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मुंशी प्रेमचंद की दो बैल की कहानी मुंशी प्रेमचंद की दो बैल की कहानी में हीरा और मोती से पशुपति के समझ को बढ़ाना चाहेंगे तो जानवरों में गधा सबसे बेवक़ूफ़ समझा जाता है। गाय शरीफ़ जानवर है। मगर सींग मारती है। कुत्ता भी ग़रीब जानवर है लेकिन कभी-कभी उसे ग़ुस्सा भी आ जाता है। लेकिन गधे का एक भाई और भी है जो उससे कुछ कम ही गधा है और वो है बैल जिन मानों में हम गधे का लफ़्ज़ इस्तेमाल करते हैं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बैल को बेवक़ूफ़ों का सरदार कहने को तैयार हैं। मगर हमारा ख़याल ऐसा नहीं बैल कभी-कभी मारता है। कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आते हैं और कभी कई तरीक़ों से वो अपनी ना-पसंदीदगी और नाराज़गी का इज़हार कर देता है। लिहाज़ा उसका दर्जा गधे से नीचे है। झूरी काजी के पास दो बैल थे। एक का नाम था हीरा और दूसरे का मोती। दोनों देखने में ख़ूबसूरत, काम में चौकस, डीलडौल में ऊँचे। बहुत दिनों से एक साथ रहते रहते, दोनों में मुहब्बत हो गई थी। जिस वक़्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जुते जाते और गर्दनें हिला-हिला कर चलते तो हर एक की यही कोशिश होती कि ज़्यादा बोझ मेरी ही गर्दन पर रहे। एक साथ नाँद में मुँह डालते। एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता और एक साथ ही बैठते। एक मर्तबा झूरी ने दोनों बैल चंद दिनों के लिए अपनी सुसराल भेजे। बैलों को क्या मालूम वो क्यों भेजे जा रहे हैं। समझे मालिक ने हमें बेच दिया। अगर उन बे-ज़बानों की ज़बान होती तो झूरी से पूछते, “तुमने हम-ग़रीबों को क्यों निकाल दिया? हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, सर झुका कर ख़ा लिया, फिर तुम ने हमें क्यों बेच दिया।” किसी वक़्त दोनों बैल नए गाँव जा पहुँचे। दिन भर के भूके थे, दोनों का दिल भारी हो रहा था। जिसे उन्होंने अपना घर समझा था, वो उनसे छूट गया था। जब गाँव में सोता पड़ गया, तो दोनों ने ज़ोर मार कर रस्से तुड़ा लिये और घर की तरफ़ चले। झूरी ने सुबह उठ कर देखा तो दोनों बैल चरनी पर खड़े थे। दोनों के घुटनों तक पाँव कीचड़ में भरे हुए थे। दोनों की आँखों में मुहब्बत की नाराज़गी झलक रही थी। झूरी उनको देखकर मुहब्बत से बावला हो गया और दौड़ कर उनके गले से लिपट गया। घर और गाँव के लड़के जमा हो गए और तालियाँ बजा-बजा कर उनका ख़ैर-मक़्दम करने लगे। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़ और कोई भूसी। झूरी की बीवी ने बैलों को दरवाज़े पर देखा तो जल उठी, बोली, “कैसे नमक-हराम बैल हैं। एक दिन भी वहाँ काम न किया, भाग खड़े हुए।” झूरी अपने बैलों पर ये इल्ज़ाम बर्दाश्त न कर सका, बोला, “नमक-हराम क्यों हैं? चारा न दिया होगा, तो क्या करते।” औरत ने तुनक कर कहा, “बस तुम्हीं बैलों को खिलाना जानते हो, और तो सभी पानी पिला पिला कर रखते हैं।” दूसरे दिन झूरी का साला जिसका नाम गया था, झूरी के घर आया और बैलों को दुबारा ले गया। अब के उसने गाड़ी में जोता। शाम को घर पहुँच कर गया ने दोनों को मोटी रस्सियों से बाँधा और फिर वही ख़ुश्क भूसा डाल दिया। हीरा और मोती इस बरताव के आदी न थे। झूरी उन्हें फूल की छड़ी से भी न मारता था, यहाँ मार पड़ी, उस पर ख़ुश्क भूसा, नाँद की तरफ़ आँख भी न उठाई। दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता, मगर उन्होंने पाँव न उठाया। एक मर्तबा जब उस ज़ालिम ने हीरा की नाक पर डंडा जमाया, तो मोती ग़ुस्से के मारे आपे से बाहर हो गया, हल ले के भागा। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं तो वो दोनों निकल गए होते। मोती तो बस ऐंठ कर रह गया। गया आ पहुँचा और दोनों को पकड़ कर ले चला। आज दोनों के सामने फिर वही ख़ुश्क भूसा लाया गया। दोनों चुप चाप खड़े रहे। उस वक़्त एक छोटी सी लड़की दो रोटियाँ लिए निकली और दोनों के मुँह में एक एक रोटी देकर चली गई। ये लड़की गया की थी। उस की माँ मर चुकी थी। सौतेली माँ उसे मारती रहती थी। इन बैलों से उसे हमदर्दी हो गई। दोनों दिन भर जोते जाते। उल्टे डंडे खाते, शाम को थान पर बाँध दिए जाते और रात को वही लड़की उन्हें एक एक रोटी दे जाती। एक-बार रात को जब लड़की रोटी देकर चली गई तो दोनों रस्सियाँ चबाने लगे, लेकिन मोटी रस्सी मुँह में न आती थी। बेचारे ज़ोर लगा कर रह जाते। इतने में घर का दरवाज़ा खुला और वही लड़की निकली। दोनों सर झुका कर उसका हाथ चाटने लगे। उसने उनकी पेशानी सहलाई और बोली, “खोल देती हूँ, भाग जाओ, नहीं तो ये लोग तुम्हें मार डालेंगे। आज घर में मश्वरा हो रहा है कि तुम्हारी नाक में नथ डाल दी जाये। उसने रस्से खोल दिए और फिर ख़ुद ही चिल्लाई, “ओ दादा! ओ दादा! दोनों फूफा वाले बैल भागे जा रहे हैं। दौड़ो… दौड़ो!”