव के बाहर तक ले गया। गाँव वाले ये तमाशा देखते थे और हंसते थे। जब वो आदमी हार कर चला गया तो मोती अकड़ता हुआ लौट आया। 

ज़रा सी देर में नाँद में खली, भूसा, चोकर, दाना सब भर दिया गया। दोनों बैल खाने लगे। झूरी खड़ा उनकी तरफ़ देखता रहा और ख़ुश होता रहा, बीसियों लड़के तमाशा देख रहे थे। सारा गाँव मुस्कराता हुआ मालूम होता था। 

उसी वक़्त मालकिन ने आख़िर दोनों बैलों के माथे चूम लिये।

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