सचेतन 2.21: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – धैर्य, सूझ, बुद्धि और कुशलता जैसे चार गुणों से आप कभी असफलता नहीं होंगे
हनुमान जी से स्पन्द (pulse) होने का संकेत मिलता है जो चेतना और चैतन्य का भाव और प्रत्याभास (reflection) करता है
सफलता के लिए शक्ति इच्छा, ज्ञान और क्रिया शक्ति आपको भी हनुमान जी की तरह से प्राप्त हो सकता है लेकिन उसके लिए दैव का अनुग्रह, स्वाभाविक धैर्य तथा कौशल चाहिए। हनुमान जी की छाया को जब सिंहिका राक्षसी ने पकड़ ली तो हनुमान जी ने उस राक्षसी को मार दिया और वे मनस्वी वानरवीर पुनः अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए वेग से बढ़कर सीता माता की खोज में चल पड़े। हनुमान् जी ने अपनी सूझ बुझ से सिंहिका राक्षसी के प्राणों के आश्रयभूत उसके हृदयस्थल को ही नष्ट कर दिया, अतः वह प्राणशून्य होकर समुद्र के जल में गिर पड़ी। कल हमने बात की थी की हनुमान जी एक निमित्त मात्र होकर उसे मार गिराने में सफल हुए।
जब वानरवीर के द्वारा शीघ्र ही सिंहिका जल में गिर पड़ी तो यह देख कर आकाश में विचरने वाले प्राणी उन कपिश्रेष्ठ से बोले- ‘कपिवर! तुमने यह बड़ा ही भयंकर कर्म किया है, जो इस विशालकाय प्राणी को मार गिराया है। अब तुम बिना किसी विघ्न-बाधा के अपना अभीष्ट कार्य सिद्ध करो।
‘वानरेन्द्र ! जिस पुरुष में तुम्हारे समान धैर्य, सूझ, बुद्धि और कुशलता—ये चार गुण होते हैं, उसे अपने कार्य में कभी असफलता नहीं होती’। इस प्रकार अपना प्रयोजन सिद्ध हो जाने से उन आकाशचारी प्राणियों ने हनुमान जी का बड़ा सत्कार किया।
धैर्य, सूझ, बुद्धि और कुशलता—ये चार गुण हैं। धैर्य के बिना मनुष्य सरलता से जीवन-यापन नहीं कर सकता इसलिए यह जीवन जीने की कला है। धैर्य धर्म का पहला लक्षण है। संकट काल में भी धैर्य नहीं त्यागना चाहिए धैर्य से स्थिति सुधर जाएगी और ख़ास करके विपत्ति में धीरज, उन्नति में क्षमा, सभा में वाक् चातुर्य, युद्ध में पराक्रम, यश में रुचि और वेद में आसक्ति-यही महात्माओं के धैर्य वाले गुण होते हैं।
सूझ कहते हैं जो मन में उत्पन्न होनेवाली अनुठी कल्पना को उद्भावना करता है, मन की उपज से हम अन्तर्दृष्टि में झांक सकें की हमारी मानसिक स्थिति कैसी है, जिसकी सहायता से हम किसी समस्या का समाधान कर सकें। जब आप समस्या के समाधान हेतु भिन्न – भिन्न तरीकों से परिस्थिति का अवलोकन करेंगे तो अचानक सूझ आ जाती है और इसके लिए अभ्यास की जरूरत नहीं होती है।
बुद्धि (Intelligence) वह मानसिक शक्ति है जो वस्तुओं एवं तथ्यों को समझने, उनमें आपसी सम्बन्ध खोजने तथा तर्कपूर्ण सूचना इकट्ठा करने में मदद करती है। यह ‘भावना’ और अन्तःप्रज्ञा (Intuition/इंट्युसन) से अलग है। कहा जाता है कि, ‘बुद्धिर्यस्य जस्य बलं तस्य’ अर्थात् जिसमें बुद्धि है वही बलवान है।बुद्धि समस्या को हल करने की योग्यता है चाहे आप नये और कठिन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने के लिए तर्क, निर्णय एवं आत्म आलोचन कर रहे हैं यह सब आपकी बुद्धि है।
कुशलता यानी आपकी किसी कार्य में निपुणता, प्रवीणता, काबिलीयत या हम कहें की कार्यकुशलता का होना। लोग इससे ही महारत, सिद्धि और युक्ति बना कर किसी कार्य को स्वयं से या किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा से उन्नतशील ढंग से करने का गुण रखते हैं। आपके पास वैचारिक, तकनीकी एवं अन्तर्वैक्तिक कुशलता होनी चाहिए।
धैर्य, सूझ, बुद्धि और कुशलता इन चार गुणों को कैसे विकसित किया जाय यह महत्वपूर्ण है जिसके लिए हनुमान जी के चरित्र चित्रण से ज्ञान लेना और सीखना चाहिए। अगर हम कहें तो अबतक के सुंदरकांड की कथा में हनुमान जी से स्पन्द (pulse) होने का संकेत मिलता है और ख़ास कर जब वह सिंहिका राक्षसी से मिलते हैं तो ख़तरा को भाँफ कर अपने शरीर और बल को एक आयाम (amplitude) तक लाना, यानी तेजी से शरीर को बड़ा कर लेना और बहुत कम समय में तेजी से छोटा भी कर लेना। धैर्य, सूझ, बुद्धि और कुशलता—ये चार गुण के विकास के लिए ज्ञानस्वरूप स्पन्द करना और यानी अपने इंद्रिय, मन, बुद्धि, अहंकार को इस शरीर में लयबद्ध करना यानी अध्यात्मभाव के साथ संकल्प से अपने जागृत शरीर में आना पड़ता है। आपको अपने अंदर चेतना और चैतन्य का भाव और प्रत्याभास (reflection) लाना होगा। जैसे ही आपकी चेतना या चित्त से तादात्यम होकर इंद्रिय द्वारा बाह्य विषय का ज्ञान हो जाएगा और आप अपने आप धैर्य, सूझ, बुद्धि और कुशलता इन चार गुणों को जागृत कर लेंगे।