सचेतन 110 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष असाधारण कार्य के माध्यम होते हैं। 

SACHETAN  > Shivpuran >  सचेतन 110 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष असाधारण कार्य के माध्यम होते हैं। 

सचेतन 110 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  तत्पुरुष असाधारण कार्य के माध्यम होते हैं। 

| | 0 Comments

कर्म के परिणाम या उसके अभाव को नियंत्रित करने में दैवीय शक्ति की भूमिका के बारे में हिंदू धर्म में कई भिन्न प्रकार के दर्शन हैं, कुछ का स्वरूप आज भी वर्तमान है और कुछ ऐतिहासिक हैं।

इस पृथ्वी पर बहुत से ऐसे प्रमुख मत हैं, जिनका मानना है कि ईश्वर, परमात्मा, अपनी भूमिका निभा रहा है।वेदांत दर्शन के अनुसार, परमात्मा मूलभूत रूप से कर्म को लागू करनेवाला होता है, किन्तु अच्छे या बुरे को चुनने के लिए मनुष्य स्वतंत्र होता है।

“ईश्वर बिना किसी कारण के किसी को दुखी नहीं करता, न ही बिना किसी कारण के किसी को खुश करता है। ईश्वर बहुत ही न्यायपूर्ण है और वस्तुतः आप जिसके योग्य है आपको वही देता है”।

हमारे जीवन का वह कारक जिसके द्वारा कर्ता क्रिया को सिद्ध करता है। जैसे,—छड़ी से साँप मारो । इस उदाहरण में ‘छड़ी’ ‘मारने’ का साधक है अतः उसमें करण का चिह्न ‘से’ लगाया गया है ।

अनेक कारणों में जो असाधारण कार्य को करना होता है वही कारण होता है उसे करण कहते हैं। इसी को प्रकृष्ट कारण भी कहते हैं। असाधारण का अर्थ कार्य की उत्पत्ति में साक्षात्‌ सहायक होना। दंड, जिससे चाक चलता है, घड़े उत्पत्ति में व्यापारवान्‌ होकर साक्षात सहायक है, परंतु जंगल की लकड़ी करण नहीं है क्योंकि न तो वह व्यापारवान्‌ है और न साक्षात्‌ सहायक। नव्य न्याय में तो व्यापारवान्‌ वस्तु को करण नहीं कहते। उनके अनुसार वह पदार्थ जिसके बिना कार्य ही न उत्पन्न हो (अन्य सभी कारणों के रहते हुए भी) करण कहलाता है। यह करण न तो उपादान है और न निमित्त वस्तु, अपितु निमित्तगत क्रिया ही असाधारण और प्रकृष्ट कारण है। प्रत्यक्ष ज्ञान में इंद्रिय और अर्थ का सन्निकर्ष (संबंध) करण है अथवा इंद्रियगत वह व्यापार जिससे अर्थ का सन्निकर्ष होता है, नव्य मत में करण कहलाता है।

करण को दो कारक चिन्हों ‘से’ और ‘के द्वारा’ पहचान सकते हैं- 

करुणापूर्ण : करुणा से पूर्ण

शोकाकुल : शौक से आकुल

वाल्मीकिरचित : वाल्मीकि द्वारा रचित

शोकातुर : शोक से आतुर

कष्टसाध्य : कष्ट से साध्य

मनमाना : मन से माना हुआ

शराहत : शर से आहत

अकालपीड़ित : अकाल से पीड़ित

भुखमरा : भूख से मरा

सूररचित : सूर द्वारा रचित

आचार्कुशल : आचार से कुशल

रसभरा : रस से भरा

मनचाहा : मन से चाहा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *