सचेतन 3.11 : नाद योग: हमारे जीवन की सच्चाई हमें परमपद की ओर अग्रसर करती है

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सचेतन 3.11 : नाद योग: हमारे जीवन की सच्चाई हमें परमपद की ओर अग्रसर करती है

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सूक्ष्मतम नाद से जीव, ईश्वर और ब्रह्म की सत्ता का ज्ञान

नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र  में, जहाँ हम आपको ध्यान योग साधना की गहराइयों में ले चलेंगे। इस दस मिनट के कार्यक्रम में, हम जानेंगे कि किस प्रकार ध्यान योग साधना द्वारा हमारे जीवन के अनेक जन्मों के पापों का नाश संभव है, और यह कैसे हमें परमपद की ओर अग्रसर करती है।

पापों का नाश

अगर पर्वत के समान अनेक जन्मों के संचित पाप हों, तो भी ध्यान योग साधना के माध्यम से उनका नाश संभव है। अन्य किसी साधन से पापों का नाश संभव नहीं है। ध्यान योग के अभ्यास से हम अपनी आत्मा की शुद्धि कर सकते हैं और पापों से मुक्ति पा सकते हैं।

बीजाक्षर से परे

बीजाक्षर “ॐकार” से परे बिन्दु स्थित है, और उसके ऊपर नाद विद्यमान है। इस नाद में एक मनोहर शब्द ध्वनि सुनाई पड़ती है। जब हम इस नादध्वनि के अक्षर में विलय हो जाते हैं, तो एक शब्दविहीन स्थिति उत्पन्न होती है, जिसे “परमपद” के नाम से जाना जाता है।

अनाहत शब्द

अनाहत शब्द, जिसे हम मेघ गर्जना की तरह प्रकृति का आदि शब्द कह सकते हैं, का जो परम कारण तत्व है, उससे भी परे एक परम कारण, निर्विशेष ब्रह्म है। जो योगी इस निर्विशेष ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है, उसके सभी संशय नष्ट हो जाते हैं।

जीव और ईश्वर

यदि हम गेहूँ की बाल के अग्रभाग अर्थात् नोक के एक लाख हिस्से करें, तो उसका एक सूक्ष्म भाग जीव कहलाएगा। उसके पुनः उतने भाग, अर्थात् एक लाख भाग करें, तो इन सूक्ष्मतर भागों को ईश्वर कहा जाएगा। तत्पश्चात् उस हिस्से के भी पचास हजार हिस्से किए जाने पर जो शेष रहेगा, वह सूक्ष्म से भी अतिसूक्ष्म निरंजन ब्रह्म की सत्ता है।

आत्मा का अस्तित्व

जिस प्रकार पुष्प में गंध, दूध में घृत, तिल में तेल, और सोने की खान के पाषाणों में सोना प्रत्यक्ष रूप से न दिखने पर भी अव्यक्त रूप से विद्यमान रहता है, उसी प्रकार आत्मा का अस्तित्व सभी प्राणियों में निहित है। स्थिर बुद्धि से सम्पन्न मोहरहित ब्रह्मवेत्ता मणियों में पिरोए गए सूत्र की तरह आत्मा के व्यापकत्व को जानकर उसी ब्रह्म में स्थित रहते हैं।

आत्मा का व्यापकत्व

जिस प्रकार तिलों में तेल और पुष्पों में गंध आश्रित है, उसी प्रकार पुरुष के शरीर के भीतर और बाहर आत्मतत्त्व विद्यमान है। जिस प्रकार वृक्ष अपनी सम्पूर्ण कला के साथ स्थित रहता है और उसकी छाया कलाहीन होकर रहती है, उसी प्रकार आत्मा कलात्मक स्वरूप और निष्कल भाव से सभी जगह विद्यमान है।

भ्रम का नाश

जैसे मनुष्य भ्रमवश रस्सी को सर्प समझ लेता है, वैसे ही मूर्ख जो सत्य को नहीं जानता, संसार को सत्य मानकर देखता है। जब वह जानता है कि यह रस्सी का एक टुकड़ा है, तो सांप का भ्रम गायब हो जाता है।

समापन

तो दोस्तों, इस प्रकार ध्यान योग साधना हमें हमारे जीवन की सच्चाईयों से अवगत कराती है और हमें परमपद की ओर अग्रसर करती है। आशा है कि आपको यह जानकारी प्रेरणादायक लगी होगी। अगले कार्यक्रम में फिर मिलेंगे, तब तक के लिए नमस्कार! ध्यान योग साधना की इस महिमा को समझकर, हम अपने जीवन को एक नई दिशा में ले जा सकते हैं। आशा है, यह पॉडकास्ट आपको अपने आध्यात्मिक सफर में मदद करेगा। धन्यवाद!

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