सचेतन 139 : श्री शिव पुराण- चंपा और केवड़े के फूलों से शिव पूजन नहीं करना चाहिए।

SACHETAN  > Shivpuran >  सचेतन 139 : श्री शिव पुराण- चंपा और केवड़े के फूलों से शिव पूजन नहीं करना चाहिए।

सचेतन 139 : श्री शिव पुराण- चंपा और केवड़े के फूलों से शिव पूजन नहीं करना चाहिए।

| | 0 Comments

गलत नीतियों से पूजा नहीं करनी चाहिए 

माना जाता है कि एक बार नारद मुनि को पता चला की एक ब्राह्मण ने अपनी बुरी इच्छाओं के लिए चंपा के फूल तोड़े और जब नारद मुनि के वृक्ष्र से पूछा कि क्या किसी ने उसके फूलों को तोड़ा है तो पेड़ ने इससे इनकार कर दिया।

चंपा के फूल  की सच्चाई जान गए थे नारद मुनि

हालांकि जब नारद मुनि ने पास ही के शिव मंदिर में शिवलिंग को चंपा के फूलों से ढ़ंका पाया तो उन्हें सारी सच्चाई समझ आ गई और उन्हें यह बात की समझते देर नहीं लगी कि ब्राह्मण  ने भगवान शिव की यहां पर पूजा की और भगवान की कृपा से वह ब्राह्मण एक शक्तिशाली राजा बन गया, जिसने गरीबों को परेशान करना शुरू कर दिया था और भगवान शिव ने उस ब्राह्मण की मुराद भी पूरी की।

शिव की पसंदीदा फूल था चंपा

जब नारद ने भगवान से उस ब्राह्मण की मदद करने का कारण पूछा तो भगवान शिव ने कहा कि जो चंपा के फूल से मेरी पूजा करता था, उसे वो मना नहीं कर पाए। इसके बाद नारद मुनि वापस आए और चंपा के वृक्ष का शाप दे दिया कि उसके फूल कभी भी भगवान शिव की पूजा में स्वीकार नहीं किए जाएंगे, क्योंकि वृक्ष ने उनसे झूठ बोला और उन्हें गुमराह करने की भी कोशिश की। जिसके बाद आज तक भगवान शिव को अपने पसंदीदा फूल से दूर रहना पड़ता है।

केवड़े के फूलों से शिव पूजन क्यों नहीं करना चाहिए।

शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रह्माजी और भगवान विष्णु में विवाद हो गया कि दोनों में कौन अधिक बड़े हैं। विवाद का फैसला करने के लिए भगवान शिव को न्यायकर्ता बनाया गया। भगवान शिव की माया से एक ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। भगवान शिव ने कहा कि ब्रह्मा और विष्णु में से जो भी ज्योतिर्लिंग का आदि-अंत बता देगा, वह बड़ा कहलाएगा। ब्रह्माजी ज्योतिर्लिंग को पकड़कर आदि पता करने नीचे की ओर चल पड़े और विष्णु भगवान ज्योतिर्लिंग का अंत पता करने ऊपर की ओर चल पड़े। 

जब काफी चलने के बाद भी ज्योतिर्लिंग का आदि-अंत पता नहीं चल सका तो ब्रह्माजी ने देखा कि एक केतकी फूल भी उनके साथ नीचे आ रहा है। ब्रह्माजी ने केतकी के फूल को बहला-फुसलाकर झूठ बोलने के लिए तैयार कर लिया और भगवान शिव के पास पहुंच गए। 

ब्रह्माजी ने कहा कि मुझे ज्योतिर्लिंग कहां से उत्पन्न हुआ, यह पता चल गया है, लेकिन भगवा‍न विष्णु ने कहा कि नहीं, मैं ज्योतिर्लिंग का अंत नहीं जान पाया हूं। ब्रह्माजी ने अपनी बात को सच साबित करने के लिए केतकी के फूल से गवाही दिलवाई, लेकिन भगवान शिव ब्रह्माजी के झूठ को जान गए और ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया। इसलिए ब्रह्माजी पंचमुख से चार मुख वाले हो गए। केतकी के फूल ने झूठ बोला था इसलिए भगवान शिव ने इसे अपनी पूजा से वर्जित कर दिया है। 

ये दोनों फूल महादेव के पूजन के लिए अयोग्य होते हैं। इसके अलावा सभी फूलों का पूजा में उपयोग किया जा सकता है। महादेवी जी पर चावल चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। ये चावल अखण्डित होने चाहिए। उन्हें विधिपूर्वक अर्पित करें। रुद्रप्रधान मंत्र से पूजन करते हुए, शिवलिंग पर वस्त्र अर्पित करें। गंध, पुष्प और श्रीफल चढ़ाकर धूप-दीप से पूजन करने से पूजा का पूरा फल प्राप्त होता है। उसी प्रांगण में बारह ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इससे सांगोपांग पूजा संपन्न होती है। एक लाख तिलों से शिवजी का पूजन करने पर समस्त दुखों और क्लेश का नाश होता है। जौ के दाने चढ़ाने पर स्वर्गीय सुख की प्राप्ति होती है। गेहूं के बने भोजन से लाख बार शिव पूजन करने से संतान की प्राप्त होती है। मूंग से पूजन करने पर उपासक को धर्म, अर्थ और काम-भोग की प्राप्ति होती है तथा वह पूजा समस्त सुखों को देने वाली है।

उपासक को निष्काम होकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। भक्तिभाव से विधिपूर्वक शिव की पूजा करके जलधारा समर्पित करनी चाहिए। शतरुद्रीय मंत्र से एकादश रुद्र जप, सूक्त, षडंग, महामृत्युंजय और गायत्री मंत्र में नमः लगाकर नामों से अथवा प्रणव ‘ॐ’ मंत्र द्वारा शास्त्रोक्त मंत्र से जलधारा शिवलिंग पर चढ़ाएं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *