पंचतंत्र की कथा-05 : सियार और ढोल

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दमनक ने जब देखा कि पिंगलक भयभीत होकर अपने राज्य को छोड़ने का विचार कर रहा है, तो उसने उसे समझाने के लिए एक प्रेरणादायक कहानी सुनाने का निश्चय किया। उसने पिंगलक को आश्वस्त करने के उद्देश्य से गोमायु और ढोल की कथा को प्रस्तुत किया। दमनक जानता था कि इस कहानी के माध्यम से वह पिंगलक के डर को दूर कर सकता है और उसका विश्वास भी जीत सकता है। यह कहानी सुनाने से पहले उसने पिंगलक से एकांत का अनुरोध किया ताकि राजा के डर को प्रकट करना किसी और के सामने अपमानजनक न हो।

गोमायु और ढोल की कथा इस प्रकार है:

“महाराज, बहुत समय पहले की बात है। एक जंगल के निकट दो राजाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। युद्ध के बाद विजयी सेना तो अपने नगर लौट गई, लेकिन युद्ध के मैदान में बहुत सारी चीज़ें बिखरी रह गईं, जिनमें एक ढोल भी शामिल था। यह ढोल सेना के साथ गए भाट और चारण वीरता की कहानियाँ सुनाने के लिए बजाया करते थे।

कुछ दिन बाद एक आंधी आई और वह ढोल लुढ़कता-पुढ़कता जंगल के सूखे पेड़ के पास जाकर रुक गया। उस पेड़ की सूखी टहनियां ढोल से इस प्रकार टकरा रही थीं कि जब भी हवा चलती, ढोल से “ढमाढम” की आवाज़ निकलती थी। यह आवाज़ बहुत जोरदार थी और पूरे जंगल में गूंज उठती थी।

उसी जंगल में एक सियार रहता था। एक दिन उसने ढोल से आ रही “ढमाढम” की आवाज़ सुनी। उसने ऐसा शोर पहले कभी नहीं सुना था। सियार को लगा कि यह कोई बहुत बड़ा और खतरनाक जानवर है जो ऐसी गर्जना कर रहा है। वह बहुत डर गया और सोचने लगा, “यह कौन सा जीव है जो इतनी जोरदार बोली बोलता है? यह शायद कोई भयंकर जानवर है।”

कुछ दिनों तक सियार उस ढोल को दूर से देखता रहा और उसके बारे में सोचता रहा। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह जीव उड़ने वाला है या चार पैरों वाला। एक दिन, वह झाड़ियों में छुपकर ढोल को ध्यान से देख रहा था, तभी एक गिलहरी पेड़ से उतरकर उस ढोल पर कूद गई। हल्की “ढम” की आवाज हुई, लेकिन गिलहरी आराम से बैठकर दाना कुतरती रही। यह देखकर सियार बड़बड़ाया, “अरे, यह तो कोई खतरनाक जीव नहीं है। मुझे इससे डरने की जरूरत नहीं है।”

अब सियार फूंक-फूंककर कदम रखता हुआ ढोल के पास गया। उसने उसे सूंघा, लेकिन उसे न कहीं सिर मिला और न पैर। तभी हवा के झोंके से टहनियां फिर ढोल पर टकराईं और “ढम” की आवाज़ आई। सियार डरकर पीछे हट गया। फिर उसने सोचा, “यह तो किसी खोल जैसा है। जरूर इसके अंदर कोई मोटा-ताजा जानवर छिपा हुआ है। इसलिए यह ऐसी गहरी आवाज़ कर रहा है।”

सियार अपनी मांद में लौटकर अपनी पत्नी से बोला, “ओ सियारी! दावत खाने के लिए तैयार हो जा। एक मोटे-ताजे शिकार का पता लगाकर आया हूँ।”

सियारी ने पूछा, “तो तुम उसे मारकर क्यों नहीं लाए?”

सियार ने उसे झिड़कते हुए कहा, “क्योंकि वह एक खोल के अंदर छिपा बैठा है। अगर मैं एक तरफ से उसे पकड़ने की कोशिश करता, तो वह दूसरी तरफ से भाग जाता। इसलिए मैंने सोचा कि हम दोनों साथ चलकर उसे पकड़ें।”

चांद निकलने पर दोनों सियार ढोल के पास पहुँचे। जैसे ही वे निकट पहुँचे, हवा से टहनियां ढोल पर टकराईं और “ढम-ढम” की आवाज निकली। सियार अपनी पत्नी से बोला, “देखा, इसकी आवाज कितनी गहरी है। सोचो, जिसके आवाज इतनी गहरी हो, वह खुद कितना मोटा-ताजा होगा!”

दोनों ने ढोल को सीधा कर उसके दोनों ओर से चमड़े को फाड़ना शुरू किया। जैसे ही उन्होंने चमड़े को काटा, दोनों ने “हूं” की आवाज के साथ अपने हाथ अंदर डाले और अंदर कुछ टटोलने लगे। परंतु अंदर कुछ नहीं था, बस एक-दूसरे के हाथ ही पकड़ में आए।

दोनों चिल्लाए, “हैं! यहां तो कुछ भी नहीं है!” और माथा पीटकर रह गए।


कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बड़ी-बड़ी शेखी मारने वाले लोग अक्सर अंदर से खोखले होते हैं, जैसे वह ढोल। हमें बाहरी दिखावे पर भरोसा नहीं करना चाहिए और किसी भी चीज़ की सच्चाई को जानने का प्रयास करना चाहिए। बिना सोचे-समझे निष्कर्ष निकालना और झूठी उम्मीदें पालना हानिकारक हो सकता है।

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