सचेतन, पंचतंत्र की कथा-14 : “चालाकी की ताकत और प्रेम की तृष्णा”

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धोखे का नाटक और न्याय

जब बुनकर ने कुछ देर बाद उठकर अपनी पत्नी से सवाल पूछे और उसने कोई जवाब नहीं दिया, तो बुनकर को और गुस्सा आ गया। उसने तेज हथियार उठाया और नाइन की नाक काट दी, यह सोचकर कि वह उसकी पत्नी है। नाइन ने रोते-चिल्लाते घर से बाहर निकल कर सभी को इकट्ठा किया और कहने लगी, “देखो, मेरे पति ने मेरी नाक काट दी! मुझे न्याय चाहिए।”

इसके बाद, नाइन और बुनकर दोनों को अदालत में ले जाया गया। वहां न्यायाधीशों ने बुनकर से पूछा, “तूने अपनी पत्नी का अंग क्यों काटा? क्या वह किसी गलत काम में लिप्त थी?” बुनकर डर से कुछ नहीं बोल सका। चुप रहते देखकर न्यायाधीशों ने उसे दोषी मान लिया।

देवशर्मा का हस्तक्षेप और सत्य का उजागर होना

अब, यहां पर साधु देव शर्मा ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने न्यायाधीशों से कहा, “यह नाई निर्दोष है, इसे गलत तरीके से दंड दिया जा रहा है। असल में, यह सब छल का परिणाम है।” इसके बाद उन्होंने न्यायाधीशों को पूरी घटना विस्तार से बताई—कि कैसे नकटी नाइन ने धोखे से बुनकर को फंसाया। इस पर न्यायाधीशों ने नाई को छोड़ दिया और नाइन को उसके कर्मों का दंड सुनाया।

कहानी से सीख

तो दोस्तों, इस कहानी से हमें क्या सिखने को मिलता है?

  • धोखा और छल कभी फलदायक नहीं होते। नकटी नाइन और बुनकर की पत्नी ने अपने स्वार्थ के लिए छल का सहारा लिया, लेकिन अंत में उनका ही नुकसान हुआ।
  • सच्चाई और धैर्य से हमेशा जीत होती है। देव शर्मा ने सच्चाई को सामने लाने के लिए न्याय का रास्ता चुना और आखिरकार उन्होंने नाई को न्याय दिलवाया।

कहानी के अंत में देव शर्मा अपने मठ वापस लौट गए, लेकिन उनके मन में अब एक गहरी समझ थी। उन्होंने समझ लिया कि इस संसार में छल-कपट से भरे लोग हैं, लेकिन हमें धैर्य और सच्चाई का रास्ता अपनाना चाहिए।

तो दोस्तों, यह थी आज की कहानी। उम्मीद है कि आपने इस कहानी से कुछ सीखने को मिला होगा। कभी-कभी जीवन में ऐसे लोग मिल जाते हैं जो बाहर से बहुत अच्छे दिखते हैं, लेकिन भीतर से उनका स्वभाव जहरीला होता है। हमें सतर्क रहना चाहिए और सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलते रहना चाहिए।

नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका हमारे सचेतन के इस विचार के सत्र में।  जहां हम आपको सुनाते हैं अनोखी और शिक्षाप्रद कहानियाँ। आज की हमारी कहानी है एक बुनकर और रथकार की, जिनकी दोस्ती और साहस की कहानी हमें जीवन के कई रंग सिखाती है। इस कहानी में प्यार, दर्द, और चालाकी के खेल हैं। तो चलिए, बिना देर किए शुरू करते हैं!

दोस्ती का महत्व: बुनकर और रथकार की कहानी

तो बात ऐसी है कि एक नगर में एक बुनकर और एक रथकार रहते थे। दोनों बचपन से ही बहुत अच्छे दोस्त थे। उनका साथ इतना गहरा था कि वे हर वक्त साथ रहते, चाहे काम हो या मस्ती।

एक बार उस नगर में एक बड़ा मेला लगा। यह मेला मंदिर में यात्रा उत्सव के रूप में मनाया जा रहा था। वहां शहर और अलग-अलग देशों से आए बहुत से लोग आए हुए थे। दोनों मित्र मेले में घूमते हुए मस्ती कर रहे थे तभी उनकी नजर पड़ी एक राजकुमारी पर, जो हाथी पर सवार थी। राजकुमारी बेहद सुंदर थी, जैसे ही बुनकर ने उसे देखा, उसके दिल में एक आग सी लग गई। ऐसा लगा मानो कामदेव ने अपने बाण से उसके दिल पर निशाना साध दिया हो।

प्रेम का दर्द: बुनकर की हालत

राजकुमारी को देखकर बुनकर की हालत बहुत खराब हो गई। वह वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा। उसका चेहरा पीला पड़ गया और वह बेसुध हो गया। जब रथकार ने देखा कि उसका दोस्त ऐसी हालत में है, तो वह घबरा गया। उसने बुनकर को संभाला और उसे अपने घर ले आया। रथकार ने तुरंत वैद्य बुलाए और उसे ठीक करने के लिए तरह-तरह के उपाय किए—ठंडी पट्टियां, औषधियां, और मंत्र भी। काफी कोशिशों के बाद बुनकर को होश आया।

रथकार की चिंता: दोस्त की मदद का वादा

रथकार ने बुनकर से पूछा, “मित्र, क्या हुआ? अचानक तुम्हारी ऐसी हालत क्यों हो गई? मुझे बताओ, मैं तुम्हारी मदद करूंगा।” बुनकर ने उदास होकर कहा, “मित्र, तुम मेरी बात सुनोगे तो तुम्हें दुख होगा। लेकिन मुझे तुम्हारे सामने सच बोलना ही होगा। मुझे लगता है कि अब मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा। मुझे तो अब चिता पर जलने का ही रास्ता नजर आ रहा है।”

यह सुनकर रथकार की आंखों में आंसू आ गए। उसने बुनकर से कहा, “मित्र, मुझसे अपनी परेशानी मत छिपाओ। मैं तुम्हारी हर संभव मदद करने को तैयार हूं। चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।”

राजकुमारी का प्रेम और बुनकर का कष्ट

बुनकर ने रथकार से कहा, “मित्र, जिस राजकुमारी को मैंने हाथी पर देखा, उसकी सुंदरता ने मेरे दिल में ऐसी आग लगा दी है कि अब मैं इसके बिना नहीं रह सकता। उसका चेहरा, उसकी मुस्कान, उसका रूप मेरे दिल में बस गया है। मैं उसके बिना एक पल भी नहीं जी सकता। मेरी हालत ऐसी हो गई है कि मुझे उसका साथ चाहिए, वरना मैं जीते जी मर जाऊंगा।”

रथकार ने यह सुनकर कहा, “मित्र, मैं तुम्हारी मदद करने के लिए तैयार हूं। चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो, मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूंगा। हमें कोई न कोई उपाय जरूर निकालना होगा।”

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