सचेतन, पंचतंत्र की कथा-25 : जू और खटमल की कथा
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका “सचेतन” के इस नए सत्र में, जहाँ हम पंचतंत्र की अद्भुत और शिक्षाप्रद कहानियों से सीखते हैं। आज की कहानी एक राजा, एक जूं, और एक खटमल की है। इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि अजनबियों पर बिना सोचे-समझे विश्वास करना कैसे नुकसानदायक हो सकता है।
तो चलिए, सुनते हैं आज की कहानी —
किसी देश में एक राजा था जिसके पास एक सुंदर सोने का कमरा था। उस कमरे में दो सफेद रेशमी कपड़ों के बीच ‘मंदविसर्पिणी’ नाम की एक सफेद जूं रहती थी। वह राजा का खून चूसकर सुख से अपना जीवन जी रही थी। उसकी जिंदगी आराम से चल रही थी, पर तभी एक दिन उस सोने के कमरे में ‘अग्निमुख’ नाम का एक खटमल आ गया।
खटमल को देखकर जूं दुखी हो गई और बोली, “अरे अग्निमुख! तुम यहाँ कैसे आ गए? यह जगह तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। इससे पहले कि कोई तुम्हें देख ले, जल्दी से यहाँ से चले जाओ।”
खटमल ने उत्तर दिया, “अगर कोई बदमाश भी घर आ जाए तो उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए। हर किसी का सम्मान करना गृहस्थी का धर्म है। मैंने अब तक कई तरह के खून चखे हैं – तीखे, कड़वे, खट्टे, लेकिन राजा का मीठा खून अभी तक नहीं चखा। अगर तुम मुझ पर कृपा करोगी तो मैं भी यह स्वाद चख सकूंगा। आखिर, जीभ का सुख तो राजा और गरीब दोनों के लिए एक जैसा ही होता है। और इसी के लिए लोग पूरी जिंदगी मेहनत करते हैं।”
खटमल ने और भी कहा, “अगर इस दुनिया में जीभ के सुख के लिए न होता, तो कोई किसी का सेवक नहीं बनता। मनुष्य झूठ बोलता है, दूसरे की सेवा करता है, विदेश जाता है, ये सब सिर्फ पेट के लिए ही करता है। इसलिए मुझे भी भूख से तड़पते हुए थोड़ा भोजन मिलना चाहिए। तुम्हारा अकेले राजा का खून चूसना ठीक नहीं है।”
यह सुनकर मंदविसर्पिणी जूं ने कहा, “खटमल, जब राजा गहरी नींद में सोता है, तभी मैं उसका खून चूसती हूँ। तुम तो चपल और जल्दीबाज हो, इसलिए अगर तुम खून पीना चाहते हो, तो धैर्य रखो। पहले मैं चख लूं, फिर तुम खून पी सकते हो।” खटमल ने वादा किया, “ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा। जब तक तुम खून नहीं चख लेती, तब तक मैं उसे नहीं चखूंगा। मुझे देवता और गुरु की कसम है।”
अब दोनों की बातें चल ही रही थीं कि राजा अपनी खाट पर आकर सो गया। लेकिन खटमल अपनी जीभ के लालच में फंस गया। उसने राजा के जागते रहने पर भी उसे काट लिया। जैसा कहा गया है कि स्वभाव को बदलना आसान नहीं है, वैसे ही खटमल भी अपनी आदत से मजबूर था। राजा को सुई की नोक जैसी चुभन महसूस हुई और वह तुरंत खाट से उठ खड़ा हुआ। उसने अपने सेवकों को आदेश दिया, “देखो, मुझे किसने काटा है – खटमल या जूं। इसे जल्दी से ढूंढो।”
राजा के सेवक तुरंत चादर की जांच-पड़ताल करने लगे। खटमल तो फुर्तीला था, वह खाट के किसी छेद में छिप गया। लेकिन मंदविसर्पिणी जूं पकड़ी गई और उसे मार दिया गया।
तो दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि किसी अज्ञात स्वभाव वाले व्यक्ति को कभी आश्रय नहीं देना चाहिए। खटमल के दोष के कारण जूं को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसलिए हमें किसी पर भी विश्वास करने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए।
आशा है आपको आज की कहानी पसंद आई होगी और इससे कुछ सीखने को मिला होगा। फिर मिलेंगे “सचेतन” के अगले सत्र में, जहाँ हम सुनेंगे पंचतंत्र की एक और प्रेरणादायक कहानी। तब तक के लिए धन्यवाद और खुश रहिए।
सचेतन के साथ रहें, समझदारी की कहानियाँ सुनते रहें।