सचेतन, पंचतंत्र की कथा-33 : बंदर और गौरैया की कथा-2

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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-33 : बंदर और गौरैया की कथा-2

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शास्त्रों में पुत्रों को चार प्रकार का बताया गया है—जात, अनुजात, अतिजात और अपजात।

नमस्कार दोस्तों! “सचेतन” के दूसरे एपिसोड में आपका स्वागत है। पिछले एपिसोड में हमने “बंदर और गौरैया” की कहानी सुनी। गौरैया ने अपने घोंसले के टूटने के बाद कहा, “दूसरों को कष्ट पहुंचाकर खुश होने वाला व्यक्ति अपने विनाश की ओर बढ़ रहा होता है।” इसी बात को समझाने के लिए एक और कहानी है। हम आगे एक और कहानी सुनेगी की एक पुत्र की है जिसने अपने पांडित्य के कारण अपने पिता को धुएं से मार डाला।उससे पहले आज हम शास्त्रों में वर्णित पुत्रों के चार प्रकारों के बारे में चर्चा करेंगे। शास्त्रों में पुत्रों को चार प्रकार का बताया गया है—जात, अनुजात, अतिजात और अपजात।

  1. जात-पुत्र: यह वह पुत्र होता है जो अपनी माता के गुणों को अपनाता है। उसकी सोच, व्यवहार और कार्यशैली अपनी माता के समान होती है। वह अपनी माता की अच्छाइयों और विशेषताओं को आगे बढ़ाता है।
  2. अनुजात-पुत्र: यह पुत्र अपने पिता के गुणों और स्वभाव को अपनाता है। उसकी विचारधारा और व्यक्तित्व अपने पिता के समान होते हैं। वह पिता की आदतों और परंपराओं को जारी रखता है।
  3. अतिजात-पुत्र: यह पुत्र माता-पिता दोनों से भी श्रेष्ठ होता है। उसमें माता-पिता के गुणों का समन्वय तो होता ही है, लेकिन वह अपने प्रयासों और योग्यताओं से उनसे भी आगे बढ़ता है। ऐसे पुत्र को परिवार और समाज के लिए वरदान माना जाता है।
  4. अपजात-पुत्र: यह सबसे निम्न श्रेणी का पुत्र होता है। वह न तो अपने माता-पिता के गुणों को अपनाता है और न ही कोई सकारात्मक गुण दिखाता है। अपजात पुत्र अपने कर्मों और व्यवहार से परिवार और समाज के लिए कठिनाइयाँ खड़ी करता है।

शास्त्रों का उद्देश्य है कि हम अपने बच्चों को ऐसा संस्कार दें कि वे परिवार और समाज के लिए गर्व का कारण बनें। हमें बुद्धिमत्ता और ज्ञान का सही उपयोग ही हमारे जीवन को मूल्यवान बनाता है।

यह चारों प्रकार इस बात को दर्शाते हैं कि एक पुत्र का जीवन कैसा होना चाहिए और उसे परिवार और समाज के प्रति किस प्रकार अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। शास्त्रों में इस विभाजन का उद्देश्य एक आदर्श संतान की विशेषताओं को समझाना और परिवार की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए प्रेरित करना है।

गौरैया ने अपने घोंसले के टूटने के बाद कहा, “दूसरों को कष्ट पहुंचाकर खुश होने वाला व्यक्ति अपने विनाश की ओर बढ़ रहा होता है।” इसी बात को समझाने के लिए एक और कहानी आगे हम सुनेंगे की एक पुत्र है जिसने अपने पांडित्य के कारण अपने पिता को धुएं से मार डाला।

शास्त्रों में कहा गया है कि “धर्म और बुद्धि का सही उपयोग करने वाला व्यक्ति ही जीवन में सफल होता है। लेकिन कुबुद्धि और अहंकार मनुष्य का पतन कर देते हैं। जैसे, चुगली करने वाला किसी एक के कान में बात करता है और दूसरे का सर्वनाश कर देता है।”

तो दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें विवेक और धैर्य से काम लेना चाहिए। मूर्खता से किया गया कार्य हमें और हमारे अपनों को हानि पहुंचा सकता है। “दूसरों को कष्ट पहुंचाकर खुश होने वाला नीच आदमी अपने विनाश की ओर बढ़ रहा होता है, लेकिन उसे इसका एहसास नहीं होता। जैसे लड़ाई में सिर कट जाने के बाद भी शरीर कुछ पल नाचता रहता है।” यह तो ठीक ही कहा गया है: “धर्म और बुद्धि का सही उपयोग और कुबुद्धि का दुष्परिणाम मैं जानता हूँ। एक पुत्र ने अपने व्यर्थ पांडित्य के कारण धुएं से अपने ही पिता को मार डाला।”यह सुनकर दमनक ने पूछा, “यह कैसे हुआ?”
करटक ने कहा, “सुनो, मैं तुम्हें यह कहानी सुनाता हूँ।” अगले एपिसोड में हम “धुएं से पिता की मृत्यु” की कहानी सुनेंगे। तब तक के लिए खुश रहिए, “सचेतन” के साथ जुड़े रहिए। धन्यवाद!

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