सचेतन, पंचतंत्र की कथा-51 : गरीबी के संघर्ष और धन की शक्ति

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नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे ‘सचेतन सत्र’ में। आज की कहानी एक व्यक्ति की है, जो गरीबी और धन के बीच उलझा हुआ था। वह सोचने लगा, “अब मुझमें एक अंगुली भी कूदने की ताकत नहीं बची है, इसलिए धनहीन पुरुषों का जीवन व्यर्थ है।” एक कहावत है,
“बिना धन के थोड़ी बुद्धि वाले पुरुष की सारी क्रियाएं गरमी की छोटी नदियों की तरह नष्ट हो जाती हैं।”

हमने पंचतंत्र की किताब से एक दिलचस्प कहानी ‘शाण्डिली द्वारा तिल-चूर्ण बेचने की कथा’ प्रारंभ किए थे जिसमें हमें दान की महत्ता और जीवन में उसके प्रभाव के बारे में बताती है।

कहानी का आरंभ एक छोटे से गाँव से होता है, जहाँ एक ब्राह्मण दम्पत्ति रहता था। ब्राह्मणी शाण्डिली तिल-चूर्ण बनाकर गांव में बेचा करती थी। उनके पास भौतिक सुख-सुविधाएँ कम थीं, लेकिन ब्राह्मण का मानना था कि दान और पुण्य से बड़ी कोई संपत्ति नहीं होती। एक दिन जब ब्राह्मणी अपने पति से उनके दरिद्रता के बारे में शिकायत कर रही थी, तब ब्राह्मण ने उसे समझाया कि जीवन में धन से ज्यादा दान की महत्वता होती है।

ब्राह्मण ने कहा, “देखो ब्राह्मणी, हमारे पास भले ही अधिक धन न हो, परंतु हमारे पास जो कुछ भी है, उसे बांटने में हमें संकोच नहीं करना चाहिए। जैसे एक कुआँ अपना मीठा पानी सभी को देता है और सभी के लिए प्रिय बन जाता है, वैसे ही हमें भी अपनी सामर्थ्य अनुसार दान करना चाहिए।”

ब्राह्मणी ने जवाब दिया, “लेकिन हमारे पास इतना भी कुछ नहीं है कि हम खुद अच्छे से खा सकें, फिर दूसरों को कैसे दान करें?”

ब्राह्मण ने कहा, “यही तो सच्चे दान की परीक्षा है। यदि हम अपनी कमी के बावजूद किसी की मदद करते हैं, तो इससे बड़ा कोई पुण्य नहीं। कहा भी गया है कि जो अपनी थोड़ी सी भी चीज दान करता है, उसे भी उतना ही पुण्य मिलता है, जितना एक धनवान व्यक्ति को।”

ब्राह्मणी इस बातचीत से प्रेरित होकर अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन महसूस करने लगी। उसने निश्चय किया कि वह भी अपने पति की तरह दान करेगी और दूसरों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहेगी।

इस प्रकार, इस कहानी के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि सच्चा दान वही है जो बिना किसी स्वार्थ के किया जाए। 

कहानी का दूसरा भाग एक रोचक कथा था जिसमें सूअर और सियार के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सबक छुपे हुए हैं।

यह कहानी घटित होती है एक घने जंगल में, जहाँ एक भील शिकारी अपने जीविका के लिए शिकार खोजता फिरता था। एक दिन की बात है, जब वह जंगल में गहराई में प्रवेश किया, उसने देखा कि एक विशाल सूअर एक पहाड़ी पर चर रहा है। भील ने बिना किसी देरी के अपने धनुष का सहारा लिया और एक निशाना साधा। तीर ने सूअर को घायल कर दिया, लेकिन मरा नहीं।

घायल सूअर गुस्से में अंधा हो गया और उसने भील पर हमला कर दिया। उसके तीखे दांतों ने भील के पेट को फाड़ दिया, और इस घातक पलटवार में भील वहीं ढेर हो गया। लेकिन, सूअर भी उस हमले में बहुत ज्यादा घायल हो चुका था और थोड़ी ही देर में उसकी भी मृत्यु हो गई।

उसी समय, एक सियार जो पास की झाड़ियों में छुपा भूख से बेहाल था, उसने मौके का फायदा उठाया। उसने सोचा, “यह तो बड़ी सौभाग्य की बात है! मुझे बिना किसी मेहनत के भरपूर भोजन मिल गया है।” लेकिन उसने इसे अपने पुराने अच्छे कर्मों का फल माना और खाने में जुट गया।

सियार ने सोचा कि वह भील और सूअर के शव को खाकर लंबे समय तक भूख से मुक्त रहेगा। उसने अपने लालच में जल्दी-जल्दी खाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने एक तांत की डोरी को मुंह में डाला, वह फंदे में फंस गया और धनुष का छोर उसके सिर में घुस गया। उसकी यह गलती उसकी मौत का कारण बन गई।

