सचेतन, पंचतंत्र की कथा-48 : गजराज और मूषकराज
मित्रलाभ की प्रेरक कथा
“नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन सत्र’ में। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं पंचतंत्र के ‘मित्रलाभ’ (मित्र प्राप्ति) से ली गई एक और प्रेरणादायक कहानी – ‘गजराज और मूषकराज’। यह भाग सच्चे मित्र बनाने और उनकी अहमियत पर केंद्रित है। इसमें बताया गया है कि मित्रता जीवन को कैसे बेहतर बना सकती है और सच्चे मित्र चुनने में सावधानी क्यों जरूरी है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची मित्रता, परोपकार, और समझदारी से किसी भी मुश्किल का समाधान निकाला जा सकता है। तो आइए, बिना देरी के इस अद्भुत कहानी की ओर बढ़ते हैं।”
बहुत समय पहले, एक घने जंगल के पास एक बड़ा तालाब था। उस तालाब के किनारे धरती के नीचे चूहों का एक विशाल समूह रहता था, जिनका राजा था मूषकराज।
तालाब के पास कई हाथियों का दल भी निवास करता था, और उनका राजा था गजराज।
सूखा और संकट का समय
एक दिन, जंगल में भयंकर सूखा पड़ गया। पानी की तलाश में गजराज अपने हाथी-समूह के साथ भटकने लगा। तभी उन्होंने उस तालाब को देखा।
गजराज ने अपने साथियों से कहा: मित्रों, हमें पानी मिल गया है! चलो, अपनी प्यास बुझाते हैं।”
हाथियों का पूरा दल तालाब की ओर बढ़ने लगा। लेकिन रास्ते में उनके भारी कदमों से चूहों के बिल नष्ट हो गए। कई चूहे मारे गए और बहुत से घायल हो गए।
मूषकराज की बुद्धिमानी
जब मूषकराज ने यह विनाश देखा, तो उसने समझदारी से काम लिया। वह गजराज के पास गया और नम्रता से कहा:
“हे गजराज! आपका विशाल शरीर हमारे छोटे-से घरों को नष्ट कर रहा है। कृपया हमारी विनती स्वीकार करें। यदि आप कोई दूसरा रास्ता चुनें, तो हमारे प्राण बच सकते हैं।”
गजराज ने ध्यानपूर्वक मूषकराज की बात सुनी और उत्तर दिया: हे मूषकराज, मुझे बहुत दुख है कि हमारे कारण तुम्हें इतनी परेशानी हुई। मैं वादा करता हूँ कि अब हम तुम्हारे बिलों के पास से नहीं गुजरेंगे।”
मित्रता का आरंभ
मूषकराज ने गजराज से कहा: हे गजराज! आपका यह उपकार मैं और मेरे साथी कभी नहीं भूलेंगे। यदि कभी आपको हमारी सहायता की आवश्यकता हो, तो निस्संकोच कहिएगा।”
गजराज मुस्कुराकर बोले: “मूषकराज, तुम छोटे हो, लेकिन तुम्हारे शब्द बड़े मूल्यवान हैं। मैं तुमसे मित्रता का वचन देता हूँ।”
इस प्रकार, गजराज और मूषकराज के बीच सच्ची मित्रता का आरंभ हुआ।
गजराज पर संकट
कुछ समय बाद, जंगल में शिकारी आए। उन्होंने हाथियों को पकड़ने के लिए बड़े-बड़े जाल बिछाए। दुर्भाग्य से, गजराज और उनके कई साथी उन जालों में फँस गए।
गजराज ने दुखी होकर सोचा: मुझे अपने छोटे मित्र मूषकराज की याद आ रही है। वह ही हमारी सहायता कर सकता है।”
मूषकराज की सहायता
गजराज ने अपनी सूंड से आवाज़ निकाली, जिसे सुनकर मूषकराज तुरंत अपने साथियों के साथ वहाँ पहुँचा। उसने देखा कि गजराज और उनके साथी जाल में बुरी तरह फँसे हुए हैं।
मूषकराज ने कहा: “मित्रों, चिंता मत करो। हम चूहे अपने तेज दाँतों से इन जालों को काट देंगे।”
सभी चूहों ने मिलकर अपने दाँतों से जाल काटना शुरू किया। थोड़ी ही देर में उन्होंने सारे हाथियों को आज़ाद कर दिया।
मित्रता का महत्व
गजराज ने गद्गद होकर मूषकराज से कहा: “मित्र, तुम्हारा यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूँगा। तुमने अपनी छोटी-सी शक्ति से हमारा जीवन बचाया।”
मूषकराज मुस्कुराकर बोला: “मित्रता में छोटा या बड़ा कुछ नहीं होता। सच्चे मित्र वही होते हैं, जो संकट के समय साथ दें।”
“दोस्तों, पंचतंत्र के ‘मित्रलाभ’ से ली गई इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है:
- परोपकार और विनम्रता: किसी की मदद करने में कभी झिझकें नहीं।
- सच्ची मित्रता: मित्रता में आकार, शक्ति या स्थिति का कोई महत्व नहीं होता।
- सहयोग और विश्वास: कठिन समय में सच्चे मित्र हमेशा आपके साथ खड़े रहते हैं।
मित्रता का यह पाठ हमारे जीवन को सरल और सुंदर बना सकता है। तो, अपने दोस्तों का सम्मान करें और हर परिस्थिति में उनका सहारा बनें। यही सच्ची मित्रता का मूल है।
“अगले सत्र में फिर मिलेंगे पंचतंत्र की एक और प्रेरणादायक कहानी के साथ। धन्यवाद!”