सचेतन 2.15: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – वसुधैव कुटुंबकम का एकमात्र कल्याण की आकांक्षा रखें
हे वानरशिरोमणि आपने यह दुष्कर कर्म किया है। आप उतर कर मेरे इन शिखरो पर सुख पूर्वक विश्राम कर लीजिए फिर आगे की यात्रा कीजिएगा श्री रघुनाथ जी के पूर्वजों ने समुद्र की वृद्धि की थी, इस समय आप उनके हित करने में लगे हैं। अतः समुद्र आपका सत्कार करना चाहता है किसी ने उपकार किया हो तो बदले में उसका भी उपकार किया जाए यह सनातन धर्म है।
यहाँ जिज्ञासा को बढ़ाया जा रहा है लुभावना नहीं दी जा रही है।
यहाँ कोई थोपे गये विश्वास की बातचीत नहीं है और कोई अपराधबोध भी नहीं है। यहाँ एक दूसरे के परम कल्याण के लिए मैनाक पर्वत और हनुमान जी के बीच जिज्ञासा का एक गहन भाव लाया जा रहा है की आप यहाँ थोड़ा विश्राम कर लीजिए जिससे की आपके श्री रघुनाथ जी के पूर्वजों के द्वारा जो समुद्र के लिए उपकार किया गया था की उनकी वृद्धि की थी, और आप इस समय आप उनके दूत बन का उनका हित करने में लगे हैं इसीलिए यह समुद्र आपका सत्कार करना चाहता है। यानी पहले जो किसी ने उपकार किया था तो उसके बदले में उसका भी उपकार किया जाए यह सनातन धर्म है।यह जीवन में जिज्ञासा का एक गहन भाव है और आपके अंदर कोई उत्सुकता, या प्रबल इच्छा जगाना ही सनातन धर्म का असली प्रयोजन है।
आज के युग में डर, अपराधबोध और पसंद का इस्तेमाल करके मानव बुद्धि की प्राकृतिक जिज्ञासा को जबरदस्त तरीके से खत्म कर दिया गया। मानवता के परम कल्याण के लिए यह बेहद जरूरी है कि हरेक व्यक्ति के जीवन में जिज्ञासा का एक गहन भाव लाया जाए। यही सनातन धर्म का असली लक्ष्य है।
जिज्ञासा का विचार हमें सिखाता है कि पृथ्वी पर हर कोई एक बड़े वैश्विक परिवार के सदस्य हैं।
सनातन में आधुनिक और समसामयिक चुनौतियों का सामना करने के लिए इसमें समय समय पर बदलाव होते रहे हैं, जैसे कि राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद आदि ने किया है ।
आज सनातन का पर्याय हिन्दू है पर सिख, बौद्ध, जैन धर्मावलम्बी भी सनातन धर्म का हिस्सा हैं, क्योंकि बुद्ध भी अपने को सनातनी कहते हैं।यहाँ तक कि नास्तिक जोकि चार्वाक दर्शन को मानते हैं वह भी सनातनी हैं। सनातन धर्मी के लिए किसी विशिष्ट पद्धति, कर्मकांड, वेशभूषा को मानना जरुरी नहीं। बस वह सनातनधर्मी परिवार में जन्मा हो, वेदांत, मीमांसा, चार्वाक, जैन, बौद्ध, आदि किसी भी दर्शन को मानता हो बस उसके सनातनी होने के लिए पर्याप्त है।
इस दृष्टि से प्रत्युपकार करने की इच्छा वाला यह सागर आपसे सम्मान पाने योग्य है (आप इसका सत्कार ग्रहण करें इतने से ही इसका सम्मान हो जाएगा)। आपके सत्कार के लिए समुद्र ने बड़े आदर से मुझे नियुक्त किया है और कहा है – ये कपिवर हनुमान ने सौ योजन दूर जाने के लिए आकाश में छलांग मारी है अत: आप कुछ देर तक मेरे ऊपर विश्राम कर लीजिए, फिर जाइएगा। इस स्थान पर यह बहुत से सुगंधित और सुस्वादु कंड, मूल तथा फल है। वानर शिरोमणि इनका आस्वादन करके थोड़ी देर तक सुस्ता लीजिए।
इसके बाद आगे की यात्रा कीजिएगा कपिवर आपके साथ हमारा भी कुछ संबंध है आप महान गुणों का संग्रह करने वाले और तीनों लोकों में विख्यात है। कपिश्रेष्ठ पवननंदन जो जो वेगशाली और छलांग करने वाले वानर है, आप सब में मैं आप ही को श्रेष्ठ मानता हूं। धर्म के जिज्ञासा रखने वाले विज्ञ पुरुष के लिए एक साधारण अतिथि भी निश्चय ही पूजा के योग माना गया है, फिर आप जैसे असाधारण शौर्यशाली पुरुष कितने सामान्य के योग है। इस विषय में तो कहना क्या है कपिश्रेष्ठ आप देव शिरोमणि महात्मा वायु के पुत्र हैं और वेग में भी उन्हीं के समान है, आप धर्म के ज्ञाता है। आपकी पूजा होने पर साक्षात वायुदेव का पूजन हो जाएगा।
