सचेतन 2.7: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – आपके घोषणा में इतनी तीव्रता होनी चाहिए की चारों ओर हलचल मच जाये
समुन्द्र ने हनुमान जी के बाहुवल के कारण उनको श्री रघुनाथ जी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि है अपने ऊपर इन्हे विश्राम दे।
कल हमने बात किया था की सामान्य समझदारी वाले संकल्प से कार्य सिद्धी होती है। जब भी हम काम की तैयारी करें तो सबसे पहले आपने शारीरिक और मानसिक बल का विस्तार करना चाहिए। आपके आस पास के वातावरण के हलचल आपके शारीरिक और मानसिक बल के विस्तार से बढ़ेगा और आपका दृढ़ निश्चय भी उतना ही विशाल और मज़बूत होटी रहना चाहिए और यही तो हनुमान जी के चरित्र के वर्णन की विशेषता है की समुद्र लांघने के लिए और श्री राम के कार्य की सिद्धी के लिए उनका संकल्प बाधाओं से घबराया नहीं बल्कि विस्तार हुआ और बढ़ने लगा था।
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।।
बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी ।। 3 ।।
समुन्द्र के तीर पर एक सुन्दर पर्वत था । हनुमान् जी खेल से ही ( अनायास ही ) कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके अत्यंत बलवान् हनुमान जी उस पर से बड़े वेग से उछले ।। 3 ।।
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।।
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।। 4 ।।
भावार्थः- जिस पर्वत पर हनुमान् जी पैर रखकर चले ( जिस पर से वे उछले ) वह तुरन्त ही पाताल मे धँस गया । जैसे श्री रघुनाथजी का अमोघ बाण चलता है , उसी तरह हनुमान् जी चले ।। 4 ।।
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी।। 5 ।।
भावार्थः- समुन्द्र ने उन्हे श्री रघुनाथ जी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि है मैनाक ! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो ( अर्थात् अपने ऊपर इन्हे विश्राम दे )