सचेतन 126 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- तामसिक बनकर भजन नहीं हो सकता है।
अध्यात्म के अस्वीकृती के कारण हमारे जीवन में नकारात्मकता भर जाता है।
जिस व्यक्ति में तामसी प्रकृति के गुण की प्रधानता हो जिसके अनुसार जीव क्रोध आदि नीच वृत्तियों के वशीभूत होकर आचरण करता है। व्यक्ति को निद्रा, आलस्य, आदि से उत्पन्न सुख का अहसास होता और इसे तामस सुख कहते हैं। जब आप जीवन में असत्यप्रवीर्ति यानी सत्य को झुठलाने की प्रवीर्ति करने लगते हैं, अंधविश्वास की ओर जाने लगते हैं, पशुहिंसा, लोभ, मोह, अहंकार आदि आने लगता है तो आपके जीवन में तामस कर्म बढ़ रहा है।
श्री रामचरीतमानस के अरण्यकाण्ड के दोहे में तुलसी दास जी बहुत अच्छे से कहा है –
होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा॥
इसका अर्थ है की इस तामस शरीर से भजन तो होगा नहीं, क्योंकि तामस आपके मन, वचन और कर्म से दृढ़ निश्चय होकर अंदर बैठा होता है।
काकभुशुण्डि ने अपनी पूर्व जन्म कथा और कलि महिमा में कहा है की –
सुनु खगेस कलि कपट हठ दंभ द्वेष पाषंड।
मान मोह मारादि मद ब्यापि रहे ब्रह्मंड॥
हे पक्षीराज गरुड़जी! सुनिए कलियुग में कपट, हठ (दुराग्रह), दम्भ, द्वेष, पाखंड, मान, मोह और काम आदि (अर्थात् काम, क्रोध और लोभ) और मद ब्रह्माण्ड भर में व्याप्त हो गए (छा गए)॥ तो
तामस धर्म करिहिं नर जप तप ब्रत मख दान।
देव न बरषहिं धरनी बए न जामहिं धान॥
मनुष्य जप, तप, यज्ञ, व्रत और दान आदि धर्म तामसी भाव से करने लगेंगे। देवता (इंद्र) पृथ्वी पर जल नहीं बरसायेंगे और बोया हुआ अन्न भी नहीं उगेगा॥
वैसे हमारा भौतिक जीवन सत्व, रजस और तमस के बिना नहीं चल सकता है। हर अणु और परमाणु में भी ये तीन आयाम होते हैं – कंपन का, ऊर्जा का और एक खास स्थिरता का।
अगर ये तीनों तत्व ना हों, तो आप किसी चीज को थाम कर नहीं रख सकते, वह बिखर जाएगी। अगर आपके अंदर सिर्फ सत्व गुण होगा, तो आप एक पल के लिए भी बचे नहीं रहेंगे – आप खत्म हो जाएंगे। अगर सिर्फ रजस गुण होगा, तो वह किसी काम का नहीं होगा। अगर सिर्फ तमस होगा, तो आप हर समय सोते ही रहेंगे। इसलिए हर चीज में ये तीनों गुण मौजूद होते हैं। सवाल सिर्फ यह है कि आप इन तीनों को कितनी मात्रा में मिलाते हैं।
तामसी प्रकृति से सात्विक प्रकृति की ओर जाने का मतलब है कि आप स्थूल शरीर, मानसिक शरीर, भावनात्मक शरीर और ऊर्जा शरीर को स्वच्छ कर रहे हैं। अगर आप उसे इतना स्वच्छ कर दें कि उससे आर-पार दिखने लगे, तो आप अपने भीतर मौजूद सृष्टि के स्रोत को देखने से नहीं चूक सकते। फिलहाल, वह इतना अपारदर्शी है, इतना धुंधला है, कि आप उससे आर-पार देख नहीं सकते। शरीर एक ऐसी दीवार बन गया है, जो हर चीज का रास्ता रोक रहा है। इतनी अद्भुत चीज, सृष्टि का स्रोत यहां, शरीर के भीतर मौजूद है लेकिन यह दीवार उसका रास्ता रोक देती है क्योंकि वह बहुत अपारदर्शी है, धुंधली है। अब उसे साफ करने का समय आ गया है। वरना आप सिर्फ दीवार को जान पाएंगे, यह नहीं जान पाएंगे कि उसके अंदर कौन रहता है।
अध्यात्म यानी कर्म, धर्म और धार्मिक धर्म का केंद्रीय सिद्धांत है इसके अस्वीकृती के कारण हमारे जीवन में नकारात्मक गुण भर जाता है। आपको पता होता है की कैसे कोई अध्यात्त्मिक कर्म करना चाहिए लेकिन आप उसको अनदेखी कर देते हैं।
तमस का कभी भी तमस द्वारा विरोध नहीं किया जा सकता है। इसका प्रतिरोध रजस (कार्रवाई) के माध्यम से किया जा सकता है और तमस से सीधे सत्त्व में परिवर्तित करना और भी मुश्किल हो सकता है।
अध्यात्म एक दर्शन है, चिंतन-धारा है, विद्या है, हमारी संस्कृति की परंपरागत विरासत है, ऋषियों, मनीषियों के चिंतन का निचोड़ है, उपनिषदों का दिव्य प्रसाद है। आत्मा, परमात्मा, जीव, माया, जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, सृजन-प्रलय की अबूझ पहेलियों को सुलझाने का प्रयत्न है अध्यात्म।