यह कहानी हमें बताती है कि जीवन में लालच और जल्दबाजी हमें अनचाही मुसीबतों में डाल सकती है। हमें हमेशा अपने कदम सोच-समझकर उठाने चाहिए और किसी भी चीज की अति से बचना चाहिए। यह भी सिखाती है कि आयु, कर्म, धन, विद्या, और मृत्यु पहले से ही निर्धारित होते हैं, इसलिए हमें अपने जीवन को संयमित और समझदारी से जीना चाहिए।

इसलिए, वह महसूस करता है कि जैसे जंगल में उगने वाले तिल केवल नाम के होते हैं और उनका कोई उपयोग नहीं होता, वैसे ही निर्धन व्यक्ति की सारी अच्छाई भी व्यर्थ होती है।
“गरीब आदमी में सब गुण हों तो भी वे शोभा नहीं पाते, जैसे सूर्य प्राणियों को प्रकाश देता है, वैसे ही लक्ष्मी गुणों को प्रकाशित करती है।”

वह सोचता है कि जो आदमी सुख में पला है, वह अपने धन से ज्यादा दुखी होता है, क्योंकि गरीबी का दुख जन्म से ही उसके साथ रहता है।
“जैसे सूखे कीड़े, आग से जलते हुए वृक्ष का जन्म अच्छा होता है, वैसे ही गरीब आदमी का जन्म अच्छा नहीं माना जाता।”

गरीबी, दरिद्रता और अपमान का दुख इतना बड़ा होता है कि लोग उसे छोड़कर चले जाते हैं, भले ही वह किसी से उपकार करने आए।
“गरीब आदमी के मनोरथ ऊंचे होते हुए भी, वे बाद में दिल में विलीन हो जाते हैं।”

इस व्यक्ति के लिए गरीबी का अंधेरा हमेशा उसे घेरता है। “वह दिन में भी यत्न करके खड़ा होता है, लेकिन कोई उसे देखता नहीं है।”

वह सोचता है, “मैं क्या करूं? कहां जाऊं? मेरे मन को शांति कैसे मिलेगी?”
वह अपने घन को लेकर अकेला मठ में आता है, लेकिन उसकी स्थिति बहुत ही खराब हो चुकी है। उसके सेवक आपस में कानाफूसी करते हुए कहते हैं, “यह हम सब का पेट भरने में असमर्थ है। इसके साथ रहने से हमें नुकसान होता है, क्या फायदा?”

अब उसके सेवक, जो पहले उसके साथ थे, अब उसे तिरस्कार करने लगे हैं। वह सोचता है, “क्या मेरी दरिद्रता ही मेरे सभी संबंधों को समाप्त कर देती है?”

वह फिर सोचता है, “अगर मेरे पास धन होता, तो मेरी स्थिति बिल्कुल बदल जाती, जैसे कुछ और ही लोग होते।”
यही सच है, “धन के बिना पुरुष सिर्फ नाम का पुरुष बनकर रह जाता है।”

वह इस गरीबी को धिक्कारते हुए सोचता है कि शायद अब उसे धन मिल जाए, ताकि उसकी स्थिति पहले जैसी हो सके।
“निधनता से दूषित आदमी, दीनता का पात्र बन जाता है, और यह उसकी जीवन की सबसे बड़ी मुसीबत होती है।

यह आदमी भी अपनी गरीबी से घिरा हुआ है। “घबराए हुए लोग गरीबों को छोड़ देते हैं, जैसे बकरी के पैर की धूल या दीपक की रौशनी में गिरती हुई खाट की छाया।”

यह देख, वह सोचता है, “अगर मैं अमीरों से कुछ पाने के लिए अपनी जान भी दे दूं, तो क्या फर्क पड़ेगा?”
वह अपनी नाकामी से निराश हो जाता है और सोचता है, “जो मेरा है, वह किसी और का नहीं हो सकता।”

उसकी जिंदगी का संघर्ष जारी रहता है।
“मनुष्य जो धन पाता है, उसे देवता भी रोक नहीं सकते।”

वह फिर एक मौके की तलाश में रहता है, लेकिन उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता। उसकी कहानी इस बात को प्रमाणित करती है कि बिना धन के जीवन बहुत कठिन होता है, और धन के बिना कोई भी व्यक्ति अपनी काबिलियत को सही तरीके से साबित नहीं कर सकता।

तो इस कहानी से हम यह समझ सकते हैं कि धन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यह हमारी आत्म-शक्ति और सच्चे गुणों से कहीं ऊपर नहीं है। धन के बिना भी जीवन जीने की राह होती है, लेकिन अगर धन हो तो जीवन की चुनौतियाँ आसान हो जाती हैं।

“गरीबी का अंधेरा बहुत कष्टकारी होता है, लेकिन यह कभी न भूलें कि हमें अपनी आत्म-शक्ति और ज्ञान से अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।”

धन्यवाद!

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